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इन पांच वजहों से फेल हो सकती है NRC लागू करने की कवायद

असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (NRC) को अपडेट करने का कार्य सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रहा है. मोदी सरकार ने एनआरसी को तैयार करने में पूरी गंभीरता दिखाई है, लेकिन इसको लागू कर पाना इतना आसान नहीं है.

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एनआरसी में नाम दर्ज कराने के लिए कतार में खड़े लोग (फाइल फोटो: रायटर्स)
एनआरसी में नाम दर्ज कराने के लिए कतार में खड़े लोग (फाइल फोटो: रायटर्स)

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असम देश के उन कुछ राज्यों में से है, जहां अवैध प्रवासियों का मसला काफी गंभीर हो गया है. ये अवैध प्रवासी आमतौर पर बांग्लादेशी होते हैं. अवैध प्रवासियों को राज्य से बाहर करने के लिहाज से असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (NRC) को अपडेट करने का कार्य सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रहा है. इसकी दूसरी लिस्ट भी आ गई है, लेकिन इस बारे में गंभीर संदेह है कि सरकार को इसे लागू कर पाने में सफलता मिल पाएगी.

एनआरसी की दूसरी और अंतिम ड्राफ्ट सूची प्रकाशित होने के बाद 40,07,707 लोग इससे बाहर पाए गए हैं. इस मसले पर अब जमकर राजनीति हो रही है. कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस एनआरसी का विरोध कर रही हैं, तो बीजेपी पूरी तरह से इसके बचाव में है.

मोदी सरकार ने एनआरसी को तैयार करने में पूरी गंभीरता दिखाई है, लेकिन उसे एनआरसी को लागू कर पाना आसान नहीं होगा. आइए जानते हैं, इसकी पांच बड़ी वजहें.

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1. बांग्लादेश सरकार

एनआरसी में जो 40 लाख से ज्यादा लोग शामिल नहीं हैं, उनकी अपील को अगस्त और सितंबर में सुना जाएगा. अंतिम सूची 31 दिसंबर को प्रकाशित की जाएगी. लेकिन अंतिम आंकड़ा घटकर 20 लाख आ जाए तो भी मोदी सरकार के लिए उन्हें बांग्लादेश भेजना आसान नहीं होगा. बांग्लादेश ने साफ कर दिया है कि यह असम और भारत का आंतरिक मामला है और इस पर वह कुछ नहीं कर सकता. खबरों के मुताबिक बांग्लादेश के सूचना मंत्री हसनुल हक ने कहा कि उनके देश को चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वे 40 लाख लोग बांग्लादेशी नहीं हैं और असम के आसपास के राज्यों के हैं.

2. सूची की खामियां

एनआरसी के फाइनल ड्राफ्ट में कई तरह की खामियां पाई गई हैं. उदाहरण के लिए एक जुड़वां के मामले में एक बच्चे का नाम लिस्ट में है, लेकिन दूसरे का नहीं है, जबकि उनकी मां का नाम है. ऐसे कई मामले सामने आए हैं. सरकार के लिए यह संभव नहीं होगा कि किसी परिवार के एक सदस्य को परिवार से अलग कर उसे बांग्लादेश भेज दिया जाए.

3. गृह युद्ध की आशंका

एनआरसी को लागू करने से कानून-व्यवस्था की गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है, न सिर्फ असम में बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में भी. सूची से बाहर रहने वाले ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के लोग हैं. उनके अंदर यह भावना पनपेगी कि केंद्र और असम में सत्तारूढ़ दक्ष‍िणपंथी बीजेपी सरकार उनके साथ अत्याचार कर रही है.

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पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने तो आरोप भी लगा दिया है कि बीजेपी विभाजक राजनीति कर रही है और असम के एनआरसी से देश में गृह युद्ध की स्थिति आ सकती है.

4. चुनाव और बोगस वोटिंग

एनआरसी के फाइनल ड्राफ्ट के प्रकाशि‍त होने के दिन, 30 जुलाई, को केंद्रीय गृह मंत्री ने यह आश्वासन दिया था कि जिन लोगों का नाम बाहर रह गया है, उन्हें प्रशासन के सामने अपील करने और अपने दस्तावेज जमा करने का मौका दिया जाएगा. इसके बाद अंतिम सूची 31 दिसंबर को प्रकाशित की जाएगी. जिन लोगों का नाम अंतिम एनसीआर में नहीं होगा, उन्हें वोटिंग से वंचित कर दिया जाएगा. लेकिन भ्रष्ट और शिथिल प्रशासन की वजह से इसे कड़ाई से लागू कर पाना संभव नहीं होगा.

ऐसे तमाम लोगों ने फर्जी तरीके से आधार, पैन कार्ड, राशन कार्ड और वोटर कार्ड तक बनवा लिए हैं. यानी सरकार के लिए 'अवैध प्रवासियों' को वोटिंग करने से रोकना शायद संभव न हो.

5. सूची से बाहर लोगों की प्रॉपर्टी

सूची से बाहर हो गए लोग अब देश में कहीं भी जमीन, मकान या अन्य प्रॉपर्टी नहीं खरीद पाएंगे. यही नहीं, सरकार उन लोगों के नाम पहले से रजिस्टर्ड जमीन या मकान को अपने हाथ में लेने की कोशिश करेगी, जिनका नाम सूची में नहीं है. यहां तक कि सरकार यह बड़ा काम पूरा कर भी पाई तो ऐसे तमाम लोगों को बेनामी संपत्त‍ि खरीदने से नहीं रोक पाएगी, जो कि देश में आम बात है.

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तो कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि मोदी और सोनवाल सरकार के लिए समस्याओं की अभी बस शुरुआत हुई है. उनकी असली परीक्षा 31 दिसंबर को फाइनल सूची के प्रकाशित होने के बाद होगी.

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