वैश्विक मंदी की मार झेल रहे सूरत के हीरा कारीगरों के जीवन की खोई चमक को राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना कुछ हद तक लौटाने में कामयाब रही है.
मंदी के कारण बड़े पैमाने पर बेरोज़गार हुए हताश हीरा कारीगर गुजरात के अपने गांवों को लौटने को मजबूर हुए. लेकिन उन गांवों में नरेगा उन्हें रोज़गार उपलब्ध कराके कुछ हद तक उन्हें सहारा देने में सफल रही. ऐसे कई कारीगर आज नरेगा के तहत गुजरात के अपने पैतृक गांवों में काम करके अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं.
ग्रामीण विकास मंत्रालय को प्राप्त एक आधिकारिक रिपोर्ट में बताया गया कि ‘सूरत के हीरा कारीगर अपने गांवों (गुजरात) में लौट आए हैं. इन कारीगरों को नरेगा के तहत कार्य करने के लिए जॉब कार्ड जारी किए गए हैं.’ सूरत भारत ही नहीं विश्व में हीरा पॉलिशिंग का बड़ा केन्द्र है. लेकिन वैश्विक मंदी और कच्चे हीरे के दाम अत्यधिक बढ़ जाने से हीरा कारोबार ठप्प हो गया. इससे गुजरात के इस शहर की अर्थव्यवस्था चरमरा गई जिससे हज़ारों की तादाद में हीरा कारीगरों को मजबूरन अपने गांवों की राह लेनी पड़ी.
राष्ट्रीय स्तरीय निगरानी संस्था (एनएनएम) में हीरा कारीगरों को कुछ राहत प्रदान करने के लिए नरेगा की सराहना करने के साथ ही गुजरात में इसे लागू करने के बारे में खामियों को भी गिनाया है. उसने मंत्रालय को दी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि राज्य में नरेगा के पदाधिकारियों से लेकर ग्रामीण निगरानी समितियों तक में इस कानून के प्रावधानों के बारे में बहुत कम जानकारी है.
एनएलएम की रिपोर्ट में बताया गया है कि गुजरात में नरेगा के तहत काम पाने वालों के वेतन भुगतान में विलंब होता है. इसमें कहा गया है कि इसकी वजह यह है कि व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्यो का मूल्यांकन करने और डाक घर के खाते से भुगतान की प्रक्रिया बहुत जटिल और लंबी है. इसमें कहा गया है कि नरेगा को लागू करने के लिए स्टाफ की कमी है. कई इलाकों में तो तालुका विकास अधिकारी ही नरेगा कार्यक्रम अधिकारियों के रूप में काम कर रहे हैं.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि गुजरात के कई जि़लों में नरेगा के तहत काम चाहने वालों की कमी इसलिए है, क्योंकि राज्य में औसत दैनिक वेतन नरेगा के तहत दिए जाने वाले वेतन से अधिक है.
ग्रामीण बेरोज़गारों को काम दिलाने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी कानून के तहत हर ग्रामीण परिवार के व्यस्क सदस्य को प्रति दिन सौ रूपए के हिसाब से साल में कम से कम सौ दिन का रोज़गार देने की गारंटी दी गई है.
मंत्रालय के अनुसार राज्य में एक लाख से अधिक पंजीकृत परिवारों को जॉब कार्ड जारी नहीं किए गए हैं.