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लोकसभा में परमाणु विधेयक पेश, विपक्ष का वॉकआउट

सरकार ने आज विपक्षी राजग और वाम दलों के भारी विरोध और वाकआउट के बीच परमाणु दायित्व विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया.

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सरकार ने आज विपक्षी राजग और वाम दलों के भारी विरोध और वाकआउट के बीच परमाणु दायित्व विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया.

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विपक्षी दलों ने विधेयक को गैर कानूनी बताते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत मिले ‘जीवन के अधिकार’ का उल्लंघन करता है जबकि सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि किसी विधेयक को पेश किये जाने के समय उसके विधायी स्वरूप पर तो आपत्ति की जा सकती है लेकिन उसके गुण-दोषों पर नहीं.

सदन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मौजूदगी के बीच विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि हमने प्रधानमंत्री और उनके दूतों के साथ बातचीत के दौरान इस विवादास्पद विधेयक को संशोधित रूप में पेश करने की अपनी ओर से काफी कोशिश की लेकिन लगता है कि सरकार इसे इसी रूप में पेश करने पर अडी हुई है और हम सरकार के इस आचरण के विरोध में सदन से बहिर्गमन करते हैं.

नेता सदन प्रणव मुखर्जी ने विपक्ष के इस आचरण को सर्वथा अनुचित करार देते हुए कहा कि किसी विधेयक को पेश किये जाते समय उसके गुण-दोष पर बहस नहीं की जा सकती है. केवल उसके विधायी स्वरूप पर आपत्ति हो सकती है.

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बजट सत्र में ही एक बार इस विधेयक को पेश करने से पीछे हट चुकी सरकार ने कल देर रात इसे आज लोकसभा में पेश करने का फैसला किया था. परमाणुवीय नुकसान के लिए सिविल दायित्व विधेयक 2010 में परमाणु दुर्घटना होने पर 500 करोड़ रुपये मुआवजा सीमा पर विपक्ष को मुख्य आपत्ति है. विपक्ष इसे बढाकर 2100 करोड़ रुपये करने की मांग कर रहा है.

विपक्ष का यह भी आरोप है कि इस विधेयक में परमाणु सामग्री की आपूर्ति करने वाली विदेशी कंपनियों और एजेंसियों को मुआवजे की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया है जबकि जनता द्वारा वसूले गये कर की राशि से सरकार द्वारा मुआवजे की भरपायी करने का आपत्तिजनक प्रावधान किया गया है.

विधेयक पेश किये जाने का विरोध करते हुए माकपा के वासुदेव आचार्य ने कहा कि यह गैर कानूनी और असंवैधानिक होने के साथ साथ संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार का उल्लंघन करता है. उन्होंने कहा कि यही नहीं यह विधेयक अधिक मुआवजे के लिए अदालत में गुहार लगाने के नागरिक के अधिकार को भी समाप्त करता है.{mospagebreak}भाजपा के मुरली मनोहर जोशी ने भी यही तर्क देते हुए कहा कि यह उच्चतम न्यायालय के उस निर्णय के भी खिलाफ है, जिसमें कहा गया है कि प्रदूषणकारी को ही हर्जाना देना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि अभी तक भारत में असीमित मुआवजे की व्यवस्था है और यह विधेयक इसे सीमित करता है.

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भाकपा के गुरूदास दासगुप्ता ने कहा कि अगर कोई विधेयक शीर्ष अदालत के किसी फैसले के खिलाफ नजर आये तो उसे लाना उचित नहीं है क्योंकि बाद में उच्चतम न्यायालय उसे निरस्त कर देगी.

प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण द्वारा पेश इस विधेयक पर भाजपा के यशवंत सिन्हा ने आरोप लगाया कि सरकार जान बूझ कर एक गैर कानूनी विधेयक को पारित कराने जा रही है. उन्होंने कहा कि इस विधेयक में परमाणु दुर्घटना होने की स्थिति में अधिकतम 2600 करोड़ रुपये मुआवजा देने का प्रावधान है जबकि अमेरिका में ऐसा होने पर 60,000 करोड़ रुपये मुआवजे की व्यवस्था है. सिन्हा ने सवाल किया कि अमेरिकी नागरिकों के मुकाबले भारत के लोगों की जान को यह सरकार इतना सस्ता कैसे मान सकती है. उन्होंने कहा कि अमेरिकियों का खून खून है और हमारा खून पानी. राजद के लालू प्रसाद ने इस विधेयक को संसद की स्थायी समिति को भेजने की मांग की.

विधेयक के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि परमाणुवीय घटना के फलस्वरूप नुकसान से व्यथित व्यक्तियों को मुआवजा देना आवश्यक है इसलिए दायित्व की स्पष्टता सुनिश्चित करने का प्रावधान महत्वपूर्ण है.

इसमें कहा गया कि परमाणुवीय सामग्री के परिवहन के दौरान परमाणुवीय नुकसान के मुद्दे पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है. ऐसे अधिकांश देशों के, जो परमाणुवीय शक्ति सृजन में लगे हुए हैं, अपने स्वयं के विधान हैं और उनमें से कुछ एक या अन्य अंतरराष्ट्रीय शासन प्रणालियों के हिस्सेदार हैं. भारत उपरोक्त परमाणुवीय दायित्व कन्वेंशनों में से किसी का भी पक्षकार नहीं है. भारतीय परमाणुवीय उद्योग परमाणु उर्जा कानून 1962 द्वारा स्थापित घरेलू संरचना के भीतर विकसित किया गया है. उक्त कानून में परमाणुवीय दुर्घटना के कारण होने वाले नुकसान के लिए दायित्व या मुआवजे के बारे में प्रावधान नहीं है इसलिए यह विधेयक लाना आवश्यक समझा गया.

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