सरकार और विपक्ष के बीच सघन विचार विमर्श और जोर आजमाइश के बाद आज परमाणु दायित्व विधेयक लोकसभा में पेश किया गया जिसमें परमाणु दुर्घटना की स्थिति में आपूर्तिकर्ताओं के दायित्व के प्रावधान में भाजपा, वाम दलों की आपत्तियों को देखते हुए कुछ संशोधन सुझाये गये हैं. इससे इस विधेयक पर आम राय बनने और संसद में पारित होने का रास्ता साफ हो गया है.
सदन में परमाणु दायित्व विधेयक, 2010 पेश करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा ‘यह अभूतपूर्व विधेयक पेश किया गया है जिसमें सभी विपक्षी दलों की चिंताओं को शामिल करते हुए आम सहमति बनाने का प्रयास किया गया है.’’
विधेयक के मूल स्वरूप में 17 (बी) उपबंध में संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया था जिसकी भाजपा और वाम दलों ने कड़ी आलोचना की थी. इसमें दुर्घटना की स्थिति में मुआवजे का दावा करने की स्थिति में आपूर्तिकर्ता के इरादे को साबित करने की बात कही गई थी.
चव्हाण ने मूल विधेयक में नया संशोधन पेश करते हुए कहा कि अब 17 (बी) उपबंध में ‘इरादतन’ शब्द नहीं है और इसके स्थान पर ‘आपूर्तिकर्ता या उसके कर्मचारियों के कार्य के मद्देनजर परमाणु दुर्घटना जो घटिया या त्रुटिपूर्ण उपकरण, सामग्री या सेवा के कारण हुई हो’ को रखा गया है. {mospagebreak}
चर्चा में हिस्सा लेते हुए भाजपा के जसवंत सिंह ने विधेयक के उपबंध 17 में कुछ और संशोधन का प्रस्ताव किया जो सरकार की ओर से पेश संशोधन से मेल खाता है. माकपा के बासुदेव आचार्य और भाकपा के गुरूदास दासगुप्ता की ओर से पेश अलग अलग संशोधनों में भी यह बात कही गयी है.
चव्हाण ने कहा ‘इस विधेयक को लाने का उद्देश्य परमाणु दुर्घटना की स्थिति में ‘पीड़ितों’ के हितों की रक्षा करना है.’ मंत्री ने कहा कि 2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अमेरिका यात्रा के दौरान इस समस्या के निदान के लिए एक करार करने की रूपरेखा बनी लेकिन इस दिशा में परमाणु दायित्व कानून न होने से एक कमी आ रही थी क्योंकि परमाणु ऊर्जा उत्पादन करने वाले 30 देशों में से 28 में ऐसा कानून है.
केवल भारत और पाकिस्तान में ऐसा कोई कानून नहीं है. उन्होंने कहा ‘हमने विधेयक तैयार करने में सभी विपक्षी दलों, विशेषज्ञों एवं सभी पक्षों के साथ व्यापक विचार विमर्श किया है और इस दिशा में मूल विधेयक में 18 संशोधनों के बाद इसे पेश किया गया है जिसमें भाजपा, वाम दलों और सपा जैसे दलों के सुझावों को शामिल किया गया है.’ {mospagebreak}
चव्हाण ने कहा ‘वाम दलों को अभी भी कुछ चिंताएं हैं लेकिन मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि यह किसी भी देश की मदद के लिए नहीं है. हम बड़े देश हैं और हमें अपनी जरूरतों को समझना होगा. यह जरूरत बिजली की समस्या को दूर करने की है.’ मंत्री ने कहा कि विधेयक के संशोधित स्वरूप के माध्यम से किसी भी दुर्घटना की स्थिति में तीसरे पक्ष (पीड़ित) को पर्याप्त मुआवजे का प्रावधान है जिसमें अभाव में भोपाल गैस त्रासदी के मामले में सरकार को कदम उठाना पड़ा और पीड़ितों को परेशानी हुई.
उन्होंने कहा ‘इस विधेयक में आपूर्तिकर्ताओं, उपभोक्ताओं, सरकार, डिजाइनर आदि सभी पक्षों की जवाबदेही तय की गई है. परमाणु दुर्घटना की स्थिति में अधिकतम मुआवजे की राशि को पूर्व के 500 करोड़ रूपये से बढ़ाकर 1,500 करोड़ रूपये कर दिया गया है जो ऐसे मामलों में अमेरिका में दिये जा रही मुआवजा राशि के समान है.’
चव्हाण ने कहा कि पोखरण में पहले परमाणु परीक्षण के बाद परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों की ओर से प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण पर लगायी गई पाबंदी को समाप्त करने का हमारा प्रयास इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए है. उन्होंने कहा ‘हमने सम्पूर्ण ईंधन चक्र, रिएक्टर का डिजाइन तैयार करने, बिजली पैदा करने और कचरे के पुनर्चक्रन में विशेषज्ञता हासिल कर ली है लेकिन कुछ प्रौद्योगिकी हमारे पास अभी भी उपलब्ध नहीं हैं. {mospagebreak}
हालांकि हम अगले वर्ष तक अपना पहला फास्ट ब्रीडर रिएक्टर स्थापित कर लेंगे और तीसरे चरण में थोरियम का उपयोग करने की प्रौद्योगिकी हासिल कर लेंगे जिसका दुनिया में दूसरा सबसे बढ़ा भंडार भारत में है.’ भाजपा के जसवंत सिंह ने कहा ‘सरकार जिस जल्दबाजी में यह विधेयक लाई है उससे सरकार की मंशा पर शक पैदा होता है. यह कह कर मैं किसी की छवि को खराब करने का प्रयास नहीं कर रहा हूं लेकिन इससे ऐसा संदेश जा रहा है कि नवंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा के दबाव के कारण किया जा रहा है.’
उन्होंने कहा कि मंत्री ने अभी तक दुनिया में दो परमाणु संयंत्र दुर्घटना होने का उल्लेख किया है लेकिन यह आंकड़ा हमें सुरक्षा और संरक्षा में लापरवाही बरतने की छूट नहीं देता है क्योंकि परमाणु ईंधन के उपयोग से दुर्घटना और नुकसान की संभावना हमेशा बनी रहती है. सिंह ने विधेयक में संशोधन पेश करते हुए कहा, विधेयक में ‘एसडीआर’ का उल्लेख किया गया है लेकिन जब विदेशी परिचालक होगा ही नहीं तो इस वाक्य की जरूरत क्या थी. उन्होंने कहा, ‘अगर सरकार इन संशोधनों को स्वीकार कर लेती है तो हम इस विधेयक का समर्थन करेंगे.’ {mospagebreak}
कांग्रेस के मनीष तिवारी ने देश में बिजली की कमी को दूर करने के लिए परमाणु ऊर्जा को बहुत ही जरूरी बताते हुए कहा कि अगर देश को तरक्की करनी है तो परमाणु ऊर्जा के रास्ते पर चलना होगा. उन्होंने कहा कि इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य यह है कि अगर भविष्य में किसी परमाणु संयत्र में कोई दुर्घटना हो जाये तो ऐसी स्थिति में प्रभावित होने वाले लोगों को मुआवजे के लिए दर दर भटकना नहीं पड़े और उन्हें उचित एवं पर्याप्त मुआवजा मिले.
तिवारी ने कहा कि परमाणु ऊर्जा पैदा करने वाले 30 देशों में से सिर्फ भारत और पाकिस्तान में दायित्व की प्रणाली मौजूद नहीं है. उन्होंने सभी राजनीतिक दलों से देश के विकास और ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से लाये गये इस विधेयक को समर्थन देने का अनुरोध किया.
समाजवादी पार्टी के शैलेन्द्र कुमार ने विधेयक का समर्थन करते हुए बिजली उत्पादन के नजरिये से इसे बहुत ही महत्वपूर्ण विधेयक बताया. उन्होंने परमाणु नुकसान दावा आयोग के स्थापना के प्रावधान को अच्छा कदम बताया और कहा कि मुआवजे का फैसला समयबद्ध होना चाहिए. {mospagebreak}
बसपा के धनंजय सिंह ने विधेयक के औचित्य पर सवाल उठाते हुए कहा कि नये विधेयक की जरूरत नहीं थी क्योंकि जो कानून पहले से मौजूद हैं उसमें ही संशोधन किया जा सकता था. उन्होंने कहा कि जहां परमाणु संयंत्रों लगाये जायें वहां लोगों के बीच जगरूरता फैलाने का कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए और लोगों को शिक्षित किया जाना चाहिए. उन्होंने किसी भी विदेश कंपनी को आपरेटर के रूप में शामिल नहीं करने और दावा आयुक्त के पद पर सरकारी अधिकारी के बजाय उच्च न्यायालय के न्यायधीश को बनाने का सुझाव दिया.
जनता दल-यू के शरद यादव ने आरोप लगाया कि सरकार ने विधेयक लाने में जो जल्दबाजी दिखायी है वह आने वाले समय में देश को बहुत महंगी पड़ेगी. उन्होंने कहा कि सरकार इस विधेयक को पारित कराने का एक रास्ता निकाल चुकी है और उनकी विरोध करने की हैसियत नहीं है, इसलिए वह इस पर अधिक कुछ नहीं बोलना चाहते. उन्होंने कहा कि उनकी बात तो छोड़ ही दीजिए, पिछले दशक भर से भारत में कोई ऐसी सरकार नहीं रही है जो अमेरिका के आगे बोलने की हिम्मत रखती हो.
उन्होंने कहा कि मजबूत समझौता एक मजबूत सरकार ही कर सकती है लेकिन यह बराबरी का समझौता नहीं है. जद यू नेता ने साथ ही यह भी कहा कि परमाणु ऊर्जा एक सपना है और यह कभी पूरा नहीं होगा क्योंकि यह विधेयक पारित हो जाने के बावजूद परमाणु ऊर्जा इतनी महंगी होगी कि केवल कुछ मुट्ठीभर लोग ही इसका इस्तेमाल कर सकेंगे. उन्होंने 1500 करोड़ रूपये की मुआवजा राशि को भी अपर्याप्त बताया और साथ ही कहा कि जब हादसे के बाद हिरोशिमा जैसी स्थिति हो जाएगी, तो यह मुआवजा किसको बांटेंगे. {mospagebreak}
तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंदोपाध्याय ने विधेयक को वक्त की जरूरत बताते हुए कहा कि फा्रंस की 80 फीसदी ऊर्जा जरूरत परमाणु ऊर्जा से पूरी होती है. मार्क्सवादी बासुदेव आचार्य ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि जापान, दक्षिण कोरिया जैसे देशों में मुआवजा राशि पर कोई सीमा नहीं है और भारत के संबंध में भी ऐसा ही होना चाहिए. उन्होंने सरकार की नीयत पर संदेह करते हुए कहा कि वह इस विधेयक के पारित होने के बाद निजी कंपनियों के प्रवेश का रास्ता खोलने के लिए संशोधन विधेयक लाएगी.
उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका आपूर्तिकर्ता को संरक्षण प्रदान करने के लिए भारत पर उस समझौते में शामिल होने और उसकी पुष्टि करने का दबाव डाल रहा है जिसकी अभी तक 30 देशों में से केवल चार ने पुष्टि की है. शिरोमणि अकाली दल की हरसिमरत कौर ने कहा कि सरकार सुनामी, बाढ़ और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए तो अग्रिम स्तर पर तैयारी करने की स्थिति में नहीं है और ऐसे में परमाणु सुरक्षा की उसकी गारंटी पर किस प्रकार यकीन किया जा सकता है.
राजद के रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा कि सरकार अमेरिका के दबाव में यह विधेयक लायी है और इसमें मात्र 1500 करोड़ रूपये के मुआवजे का प्रावधान मात्र एक मजाक है. सिक्किम डेमोकेट्रिक फ्रंट के बी डी राय ने विधेयक का तो समर्थन किया लेकिन इसके लिए जरूरी सुरक्षा इंतजामात करने का सुझाव दिया.