अगर आपको लगता है कि पिछले कुछ सालों में बोर्ड की परीक्षाओं में में 90 फीसदी नंबर लाने वालों बच्चों की तादाद अचानक बेतहाशा बढ गयी है और इसके पीछे कुछ गड़बड़ है तो आपका शक बिल्कुल सही है. रिकार्डतोड़ नंबरों के पीछे वाकई खेल हो रहा है. लेकिन अगर केन्द्र सरकार की चली तो ये खेल अगले साल से खत्म हो सकता है.
नंबरों को जोड़-तोड़ से बढ़ाने के इस खेल को स्पाइकिंग कहते हैं. अब केन्द्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इसके लिए सीबीएसई समेत देश के आठ बोर्ड्स का एक वर्किंग ग्रुप बनाकर इसे खत्म करने की दिशा में काम शुरू कर दिया है. चूंकि शिक्षा एक ऐसा विषय है जो समवर्ती सूची में आता है. यानी इसे केन्द्र और राज्य सरकारें दोनों देखती हैं इसलिए केन्द्र सरकार इस पर एकतरफा फैसला नहीं कर सकता है. इसके लिए राज्यों के साथ सहमति बनाना जरूरी है. लेकिन देश भर में कुल 41 बोर्ड हैं और नंबरों को मनमाने ढंग से बढ़ाने का खेल रोकने के लिए सबसे साथ सहमति बनाना आसान नहीं होगा.
परीक्षा की कापी जंचने के बाद किसी भी बच्चे को जो नंबर असल में मिलता है उसे Raw Marks कहते हैं यानि वो असली मार्क जो उस स्टूडेंट ने हासिल किया. लेकिन जब रिजल्ट घोषित किया जाता है तब ये नंबर नहीं बताया जाता. रिजल्ट घोषित होने से पहले हर बोर्ड अपने अपने हिसाब से नंबरों को बढाता है ताकि रिजल्ट को बेहतर दिखाया जा सके.
तमाम बोर्ड रिजल्ट घोषित करने से पहले नंबरों को कई वजह से बढाते हैं जिसको Moderation policy कहते हैं. पहली वजह होती है उन स्टूडेंटस् को पास कराना जो महज कुछ नंबर कम होने की वजह से किसी विषय में फेल हो रहे हैं. इन्हें आमतौर पर कुछ ग्रेस मार्क्स देकर पास करा दिया जाता है ताकि कुछ नंबर कम होने की वजह से उनका पूरा साल खराब नहीं हो. बोर्ड की एग्जामिनेशन कमेटी खुद से तय करती है कि किस विषय में कितना ग्रेस मार्क्स रखा जाए. ग्रेस मार्क्स को लेकर कोई विवाद नहीं है और ये आगे भी जारी रहेगा.
ग्रेस मार्क्स के अलावा बोर्ड ये देखते हैं कि किस विषय की परीक्षा में सवाल कठिन होने के बारे में, या सवाल स्पष्ट नहीं होने के बारे में कितनी शिकायत आई है. इसके आधार पर बोर्ड कुछ नंबर तय करता है हर स्टूडेंट के असली नंबर में जोड़ देता है. लेकिन ये नंबर उन्हीं स्टूडेंट्स के मार्क्स में जोड़ा जाता है जिनके नंबर 95 प्रतिशत से कम हों.
आमतौर पर एक ही परीक्षा के लिए सीबीएसई प्रश्नपत्र के तीन सेट तैयार करता है ताकि अगर किसी जगह पर कोई प्रश्नप्रत्र लीक हो जाता है तो परीक्षा रद्द करने के बजाए दूसरे प्रश्नपत्र से परीक्षा करायी जा सके. कई और बोर्ड भी ऐसा ही करते हैं. रिजल्ट तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि सभी सेट के प्रश्नप्रत्र से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स नंबर के मामले में बराबरी पर रहें. इसलिए जिस सेट के नंबर कम हों उसे फिर से बढ़ाया जाता है.
केन्द्र सरकार की चिंता ये है कि एक दूसरे से बेहतर रिजल्ट दिखाने के मुकाबले में बोर्ड बेतहाशा नंबर बढ़ाने के मुकाबले में जुट गये हैं. हाल ये है कि एडमिशन के वक्त 90 फीसदी नंबर लाने वाले स्टूडेंट्स को भी मनचाहे कॉलेज में अपने पसंद का विषय पाने में दिक्कत होने लगी है. तमाम कॉलेज और यूनिवर्सिटी में प्रवेश परीक्षा के बजाय मार्क्स के आधार पर ही एडमिशन होते हैं. इसलिए कई बोर्ड अपने स्टूडेंटस को नंबर देने मे जरूरत से ज्यादा उदारता दिखा रहे हैं.
खुद सीबीएसई के नियमों के मुताबिक , रिजल्ट तैयार करते वक्त इस बात पर भी गौर करना है कि रिजल्ट पिछले साल के मुकाबले खराब नहीं हो. Moderation Policy के इस नियम की वजह से भी नंबर धड़ल्ले से बढ़ाए जा रहे हैं. सीबीएसई तो इसी साल से इस नियम को खत्म करना चाहता था लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद अब ये अगले साल से खत्म किया जाएगा.
इसी साल 24 अप्रैल को दिल्ली में देश के सभी बोर्ड की बैठक हुई थी जिसमें इस बात पर मोटे तौर पर सहमति बनी थी कि नंबर बढ़ाने के खेल पर अंकुश लगाने की जरूरत है. अब सीबीएसई दूसरे बोर्ड्स के साथ बात करके इसके लिए सहमति बनाने की कोशिश करेगा जिसके लिए वर्किंग ग्रुप बनाया जा रहा है.