दिल्ली के सबसे व्यस्त चौराहे ITO के ठीक सामने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) का दफ्तर है. यह दफ्तर देश में उच्च शिक्षा के लिए नियम और मानक तय करता है. इसके ठीक सामने दिल्ली पुलिस का मुख्यालय है. और यहीं पर लगभग तीन महीने से छात्र धरने पर बैठे हुए हैं. दिन-रात मौसम, सरकार, और हिंसा से जूझते हुए. ये सभी अलग-अलग विश्वविद्यालयों के छात्र हैं. इनमें लड़कियां भी शामिल हैं. ये सारे छात्र Occupy UGC आंदोलन का हिस्सा हैं.
क्या है Occupy UGC
7 अक्टूबर 2015 को यूजीसी ने नॉन नेट फेलोशिप बंद करने की घोषणा कर दी. नॉन नेट फेलोशिप सभी केंद्रीय विश्विद्यालयों में एमफिल और पीएचडी में एडमिशन लेने वाले छात्रों को मिलती है. इस फेलोशिप के तहत एमफिल के छात्रों को हर महीने 5 हजार रुपये और पीएचडी स्टूडेंट्स को 8 हजार रुपये प्रतिमाह मिलते हैं. इसी राशि से हजारों स्टूडेंट्स अपना हॉस्टल और खाने-पीने का खर्चा निकालते हैं. यूजीसी के फैसले के विरोध में 21 अक्टूबर को यूजीसी के दफ्तर के बाहर छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन में अलग-अलग विश्विद्यालयों के छात्र शामिल थे. दिन भर यूजीसी दफ्तर के बाहर जमा छात्रों से मिलने कोई नहीं आया.
तीन महीने से सड़क पर हैं छात्र
प्रेम प्रकाश वर्धा हिंदी विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में पीएचडी कर रहे हैं. उन्होंने बताया, 'जब हमारी मांग को सुनने तक कोई नहीं आया तो हम सबने आपस में तय किया कि जब तक हमारी बात सुन नहीं ली जाती हम यहां से हिलेंगे नहीं. ये सिलसिला आज तक चल रहा है. हमारे बीच लगभग 14 अलग-अलग संगठन
आंदोलन में शामिल हैं. दिल्ली के अलावा एएमयू, बीएचयू, एयू सहित देश के कई यूनिवर्सटीज से छात्र मौजूद थे. हमने तब हमने 25 लोगों की एक समिती बनाई जो आंदोलन से जुड़े अहम निर्णय करती है. यूजीसी के फैसले के खिलाफ देश भर में छात्रों ने विरोध किया. कोलकाता में तो यूजीसी रिजनल ऑफिस पर जो प्रदर्शन हुआ उसका क्रूरता से दमन किया गया.
सरकारी रिव्यू कमेटी छात्रों को मंजूर नहीं
28 अक्टूबर को मानव संसाधन मंत्रालय ने इस मसले पर रिव्यू कमेटी बनाने की घोषणा की. रिव्यू कमेटी को रिपोर्ट देना था कि स्कॉलरशिप बढ़ाना है या खत्म करनी है. इसके अलावा कमेटी को यह भी तय करना था कि स्कॉलरशीप देने के लिए मेरिट और आर्थिक आधार के नियम तय करने की भी जिम्मेदारी दी गई. साथ ही कमेटी को इस पर भी सुझाव देना था कि कैसे नॉन नेट फेलोशिफ को स्टेट यूनिवर्सिटी में लाया जा सकता है. छात्रों ने रिव्यू कमेटी के गठन का विरोध किया. प्रेम प्रकाश कहते हैं, 'कमेटी बनाने की मंशा पर ही शक है. हमारी मांग है कि हर रिसर्च करने वाले छात्र को स्कॉलरशिप मिले लेकिन रिव्यू कमेटी इसके लिए मेरिट या आर्थिक आधार जैसे फिल्टर सुझाने वाली थी.' बहरहाल रिव्यू कमेटी को दिसंबर में अपनी रिपोर्ट देनी थी जो वो अभी तक नहीं दे पाई है.
गेट पर मिलीं स्मृति ईरानी
21 अक् टूबर से यूजीसी मेन गेट के सामने छात्र दिन-रात बैठे रहे लेकिन शिक्षा मंत्री से उनकी मुलाकात 5 नवंबर को हो पाई. प्रेम प्रकाश बताते हैं, 'पांच नवंबर को एमएचआरडी के सामने प्रदर्शन किया गया. लेकिन हमेंं मेन गेट के बाहर ही रोक दिया गया. हम सड़क पर ही थे कि अंदर से केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी बाहर आईं. उन्होंने कहा कि हमने पहले ही कह दिया है कि हम नॉन नेट फेलोशिप खत्म नहीं कर रहे. और आगे क्या फैसला होगा वो रिव्यू कमेटी के आधार पर ही होगा. इसके बाद वो अंदर चली गईं. मंत्री जी ने हमें रटा-रटाया जवाब दिया जिससे हम संतुष्ट नहीं थे इसलिए प्रदर्शन जारी रहा.'
क्योंकि पुलिस का डंडा डिग्री नहीं देखता...
प्रेम प्रकाश बताते हैं, '9 दिसंबर को हमने एक नेशनल मार्च निकाला. इस दिन पुलिस सीधे-सीधे लोगों के सर पर लाठी मार रही थी. महिला छात्राओं को भी पुरुष पुलिसकर्मी पीट रहे थे. इसके बाद सबको पार्लियामेंट थाने में बंद कर दिया गया. उस दिन 12 लोग एलएनजेपी अस्पताल में भर्ती थे. हमने पुलिस को कहा कि यह जो बुरी तरह से हमें पीटा गया है महिला छात्राओं को पुरुष पुलिसवालों ने पीटा है इस पर एक एफआईआर दर्ज किया जाए. पुलिस ने कहा कि ऐसी कोई प्रक्रिया ही नहीं है. इसके बाद कई संगठनों के दबाव के बाद पुलिस ने हमारी शिकायत दर्ज की.'
विद्रोही स्थल
इस विरोध में शामिल छात्र देवेश ने एक बेहद खास जानकारी दी.
देवेश ने बताया, 'प्रख्यात क्रांतिकारी कवि रमाशंकर यादव 'विद्रोही ' भी यहां दो बार आए थे. उन्होंने प्रदर्शन में हिस्सा लिया, कविताएं सुनाई. 9 दिसंबर को हमने मार्च कॉल किया था. 8 दिसंबर को इसमें हिस्सा लेने विद्रोही जी आए. उनकी तबीयत ठीक नहीं थी. उन्होंने कहा मैं लेटना चाहता हूं. वो यहीं पंडाल में लेट गए. वहां उनकी तबीयत खराब होने लगी. उनको सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. हमारे कुछ साथी उनको ऑटो में लेकर एलएनजेपी अस्पताल ले गए. वहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. इस जगह को हम विद्रोही स्थल के तौर पर याद करते हैं. हमने तय किया है कि आगे भी यहां कोई प्रदर्शन होगा तो इस जगह को विद्रोही स्थल ही बुलाया जाएगा.
अब सुनिए एक कहानी...
जापान के एक गांव कामी शिराताकी के रेलवे स्टेशन को 3 साल पहले सरकार ने बंद करने का फैसला किया था. लेकिन जब वहां की सरकार को पता चला कि हाईस्कूल में पढ़ने वाली एक लड़की वहां से रोजाना स्कूल जाती है और स्कूल तक पहुंचने के लिए ट्रेन के अलावा और कोई जरिया नहीं है. इस पर सरकार ने फौरन लड़की के लिए ट्रेन को दोबारा शुरू करने का ऑर्डर दिया. साथ ही यह भी कहा कि लड़की के ग्रेजुएशन पास होने तक ट्रेन जारी रहेगी. ट्रेन का शेड्यूल भी लड़की के स्कूल की टाइमिंग पर ही रखा गया. एक तरफ जापान की सरकार शिक्षा के प्रति इतनी संवेदनशील है वहीं भारत में देश की राजधानी में पिछले 83 दिनों से छात्र धरने पर बैठे हैं लेकिन सरकार के पास इनसे मिलने तक का वक्त नहीं है. छात्र 13 जनवरी को मानव संसाधन मंत्रालय के सामने प्रदर्शन करेंगे. अब थके मगर जोश से भरे इन छात्रों की निगाह सरकार के रवैये पर है.