scorecardresearch
 

12 रुपये में पेट भर खाना खिलाने वाले बब्बर को गरियाए मत, पुचकारिए और पूछिए: पता बता दे!

राज बब्बर ने इतना भर कहा कि मुंबई में 12 रुपये में भरपेट खाना खाया जा सकता है, और देश आग बबूला है. पूरी दुनिया में हिंदुस्तानियों को बहस करते समय उनकी तमीज के लिए जाना जाता है. ऐसे में कोई सोच भी कैसे सकता है आम जनता जिसे न अर्थव्यवस्था के बारे में कुछ पता है और न राज चलाने के बारे में कुछ, वह एक सांसद को ज्ञान देगी कि क्या कहा जाए और क्या नहीं.

Advertisement
X

राज बब्बर ने इतना भर कहा कि मुंबई में 12 रुपये में भरपेट खाना खाया जा सकता है, और देश आग बबूला है. पूरी दुनिया में हिंदुस्तानियों को बहस करते समय उनकी तमीज के लिए जाना जाता है. ऐसे में कोई सोच भी कैसे सकता है आम जनता जिसे न अर्थव्यवस्था के बारे में कुछ पता है और न राज चलाने के बारे में कुछ, वह एक सांसद को ज्ञान देगी कि क्या कहा जाए और क्या नहीं. जिस देश के लिए महात्मा गांधी ने अपनी जान दी थी, जिसकी चिंता में नेहरू जी बीमार पड़ गए थे, वह देश ऐसा एहसानफरामोश!

Advertisement

गांधी और नेहरू राजघाट और शांतिवन में ये देखकर कितने अचंभित होंगे कि उनके मुल्क के लोग अपने सांसदों की, अपने नेताओं की इज्जत तक नहीं करते. नेता तो छोड़िए अभिनेता को भी नहीं बख्शा. क्या बीत गए वे दिन, जब हम नेताओं को देखकर श्रद्धा से भर जाते थे और अभिनेताओं पर चवन्नियां छिड़कते थे. यहां एक भला मानुष है, जो एक्टर था और अब सांसद है, वो आपको एक कमाल की चीज बता रहा है, जिससे एक झटके में भुखमरी दूर हो सकती है और आप हैं कि हाय तौबा मचा रहे हैं.

अरे सवाल पूछना ही है तो प्रासंगिक सवाल पूछो कि राज बब्बर साहब, मुंबई में वो जगह कहां है, जहां 12 रुपये में खाना मिलता है. जैसे ही ये सवाल पूछा जाता, बब्बर को अपना बयान वापस लेना पड़ता. न न वो झूठ नहीं बोल रहे, दरअसल यह गोपनीय है और उन्होंने पद और गोपनीयता की शपथ खाई है. किसी सांसद को भी इसका खुलासा करने का हक नहीं है, चाहे वह अभिनेता क्यों ना रहा हो.

Advertisement

खुलासे यहीं नहीं रुकते. एक और सांसद रशीद मसूद के मुताबिक 12 रुपये तो बहुत ज्यादा हैं. शाहखर्ची है पूरी. भरपेट खाना तो पांच रुपये में ही मिल जाता है. अब आप मसूद से पूछ भी नहीं सकते कहां मिलता है इतना सस्ता खाना. क्योंकि अब आप जानते हैं कि ये भी अतिगोपनीय है.

इस नक्कारखाने में एक और आवाज आई फारुख अब्दुल्ला की. उन्होंने ऐसा सवाल पूछा कि बब्बर और मसूद भी बगलें झाकने लगें. इब्न-ए-शेरे-कश्मीर ने लम्बी डकार ली और बोले कि पेट तो एक रुपये में भी भर सकता है. सवाल उठता है कि आप खाना क्या चाहते हैं. इसको कहते हैं प्रासंगिक प्रश्न.

छिछोरी पब्लिक की चकल्लस मानसिकता देखिए. ठहाके लगाने के चक्कर में ये भी नहीं पूछ पाई कि फारुख साहब, ये एक रुपए वाला खाना मिलता कहां है. क्योंकि इसका जवाब गोपनीय नहीं है. भई स्वर्ग में. गर फिरदौस जमीं अस्त, हमीं अस्त, हमीं अस्त. कश्मीर में, और कहां? फारुख की शेखचिल्ली बातों के कश्मीर वाले इतने आदी हो चुके हैं कि उन्हें हंसी भी नहीं आती. हंस भी नहीं सकते. पेट खाली हो तो हंसने से और दुखता है. पर वह भी इतने हंसे की उनकी आंखों में आंसू आ गए. इनकी गोली और आर्मी की गोली, आतंकियों की गोली. उन बेचारों का पेट भर गया है.

Advertisement

मगर बाकी देशवासियों को क्या दिक्कत है? चाहते हैं क्या हैं वे? जब सरकार वादा कर चुकी है कि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में खाना मिलेगा, तो अब क्या उन्हें फाइव-स्टार होटल के रेस्तरां में पकने वाली करी भी परोसी जाए साथ में? ठीक कहते थे गांधी जी. दुनिया में सबकी जरूरतें पूरा करने का भर है, मगर लालच ये किसी का पूरा नहीं कर सकती. किसी छोटे-मोटे कस्बे में भी सड़क किनारे बिकता समोसा 10 रुपये का मिल ही जाता है. लेकिन जब मुफ्त में खाना मिल रहा है, तो तीन समोसे घपोसने की जरूरत क्या है. अगर खट्टी और हरी चटनी के साथ तीन समोसे नहीं खाओगे तो मर तो नहीं जाओगे. मरना-मारना तो मिड डे मील का काम है.

अगर आप की कमाई 31 रुपये रोजाना है. तो मोंटेक मीटर के हिसाब से आप पक्के वाले गरीब हैं. इससे एक रुपये भी ज्यादा कमाया तो आप विजय माल्या वाली कैटिगरी में आ जाएंगे. अमीर हो ना सके, गरीब भी नहीं हो पाए. खैर तो किस्सा ये है कि आपके पास 31 रुपये हैं और आपने सड़क किनारे तीन समोसे खा लिए. तो बचा क्या? एक रुपइया. अब इतने में घर कैसे पहुंचोगे? इंदिरा गांधी मुफ्त ट्रांसपोर्ट योजना तो अगली यूपीए सरकार लाएगी. वो तब आएगी जब आप वोट देंगे राज बब्बर, रशीद मसूद और फारुख अब्दुल्ला जैसों को. वह दिन जल्दी आएगा जब आप को ये डिसाइड करना पड़ेगा कि 30 रुपये के 3 समोसे खाके मुफ्त यात्रा की योजना का लाभ उठाना है या नहीं.
तब तक के लिए समोसे रहने दो, बस की टिकिट खरीद लो.

Advertisement

खाने से याद आया कि आज अपने नेताओं का बयान सुनकर एक अतिउत्साही कांग्रेस कार्यकर्ता बढ़िया से रेस्तरां में गया और वेटर से बोला, हमारे पास 12 रुपया है, क्या भरपेट खाना खिलाओगे. वेटर बोला: जूते खाओगे?

Advertisement
Advertisement