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ओह एड्स पीड़ि‍त... समाज के डर से ये क्या कर डाला?

मध्य प्रदेश के छतरपुर में इंजीनियर प्रवीण मानवर ने जांच कराई तो पता चला वो एचआईवी पॉजिटिव हैं. फिर उन्होंने पत्नी की जांच कराई तो उनका भी टेस्ट पॉजिटिव रहा. बाद में हुई जांच में दोनों बच्चियों के भी एचआईवी पॉजिटिव होने का पता चला. बस इसके बाद ही 40 साल के प्रवीण डिप्रेशन में चले गए. फिर जो हुआ, वह रोंगटे खड़े कर देने वाला है.

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मध्य प्रदेश के छतरपुर में इंजीनियर प्रवीण मानवर ने जांच कराई तो पता चला वो एचआईवी पॉजिटिव हैं. फिर उन्होंने पत्नी की जांच कराई तो उनका भी टेस्ट पॉजिटिव रहा. बाद में हुई जांच में दोनों बच्चियों के भी एचआईवी पॉजिटिव होने का पता चला. बस इसके बाद ही 40 साल के प्रवीण डिप्रेशन में चले गए. फिर जो हुआ, वह रोंगटे खड़े कर देने वाला है.

एक इंजीनियर अपनी पत्नी और दो बच्चियों की हत्या कर देता है. फिर तीन बार खुदकुशी की कोशिश करता है. जब उसमें भी नाकाम रहता है, तो जाकर पुलिस के सामने सरेंडर कर देता है. कहने को तो इस घटना की वजह एक बीमारी रही. एक बीमारी जो शायद बहुत बाद में जानलेवा साबित होती. लेकिन ये महज तकनीकी वजह बनी. असल वजह तो समाज का भय रहा. तो क्या समाज का भय किसी बीमारी से भी ज्यादा भयावह है? यह घटना तो यही इशारा कर रही है.

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क्यों किया प्रवीण ने ऐसा?
पुलिस को दिये बयान में प्रवीण ने बताया कि पत्नी शिल्पा से सलाह के बाद उन्होंने आत्महत्या करने का फैसला किया. योजना के मुताबिक अपने होम टाउन अमरावती से लौटते वक्त प्रवीण ने बैतूल में कार में आग लगा कर पत्नी शिल्पा और दोनों बच्चियों की हत्या कर दी. प्रवीण ने पुलिस को बताया कि उसके बाद उन्होंने तीन बार आत्महत्या की भी कोशिश की, लेकिन उसमें नाकाम रहा. फिर घटना के सात दिन बाद अमरावती जाकर महाराष्ट्र पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया. पुलिस ने हत्या का मुकदमा दर्ज प्रवीण को गिरफ्तार कर लिया है.

ये सही है कि प्रवीण या उनकी पत्नी में से कोई एक बीमारी का शिकार हुआ होगा. हो सकता है दोनों एचआईवी पॉजिटिव रहे हों या फिर एक से दूसरे को संक्रमण हुआ हो - और मां-बाप से बच्चे प्रभावित हुए. लेकिन क्या बीमारी की बस वही वजह रही होगी जिस ओर हमारे समाज का ध्यान सबसे पहले जाता है? संक्रमित खून की वजह से भी तो ये बीमारी हो सकती है. फिर घूम फिर के हमारा ध्यान एक ही तरफ क्यों जाता है? और उसकी वजह से पीड़ित इस कदर खौफजदा हो जाता है कि आखिरी कदम उठाने को मजबूर हो जाता है. अगर कोई एचआईवी पीड़ित है तो क्या उसे बाइज्जत जिंदा रहने का हक नहीं है. आखिर किसी से ये हक कोई कैसे छीन सकता है?

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कैंसर भी तो जानलेवा है
लोग कैंसर जैसी बीमारी से तो लड़ लेते हैं. शायद इसीलिए कि उसमें हर कोई साथ होता है. घर-परिवार साथ होता है. आस-पड़ोस साथ होता है. दोस्त, रिश्तेदार सभी साथ होते हैं. ये साथ आखिर एचआईवी पॉजिटिव लोगों से अचानक दूर क्यों हो जाता है?

एक डॉक्यूमेंट्री - इंडियाज डॉटर - कई वजहों से इन दिनों सुर्खियों में है. बलात्कारी क्या सोचता है उस पर चर्चा हो रही है. चर्चा इस बात पर हो रही है कि बलात्कारी पीड़ित को किस नजरिये से देखता है?

शायद हमारा समाज भी एचआईवी पॉजिटिव या एड्स पीड़ित को उससे अलग नजर से नहीं देखता. यही वजह है कि रोगी समाज से इतना डर जाता है कि बीमारी से लड़ने का तो सोच भी नहीं पाता.

समाज का ये खौफ इतना एकतरफा क्यों है? निर्भया के हमलावरों पर इस समाज का खौफ क्यों नहीं होता? उबर के टैक्सी ड्राइवर को समाज का ये खौफ क्यों नहीं होता? आखिर कब तक प्रवीण जैसे लोग अपनी खुशहाल जिंदगी का ऐसा दर्दनाक अंत करने को मजबूर होते रहेंगे?

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