जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को विधानसभा में अफजल गुरु के लिए सम्मानसूचक शब्द का इस्तेमाल करते हुए उसके नाम के अंत में 'साहिब' जोड़ दिया.
अफजल गुरु को 2001 के संसद हमले में दोषी सिद्ध होने के बाद 9 फरवरी को फांसी दी गई थी. विपक्ष ने सोमवार को विधानसभा में मुख्यमंत्री पर अफजल गुरु की जान न बचाने का आरोप लगाया. इसके बाद उमर अब्दुल्ला का गुस्सा देखने लायक था.
अफजल गुरु मामले पर विधानसभा में लाए गए स्थगन प्रस्ताव पर उमर अब्दुल्ला ने कहा कि यहां ऐसे बताया जा रहा है जैसे मैं ही उसकी मौत के लिए जिम्मेदार हूं. उनके (विपक्ष के) भाषणों से ऐसा मालूम पड़ता है जैसे मैंने ही उसके गले में फंदा डाला और फांसी पर लटका दिया.
अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के बाद कश्मीर घाटी में बिगड़े हालात से निपटने में सरकार की भूमिका की तारीफ करने वाला एक भाषण तैयार किया गया था. इसमें उमर अब्दुला ने गुरु की फांसी को 'राजनीतिक' बताया.
अफजल गुरु की फांसी की खबर फैलने के बाद प्रशासन द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को जायज ठहराते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि हां, हमारी सरकार ने प्रतिबंध लगाए थे. लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा. समाचार पत्र नहीं बिके, लेकिन हमने लोगों की जान बचा ली, जान-माल का नुकसान न हो, यही हमारी मुख्य चिंता थी.
उन्होंने कहा कि 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाई थी. उस समय राज्य सरकार ने 21 दिनों के लिए कर्फ्यू लगाया था.
विपक्षी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की तीखी आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि पीडीपी अपने निहित स्वार्थ के लिए ऐसे वाकयों को इस्तेमाल करना चाहती है. उसे अफजल गुरु के परिवार और राज्य के लोगों के लिए थोड़ी सी भी फिक्र नहीं है. वे खून पर गंदी सियासत का खेल खेलना चाहते हैं. वे लोगों को भटकाने के लिए घड़ियाली आंसू बहाते हैं. उनका पूरा अतीत लोगों के सामने है.