कश्मीर घाटी में संकट के हल्के होने के संकेतों के बीच जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को कहा कि राज्य में जो कोई भी वार्ता के लिए इच्छुक है उसके साथ केन्द्र की वार्ता होनी चाहिए.
वस्तुत: हुर्रियत और तमाम तरह के अलगाववादियों के साथ वार्ता की हिमायत कर रहे उमर ने कहा, ‘मैं समझता हूं कि केन्द्र को हर उस शख्स से बात करनी चाहिए जो वार्ता का इच्छुक है और उन सभी से संपर्क करना चाहिए जो वार्ता के अनिच्छुक हैं.’
उन्होंने 10 साल पहले हिज्बुल मुजाहिदीन के साथ केन्द्र की वार्ता की मिसाल पेश करते हुए कहा, ‘मैं समझता हूं कि 2000 में हुई वार्ता की मिसाल दी जा सकती है जहां संघषर्विराम के नतीजे के तौर पर हिज्बुल मुजाहिदीन के साथ वार्ता शुरू की गई थी.’ {mospagebreak}
उमर ने कहा, ‘स्वाभाविक रूप से अब इसके लिए दरकार होगा (क) इसके लिए ढेर सारा जमीनी काम, (ख) वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए किसी तरह का संघषर्विराम. लेकिन मैं समझता हूं कि इसे करना चाहिए.’
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि केंद्र को ‘वर्ष 2000 की ट्रैक 2 कूटनीति जैसे प्रयासों पर फिर से जोर देना चाहिए जिससे संघषर्विराम और वार्ता का मार्ग प्रशस्त हुआ.’ करीब एक घंटे तक चले साक्षात्कार में उन्होंने विभिन्न सवालों के जवाब दिए. इन मुद्दों में संकट से निबटना, सेना को बुलाए जाने का विवादास्पद फैसला और पिछले दिनों आंदोलन में आगे रहे युवाओं की समस्याओं को दूर करने की अपनी योजना शामिल हैं.
अपने आलोचकों पर बरसते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि संकट आने पर विरोधी ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि कुछ हफ्ते पहले जैसे ही संकट का दौर शुरू हुआ तो प्रभावशाली स्तंभकारों और लेखकों एवं तथाकथित कश्मीर विशेषज्ञों ने उनकी सरकार के गिरने की बात शुरू कर दी. इस संदर्भ में उन्होंने अपने गठबंधन सहयोगी कांग्रेस के रुख का स्वागत किया जो राज्य नेतृत्व में किसी परिवर्तन के खिलाफ था. ‘स्वाभाविक है कि जो संकेत बाहर जाता है उससे मदद मिलती है. उस बहस का जल्दी खत्म होना मददगार साबित हुआ.’ {mospagebreak}
यह पूछे जाने पर कि संकट से निबटने में उन्होंने जो तरीका अपनाया उसके लिए उन्हें कोई अफसोस है, अब्दुल्ला ने कहा, ‘नहीं, मैं जब वास्तविक संकट की ओर देखता हूं, मुझे अफसोस होता है कि संकट पैदा हुआ.’ लेकिन एक बार जब संकट शुरू हो गया, तो वह उससे अलग तरीके से नहीं निबट सकते थे.
अब्दुल्ला ने कहा कि हमारी स्थिति में खेद व्यक्त करना आसान था लेकिन उनकी सरकार को श्रेय दिया जाना चाहिए कि पिछले हफ्ते घाटी के लोगों की भावना को देखते हुए घाव भरने और नाराजगी कम होने के लिए समय देने के अलावा पहले की ही भांति शब-ए-मेराज इबादत का मौका दिया गया. सोमवार को हुयी सर्वदलीय बैठक में पारित प्रस्ताव का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि धारणा है कि भारत और पाकिस्तान बातचीत से जम्मू-कश्मीर को सबसे अधिक लाभ होगा.
उन्होंने कहा, ‘वे लोग चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान की सरकारों को एक दूसरे से बातचीत करनी चाहिए तथा उन्हें जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर भी इस सोच के साथ बात करनी चाहिए कि हमारी समस्याओं का दीर्घावधिक समाधान हो.’ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अपील के बावजूद पीडीपी द्वारा सर्वदलीय बैठक का बहिष्कार करने पर पार्टी की आलोचना करते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि उसने ‘दीर्घावधिक कीमत पर अल्पकालिक राजनीतिक लाभ के लिए’ ऐसा किया. {mospagebreak}
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका रचनात्मक या विनाशकारी होती है और ‘मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि दुर्भाग्य से पीडीपी ने रचनात्मक रवैया नहीं अपनाया.’ अब्दुल्ला ने कहा कि वह ऐसे विचार से अवगत नहीं हैं कि कांग्रेस का एक वर्ग पीडीपी के साथ गठबंधन के लिए उन्हें छोड़ने के पक्ष में है. ‘मुझे केंद्र स्तर पर या राज्य स्तर पर ऐसा कोई संकेत नहीं दिखा है.’
उन्होंने कहा ‘निश्चित तौर पर हम सब राज्य की स्थिति को लेकर चिंतित थे. हमें न सिर्फ केंद्र सरकार से पूरा समर्थन मिला बल्कि राज्य की गठबंधन सरकार के घटकों की ओर से भी पूरी मदद मिली.’ पिछले हफ्ते नागरिक प्रशासन की मदद के लिए सेना तैनात किए जाने के बारे में उन्होंने कहा कि यह सुरक्षा से संबंधित मुद्दा था.
सेना को औपचारिक रूप से वापस बैरक में भेजे जाने का फैसला भी सरकार पर ही छोड़ देना चाहिए. राज्य में छह लाख युवाओं के बेरोजगार होने के बारे में उन्होंने कहा कि राज्य के पास समस्या से निबटने के लिए संसाधन नहीं हैं और वह इस संबंध में केंद्र से मदद मांगेगा.