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अयोध्या मामले पर चिदंबरम ने कहा, फैसले के विश्लेषण की जरूरत

अयोध्या मामले में मालिकाना हक विषय पर अदालती फैसले से पहले गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि जल्दबाजी में इस निष्कर्ष पर पहुंचना सर्वथा अनुपयुक्त होगा कि किसी एक पक्ष की जीत हुई है और दूसरे पक्ष की हार.

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अयोध्या विवाद का इलाहाबाद उच्च न्यायालय की विशेष खंडपीठ द्वारा 24 सितंबर को फैसला सुनाये जाने से पहले केन्द्र सरकार ने बुधवार को मुकदमे के संबद्ध पक्षों और आम जनता से निर्णयों पर अपनी राय देने में संयम बरतने की अपील करते हुए कहा कि जल्दबाजी में किसी ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचना अनुचित होगा कि कोई एक पक्ष ‘जीत गया’ है या दूसरा पक्ष ‘हार गया’है.

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केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के स्वामित्व से संबंधित मुकदमों पर जारी एक बयान में कहा, ‘यह संभव है कि तीन न्यायाधीशों की विशेष खंडपीठ द्वारा एक या अधिक निर्णय सुनाये जाएं. इन निर्णयों को सावधानीपूर्वक पढ़ना होगा तथा कोई निष्कर्ष निकालने से पूर्व प्रत्येक मुद्दे पर माननीय न्यायाधीशों के निर्णयों का विश्लेषण बारीकी से करना होगा.’

उन्होंने कहा, ‘मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि जल्दबाजी में किसी ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचना अनुचित होगा कि एक पक्ष जीत गया है अथवा दूसरा पक्ष हार गया है.’ गृह मंत्री ने कहा, ‘मैं मुकदमे से संबंधित सभी पक्षों तथा आम जनता के साथ साथ मीडिया से यह अपील करूंगा कि वे विशेष खंडपीठ के निर्णय अथवा निर्णयों पर अपनी राय देने पर संयम बरतें और जल्दबाजी में कोई बयानबाजी न करें.’ {mospagebreak}

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चिदंबरम ने कहा कि यह मानना तर्कसंगत होगा कि एक अथवा दोनों पक्ष उन मुद्दों पर, जिनके बारे में उनमें से कोई भी पक्ष यह समझे के उसके खिलाफ निर्णय दिया गया है, उच्चतम न्यायालय में अपील करने की अनुमति लेने के लिए उच्च न्यायालय की विशेष खंडपीठ में तत्काल आवेदन प्रस्तुत करेगा. उन्होंने संविधान के अनुच्छेद-134-क का हवाला देते हुए कहा कि इसमें पीड़ित पक्ष को अनुमति दी गयी है कि वह निर्णय पारित होने के तुरंत बाद इस बारे में मौखिक रूप से आवेदन कर सकता है.

चिदंबरम ने कहा, ‘जब तक मुकदमों के पक्षकार निर्णय अथवा निर्णयों का अध्ययन करें और अगले कदमों पर विचार करें, मैं आम जनता से अपील करूंगा कि तब तक वह न्यायालय के निर्णय को कानूनी प्रक्रिया की परिणति के रूप में ले, जिसका हमें सम्मान करना चाहिए और स्वीकार करना चाहिए.’

उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों को सलाह दी गयी है कि वे विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए पर्याप्त उपाय करें. केन्द्र ने भी राज्य सरकारों की मदद के लिए अनेक उपाय किये हैं. ‘किसी को भी किसी तरह की शंका रखने की आवश्यकता नहीं है और यदि प्रत्येक व्यक्ति समाज के प्रति अपने दायित्वों को समझता है तो हम साथ साथ काम करते हुए यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि शांति व्यवस्था और सौहार्द्र बना रहेगा. {mospagebreak}

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गृह मंत्री ने कहा कि सरकार इस बात से खुश है कि मुकदमों के पक्षकारों से संबंधित संगठनों सहित कई अन्य संगठनों ने जनता से अपील की है कि वह निर्णय के बाद शांति और संयम बनाये रखे.

चिदंबरम ने कहा, ‘सभी संबंधित संगठनों का यह दायित्व है कि वे शांति बनाये रखने के लिए सक्रियता से कार्य करें. विशेष रूप से सभी संगठन अपने सदस्यों पर इस बात के लिए जोर डालें कि वे अफवाहें न फैलायें और भड़काउ बयान न दें. यह महत्वपूर्ण है कि राज्य सरकार और जिला प्रशासन, वार्ड अथवा पंयायत या मुहल्लों के निवासियों को शामिल कर बनी शांति समितियां सक्रिय की जाएं और इन समितियों से अनुरोध किया जाए कि वे एकदम चौकस रहें और जैसे ही गड़बड़ी का कोई संकेत मिले, स्थिति को संभाल लें.’

उन्होंने कहा कि सरकार को पूरी आशा है कि जनता के सभी वर्ग शांति, व्यवस्था, सौहार्द्र और अमन कायम करने में सरकार का सहयोग करेंगे. चिदंबरम ने कहा कि स्वामित्व से संबंधित चार मुकदमे हैं. हर मुकदमे में अनेक मुददे हैं, ये मुद्दे निचली अदालतों द्वारा तैयार किये गये, उच्च न्यायालय द्वारा इन्हें फिर से तैयार किया गया, उच्च न्यायालय द्वारा अतिरिक्त मुद्दे तैयार किये गये और एक मामले में उच्चतम न्यायालय के कुछ आदेशों के बाद मुददे फिर से तैयार किये गये.

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उन्होंने कहा कि ये मुद्दे तथ्य और कानून के जटिल प्रश्नों से संबंधित हैं. तथ्य से जुडे प्रश्नों, जिनको प्रस्तुत किया जा रहा है, में कब्जा, बेदखली, पूजा आदि से संबंधित प्रश्न शामिल हैं. कानून से जुडे प्रश्नों, जिनकों प्रस्तुत किया जा रहा है, में मुकदमों की पोषणीयता, प्रतिकूल कब्जा, लिखित आदेश, विबंधन, सीमा, पूर्व न्याय, उत्तर प्रदेश मुस्लिम वक्फ कानून, 1936 की व्याख्या आदि से संबंधित प्रश्न शामिल हैं.

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