scorecardresearch
 

क्या मोदी सरकार की परिवारवाद के खिलाफ लड़ाई सिर्फ सियासी शिगूफा भर है?

यह अलग बात है कि इन उपचुनावों में कई सीटों पर विपक्ष की एकतजुटता और कहीं कहीं स्थानीय समीकरण के चलते वंशवादी राजनीति पर सवार होकर जनप्रतिनिधि बनने का कई प्रत्याशियों का सपना धराशायी हो गया, लेकिन परिवारवाद की सियासत का सवाल पूर्ववत कायम रहा.

Advertisement
X
मृगांका सिंह
मृगांका सिंह

Advertisement

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर गांधी परिवार पर हमला बोलते हुए वंशवाद की राजनीति को कोसते रहते हैं. उनके भाषणों से लगता है कि उनकी पार्टी इस बीमारी से मुक्त होगी या उनके प्रभाव के चलते दूसरे दल इससे परहेज करना शुरू कर देंगे, लेकिन लोकसभा की चार और विधानसभा की 10 सीटों पर हुए उपचुनावों में वंशवाद ही वंशवाद नजर आया. खुद बीजेपी भी इससे अछूती नहीं रही.

चार लोकसभा और 10 विधानसभा की अधिकतर सीटें जन प्रतिनिधियों की मृत्यु या प्रतिनिधियों के इस्तीफे की वजह से रिक्त हुई थीं, जिसकी वजह से यहां उपचुनाव कराने पड़े. 2014 के लोकसभा चुनाव में कैराना संसदीय सीट से बीजेपी के हुकुम सिंह ने जीत दर्ज की थी. इसी साल 3 फरवरी को उनका निधन हो जाने के चलते अब वहां उपचुनाव हुए हैं. बीजेपी ने किसी दूसरे पर भरोसा जताने के बजाय वंशवादी राजनीति की लीक पर चलना बेहतर समझा और हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को उम्मीदवार बनाया. वहीं राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) की उम्मीदवार तबस्सुम हसन भी दिवंगत पूर्व सांसद मुनव्वर हसन की पत्नी हैं.

Advertisement

महाराष्ट्र के पालघर और गोंदिया-भंडारा लोकसभा सीट पर भी यही तस्वीर देखने को मिली. बीजेपी के दिवंगत सांसद चिंतामण वनगा के निधन के कारण पालघर सीट पर उपचुनाव हुआ, जबकि भंडारा-गोंदिया से बीजेपी सांसद नाना पटोले संसद और पार्टी की सदस्यता से त्यागपत्र देकर इस वर्ष की शुरुआत में कांग्रेस में शामिल हो गए थे. इस वजह से यह सीट खाली हुई थी. पालघर सीट पर शिवसेना ने बीजेपी के दिवंगत सांसद चिंतामण वनगा के बेटे श्रीनिवास वनगा को उम्मीदवार बनाया था. वहीं बीजेपी ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आने वाले राजेंद्र गावित को उम्मीदवार बनाया.

परिवार का कब्जा

बिहार में जोकीहाट उपचुनाव में भी परिवारवाद हावी रहा. जदयू विधायक सरफराज आलम के त्यागपत्र के कारण जोकीहाट सीट खाली हुई थी. तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद सरफराज आलम ने विधानसभा की सदस्यता छोड़कर अररिया लोकसभा सीट से आरजेडी के टिकट पर चुनाव जीता है. सरफराज के भाई शाहनवाज आलम आरजेडी के टिकट पर महागठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर जोकीहाट उपचुनाव में उतरे और जीते.

वैसे जोकीहाट विधानसभा सीट पर शुरू से ही तस्लीमुद्दीन के परिवार का प्रभाव रहा है. इस विधानसभा क्षेत्र का गठन 1969 में हुआ था. तब से लेकर अब तक यहां कुल 15 बार चुनाव हो चुके हैं. इनमें से 10 बार तस्लीमुद्दीन के परिवार का कब्जा रहा. 10  में से भी 5 बार तो तस्लीमुद्दीन ही जीते थे. चार बार उनके बड़े बेटे सरफराज ने जीत हासिल की थी. अब छोटे बेटे शाहनवाज ने यहां से जीत हासिल की है.

Advertisement

महाराष्ट्र की पलूस-कडेगाव विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के विश्वदजीत कदम ने निर्विरोध जीत हासिल कर ली है. यह सीट विश्वसजीत के पिता और वरिष्ठे कांग्रेस नेता पतंगराव कदम के निधन से खाली हुई थी.

इसी तरह झारखंड के गोमिया और सिल्ली विधानसभा सीट से झामुमो के पूर्व विधायक अमित महतो की पत्नी सीमा महतो और झामुमो के पूर्व विधायक योगेंद्र महतो की धर्म पत्नी बबीता महतो ने जीत दर्ज की.

यह अलग बात है कि इन उपचुनावों में कई सीटों पर विपक्ष की एकतजुटता और कहीं-कहीं स्थानीय समीकरण के चलते वंशवादी राजनीति पर सवार होकर जनप्रतिनिधि बनने का कई प्रत्याशियों का सपना धराशायी हो गया, लेकिन परिवारवाद की सियासत का सवाल पूर्ववत कायम रहा.

कहीं सही साबित न हो जाए विज्ञानियों की चिंता

लोकसभा चुनाव 2014 के परिणामों के आधार पर न्यूयार्क विश्वविद्यालय की राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर कंचन चंद्रा का दावा था कि 16वीं लोकसभा में आने वाले सांसदों की संख्या में काफी कमी आई है. मगर उनसे पहले भारतीय राजनीति में वंशवादी राजनीति के संदर्भ में कुछ नए डेटा देते हुए इतिहासकार पैट्रिक फ्रेंच ने 2012 में भारत के बारे में कहा कि यदि यही ढर्रा चलता रहा तो भारत की दशा उन दिनों जैसी हो जाएगी, जब यहां राजा-महाराजाओं का शासन हुआ करता था.

Advertisement

पैट्रिक फ्रेंच की चिंता थी कि लोकसभा 'राजनीतिक घरानों की संसद' हो जाएगी. अगर लोकसभा और विधान सभा चुनावों में यही पैटर्न चलता रहा तो पैट्रिक फ्रेंच की चिंता को सही साबित होने से कौन रोकेगा.

Advertisement
Advertisement