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महात्मा गांधी पर साध्वी प्राची चलीं काटजू की राह

क्या साध्वी प्राची और जस्टिस मार्कंडेय काटजू में कोई समानता है? फिलहाल इस सवाल का जवाब है - 'हां'. थोड़ा विस्तार से कहें तो दोनों ने ही महात्मा गांधी को ब्रिटिश एजेंट करार दिया है.

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साध्वी प्राची
साध्वी प्राची

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क्या साध्वी प्राची और जस्टिस मार्कंडेय काटजू में कोई समानता है? फिलहाल इस सवाल का जवाब है - 'हां'. थोड़ा विस्तार से कहें तो दोनों ने ही महात्मा गांधी को ब्रिटिश एजेंट करार दिया है.

एक स्कूली छात्रा का रिसर्च
महात्मा गांधी कौन थे? उन्हें राष्ट्रपिता क्यों कहते हैं? लखनऊ की एक स्कूली छात्रा ऐश्वर्या पाराशर को पहले सवाल का जवाब तो मिल गया था, लेकिन दूसरे प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा था. फिर सूचना के अधिकार की मदद से उसने पता लगाया कि केंद्र सरकार के पास महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता घोषित करने का कोई अभिलेख नहीं है. महात्मा गांधीजी को बस आदरपूर्वक राष्ट्रपिता कहा जाता है. इसी तरह कुछ और स्कूली छात्रों ने अपने मां-बाप, टीचर और किताबों की मदद ली और पाया कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने पहली बार सिंगापुर रेडियो से अपने संदेश महात्मा गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया था. उसके बाद 30 जनवरी, 1948 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रेडियो पर ही राष्ट्र के नाम संदेश में कहा कि 'राष्ट्रपिता अब नहीं रहे.'

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जस्टिस काटजू का अनुसंधान
जो सवाल ऐश्वर्या के मन में था शायद वैसा ही जस्टिस मार्कंडेय काटजू के मन में भी रहा होगा. काटजू ने रिसर्च किया तो कुछ नया ही खोज निकाला. फिर 10 मार्च को जस्टिस काटजू ने एक ट्वीट किया. अपने ट्वीट में उन्होंने कहा, "गांधी अंग्रेजों के एजेंट थे, और सुभाष चंद्र बोस जापानियों के एजेंट थे. दोनों एजेंटों में ज्यादा फर्क नहीं है." जस्टिस काटजू ने ब्लॉग पर एक पोस्ट लिखा 'गांधी- ए ब्रिटिश एजेंट'. इस पोस्ट में काटजू ने बताते हैं कि महात्मा गांधी अंग्रेजों के 'फूट डालो और राज करो' की नीति पर काम करते थे. काटजू का कहना है कि गांधी अंग्रेजों के एजेंट थे, जिन्होंने भारत को नुकसान पहुंचाया.

अपनी बात के समर्थन में काटजू ने कुछ उदाहरण भी पेश किए हैं. काटजू का कहना है कि गांधी आद्योगिकीकरण नहीं बल्कि चरखा चलाने का प्रचार करना चाहते थे. उनका कहना है कि गांधी के भाषण और लेखों को देखने पर लगता है कि उनका झुकाव और जोर हिंदू धर्म के विचारों की ओर ज्यादा था (जैसे रामराज्य, गौरक्षा आदि). काटजू पाते हैं कि गांधी की सभाओं में अक्सर हिंदू भजन 'रघुपति राघव राजा राम' के बोल सुनाई देते थे. काटजू आगे लिखते हैं, "20वीं सदी में अंग्रेज शासकों के खिलाफ जो क्रांतिकारी आंदोलन खड़ा हुआ था, जिसे चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरू, राम प्रसाद बिस्मिल आदि द्वारा शुरू किया गया था उसे महात्मा गांधी ने अपने आंदोलन में बदल लिया.

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साध्वी प्राची का अंवेषण
अपने धारदार बयानों के बूते मीडिया में सुर्खियां बटोरने में माहिर साध्वी प्राची ने जस्टिस काटजू की लाइन ले ली है. अपने ताजा बयान में विश्व हिन्दू परिषद नेता साध्वी प्राची ने कहा, 'देश को आजादी गांधी के तकली, चरखे से नहीं मिली. वो तो भगत सिंह और सावरकर जैसों की देन है. गांधी तो अंग्रेजों के एजेंट थे.'

पहले भी आए बापू पर बयान
1. विश्व हिंदू परिषद नेता आचार्य धर्मेद्र ने एक बार कहा था कि कोई डेढ़ पसलीवाला, बकरी का दूध पीने और सूत कातने वाला व्यक्ति भारत का राष्ट्रपिता नहीं हो सकता.

2. मशहूर लेखिका अरुंधति रॉय ने केरल यूनिवर्सिटी में अपने भाषण में महात्मा गांधी को जातिवादी बताया था. रिपोर्ट के मुताबिक रॉय ने ये भी सलाह दे डाली कि अब वक्त आ गया है कि गांधी के नाम पर बने विश्वविद्यालयों के नाम बदल देने चाहिए - और शुरुआत महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी से ही करनी चाहिए.

हिंदू नेताओं के विवादित बयानों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयम बरतने की सलाह दे चुके हैं. लेकिन हिंदू नेताओं पर उसका कोई असर नहीं हुआ है. जस्टिस काटजू के बयान की तो संसद में निंदा हो चुकी है. क्या साध्वी के बयान पर भी संसद में निंदा प्रस्ताव पारित किया जाएगा?

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