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डगमगा रही हैं ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ और ‘मुफ्त राशन’ योजना, कम ही मजदूरों को मिला लाभ

जुलाई 2020 तक इलेक्ट्रॉनिक्स प्वॉइंट ऑफ सेल के माध्यम से से राज्यों के बीच सिर्फ 2,000 लेनदेन हुए. इसका मतलब है कि एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड योजना से मुश्किल से 13,000 प्रवासियों को लाभ पहुंचा.

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एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड योजना का लाभ कम ही मजदूरों को मिला (फोटो- PTI)
एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड योजना का लाभ कम ही मजदूरों को मिला (फोटो- PTI)

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  • जुलाई तक योजना के तहत सिर्फ 31,500 किलोग्राम खाद्यान्न बांटा गया
  • मार्च 2021 तक पूरे देश को कवर करने का लक्ष्य पूरा होना मुश्किल

‘मुफ्त राशन’ और ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’, ये वो दो कदम थे जो केंद्र सरकार ने कोरोना लॉकडाउन में भूख और अभावों से लाचार प्रवासियों के लिए उठाए. लेकिन क्या जिनके लिए ये योजनाएं लाईं गईं, उन्हें इसका पूरा लाभ मिला. तो जवाब है ‘नहीं’.

‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’: कछुआ रफ्तार से अमल

जुलाई 2020 तक, ePoS (इलेक्ट्रॉनिक्स प्वॉइंट ऑफ सेल) के माध्यम से राज्यों के बीच सिर्फ 2,000 लेनदेन हुए. इसका मतलब है कि ‘एक राष्ट्र, एक राशन’ कार्ड योजना से मुश्किल से 13,000 प्रवासियों को लाभ पहुंचा. इसके जरिए बांटा गया कुल खाद्यान्न 31,500 किलोग्राम था. ये जानकारी खाद्य विभाग के अधिकारियों ने इस हफ्ते के शुरू में श्रम पर संसदीय समिति को दी.

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अगर सरकार के दावों से तुलना की जाए कि 24 राज्यों और 90% राशन की दुकानों को योजना से जोड़ा जा चुका है तो 31,500 किलोग्राम अनाज का आंकड़ा ऊंट के मुंह में जीरा ही नजर आता है.

भारत में कुल 5.35 लाख फेयर प्राइस शॉप्स (उचित मूल्य दुकानें) हैं जो देश में 23 करोड़ राशन कार्ड वालों की जरूरतों को पूरा करती हैं. पिछले तीन महीनों में पलायन की दूसरी लहर देखी जा रही है क्योंकि प्रवासी श्रमिक धीरे-धीरे अपने काम वाली जगहों पर लौट रहे हैं. ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना का मकसद असल में ऐसे लोगों की ही दिक्कतें दूर करना है.

खाद्य और जन वितरण विभाग ने एक तरह से जुलाई 2020 के लिए अपनी मासिक रिपोर्ट में लगभग स्वीकार किया है कि ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड योजना’ अपना असर छोड़ने के लिए जूझ रही है.

जुलाई की रिपोर्ट का पैराग्राफ 3 कहता है, "पीडीएस सुधारों के तहत, कुल 4.88 लाख (90.4%) फेयर प्राइस दुकानों (FPSs) को इलेक्ट्रॉनिक्स प्वाइंट ऑफ सेल (ePoS) डिवाइसेज से जोड़ा गया है.”

रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना के तहत नेशनल/इंटर-स्टेट पोर्टेबिलिटी सुविधा जम्मू और कश्मीर, मणिपुर, नगालैंड और उत्तराखंड जैसे 4 राज्यों/यूटी में उपलब्ध कराई गई है. ये अगस्त, 2020 के वितरण माह से ही शुरू है.

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विभाग का दावा है कि इन 4 राज्यों/यूटी के एकीकरण के साथ कुल 24 राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश अब राष्ट्रीय पोर्टेबिलिटी के सिंगल कलस्टर में एकीकृत हैं. वहीं रिपोर्ट का पैराग्राफ 3 साफ कहता है- "हालांकि, कोविड-19 से जुड़े कारणों की वजह से लेनदेन की संख्या रही है.“

खाद्य और जन वितरण विभाग की जुलाई 2020 रिपोर्ट

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पीडीएस आउटलेट मालिकों का कहना है कि कनेक्टिविटी मुद्दों के कारण दूर दराज के इलाकों में ePoS सिस्टम काम नहीं कर रहा है. EPoS सुविधा ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड योजना’ के लिए अहम है.

इससे किसी भी श्रमिक को कार्ड की पोर्टेबिलिटी दी जा सकेगी- यानि श्रमिक देश में कहीं भी पीडीएस योजना का लाभ उठा सकेगा. जबकि पहले जिस इलाके में राशन कार्ड जारी किया गया था केवल वहीं अनाज लिया जा सकता था. 1 जून, 2020 को शुरू की गई ‘एक राष्ट्र-एक राशन कार्ड’ योजना के तहत 31 मार्च, 2021 तक पूरे देश को कवर करने का लक्ष्य है. हालांकि, स्थापित तंत्र, अधिकतर स्थानों पर प्रवासी श्रमिकों तक पहुंच देने में नाकाम रहा है.

मुफ्त खाद्यान्न योजना/ राज्य डिलिवर करने में फेल

नि:शुल्क खाद्यान्न योजना का उद्देश्य बेरोजगार और बेघर हुए प्रवासियों को फौरी राहत पहुंचाना था. आत्मनिर्भर भारत (ANB) योजना के तहत केंद्र ने 8 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न चिह्नित किया. देश भर के लगभग 8 करोड़ प्रवासियों के बीच मुफ्त अनाज वितरित किया जाना था.

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8 लाख मीट्रिक टन में से लगभग 80% या 6.39 लाख मीट्रिक टन राज्यों में पहुंच गया. लेकिन 5 अगस्त तक 2.46 लाख मीट्रिक टन उन प्रवासियों के बीच वितरित किया गया, जो भुखमरी का सामना कर रहे थे और जिन्होंने अपने मूल स्थानों के लिए सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर लौटना शुरू कर दिया था. ये राज्यों को मिलने वाले खाद्यान्न का लगभग 31% और केंद्र की ओर से चिह्नित अनाज का 39% है.

कुल 8 करोड़ लाभार्थियों में से केवल 2.5 करोड़ ने ही जिंदा रहने के लिए मुफ्त अनाज का इस्तेमाल किया. इसका मतलब है कि राज्य अनुमानित 5.5 करोड़ प्रवासियों को ये राहत पहुंचाने में नाकाम रहे. इससे उस हताशा को समझने में मदद मिलती है जिसके तहत प्रवासियों ने सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने मूल स्थानों के लिए मार्च करना शुरू कर दिया.

workers_082020063838.jpgफाइल फोटो- PTI

यह कोई सरकार के राजनीतिक विरोधियों का आरोप नहीं है, बल्कि सरकार की ओर से उपलब्ध कराए गए तथ्य और आंकड़े हैं जो सोमवार को श्रम मुद्दों को देखने वाली संसदीय स्थायी समिति के समक्ष रखे गए.

समिति के अध्यक्ष भर्तृहरि महताब ने उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय (खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग) के अधिकारियों को समन भेजा था जिससे कि प्रवासी मजदूरों, असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा और कल्याणकारी उपायों पर जानकारी ली जा सके.

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दिलचस्प है कि क्योंकि प्रवासी मजदूर शहरों और कस्बों में मौजूद थे, इसलिए आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के प्रतिनिधियों को भी बुलाया गया.

प्रवासियों के समक्ष संकट को इस तथ्य से भी समझा जा सकता है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना के तहत आने वाले 81 करोड़ लोगों में से अधिकतर गरीब हैं. ऐसे में सिर्फ 8 करोड़ लोगों को ही लाभार्थियों के तौर पर चिह्नित किया गया. इसकी तुलना में विशेषज्ञ मानते हैं कि लॉकडाउन के दौरान करीब 30 प्रतिशत भारतीयों ने भारी दिक्कतों का सामना किया.

केंद्रीय योजनाओं की राह में बाधाएं

एनडीए सरकार की महत्वाकांक्षी ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना की राष्ट्रव्यापी कवरेज के लिए जो मार्च 2021 की समयसीमा तय की है, ऐसा होना संभव नजर नहीं आता.

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को चालू करने के लिए लाभार्थियों को अपने आधार और राशन कार्ड लिंक करना जरूरी है. देश भर में बायोमीट्रिक वैरीफिकेशन वाली फेयर प्राइस शॉप्स के लिए राशन कार्ड को पोर्टेबल बनाना प्रस्तावित है.

इस योजना की राह में सबसे बड़ी बाधा खराब कनेक्टिविटी से जुड़े मुद्दे हैं. जबकि सरकार का दावा है कि देश के अधिकांश क्षेत्रों में अब डेटा लिंक पीडीएस शॉप्स हैं. वहीं इन दुकानों के मालिकों का कहना है कि उनकी ePoS मशीनें काम नहीं करती हैं और उन्हें मैनुअल नोटिंग का सहारा लेना पड़ता है.

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दूसरी बाधा पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों का विरोध है और आम सहमति का घोर अभाव है. बंगाल में TMC सरकार ने अगले साल मई तक मुफ्त राशन देने की घोषणा की है. ओडिशा चाहता है कि ‘एक राष्ट्र, एक राशनकार्ड’ हाइब्रिड होनी चाहिए जिससे उन क्षेत्रों को कवर किया जा सके जहां. पीडीएस नेटवर्क खराब है. छत्तीसगढ़ एकीकृत नहीं होना चाहता है क्योंकि उसके पास पहले से ही एक मजबूत पीडीएस प्रणाली है, जो कमजोर वर्गों को खाद्यान्न उपलब्ध कराती है.

सरकारी अधिकारियों का दावा है कि खाद्यान्न वितरण भी एक राजनीतिक मुद्दा है और हर राज्य एक सिंगल केंद्रीय योजना में एकीकृत होने की जगह अपनी खुद की योजना चाहता है.

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