माओवादी हिंसा से प्रभावित इलाकों के केवल 50 फीसदी लोगों ने हाल ही में जारी जनगणना अभियान में अपने नाम और व्यक्तिगत सूचनाएं दी हैं, इसलिए सरकार ऐसे इलाकों में विशेष अभियान चलाने का इरादा कर रही है.
नक्सल प्रभावित कई इलाकों में जनगणनाकर्मी उग्रवादियों के भय से नहीं गये जबकि कुछ अन्य इलाकों में माओवादियों के निर्देश पर लोगों ने सहयोग नहीं किया.
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘ जनगणना में करीब 50 फीसदी लोगों ने हिस्सा लिया. हम माओवादी क्षेत्रों में लोगों को होने वाली दिक्कतों को समझते हैं इसीलिए इन इलाकों में विशेष अभियान चलाने के बारे में विचार किया जा रहा है.’ कुछ इलाकों में तो लोगों ने जनगणनाकर्मियों को घर में प्रवेश ही नहीं करने दिया.
जनगणना प्रक्रिया में राष्ट्रीय आबादी रजिस्टर के लिए आंकड़े एकत्र करने के साथ साथ मकानों की गणना के बाद हर व्यक्ति के लिए एक विशिष्ट पहचान नंबर भी जारी किया जाएगा.
राष्ट्रीय आबादी रजिस्टर पहचान का व्यापक डाटाबेस होगा, जिससे सरकारी कार्यक्रमों के तहत फायदों और सेवाओं को बेहतर ढंग से लक्ष्यित करने, योजना की प्रक्रिया सुधारने और देश की सुरक्षा मजबूत करने में मदद मिलेगी . इससे देश की जनता को आने वाले वषरें में लाभ होगा.
अधिकारी ने कहा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत अनाज वितरण में इस पहचान नंबर से मदद मिलेगी. इसके जरिए बैंक खाते खोले जा सकेंगे और दिन प्रतिदिन के कई कार्यों में यह नंबर मददगार साबित होगा. एक आकलन के मुताबिक, नक्सल प्रभावित राज्यों में 40 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र माओवादियों के प्रभाव में है. कुल सात राज्यों में 35 जिलों को सबसे बुरी तरह प्रभावित माना जाता है.
पिछले पांच साल के दौरान नक्सल हिंसा में 10 हजार से अधिक आम लोग और सुरक्षाकर्मी मारे गये . इस साल लगभग 150 सुरक्षाकर्मी नक्सलियों के हाथ मारे गये.
वर्ष 2005 से मई 2010 के बीच कुल 10, 268 लोग नक्सल हिंसा में मारे गये. 2009 में 2372 लोग मारे गये जबकि 2008 में 1769 और 2007 में 1737 लोगों की मौत हुई.
इसके अलावा नक्सलियों ने 362 टेलीफोन टावरों, कई स्कूल इमारतों, सडकों और रेलवे को भी निशाना बनाया. हाल ही में नक्सलियों ने केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवानों पर कई घातक हमले किये.
गृह मंत्री पी चिदंबरम ने हालांकि विश्वास जताया है कि नक्सल खतरे से सरकार तीन साल में निपटने में सफल होगी.