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Exclusive: मेघालय की रैट-होल माइन्स के अंदर का खौफनाक सच

Meghalaya Coal Mines जिस युवक के पीछे इंडिया टुडे के रिपोर्टर जा रहे थे वो अब कोयले की मौजूदगी वाली जगह तक पहुंच चुका था. वो पीठ के बल पर अपने सिर पर मौजूद चट्टान से कोयले के टुकड़े निकालना शुरू करता है. टुकड़े नीचे चार पहिए वाले पुशकार्ट में गिरते हैं जिन्हें वो अपने पैरों से खींचता है. यहांजरा सी भी चूक भी मौत को दावत है.

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मेघालय के एक कोल माइंस में फंसे मजदूरों को निकालने जा रहे गोताखोर (फोटो- रायटर्स)
मेघालय के एक कोल माइंस में फंसे मजदूरों को निकालने जा रहे गोताखोर (फोटो- रायटर्स)

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वो एक गुफा में दोनों हाथ-दोनों पैरों से रेंगते हुए अंदर जाता है. उसके सिर से बंधी टार्च की रोशनी अंधेरी-तंग गुफा को चीरती है. 22 वर्षीय वो युवक जैसे जैसे गीले कोयले की गंध तेज होती जाती है घुटनों के बल आगे सरकता जाता है. इसी जगह से महज़ 25 किलोमीटर की दूरी पर 13 दिसंबर को खदान में पानी घुस जाने से कम से कम 15 खनिकों के मारे जाने की आशंका है. इसके बावजूद ये युवक वैसी ही रैट-होल माइन में अभी घुसा है.   

इंडिया टुडे के खोजी पत्रकार इस युवक के पीछे चलते हुए मेघालय के भूमिगत कोयला-क्षेत्र की जानलेवा दुनिया में दाखिल होते हैं. तीन फुट ऊंचाई वाली गुफा में उस युवक की दबी हुई आवाज़ आती है कि जहां पहुंचना चाहते हैं वो जगह 150 फीट आगे है. बिना किसी सुरक्षा उपकरण, यहां तक कि हेलमेट भी नहीं, वो हाथ में कुदाल थामे कसमसाते आगे बढ़ता है. अब तक खनिक और रिपोर्टर कोयले की धूल की कई परतों में सन जाते हैं.  

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दो रिपोर्टरों में से एक पूछता है- “कोयले के निशान 150 फीट आगे है. लेकिन बाकी का कोयला कहां गया?”

युवक कहता है कि वो पहले ही बाहर निकाला जा चुका है.

रिपोर्टर- “खनन की जगह तक पहुंचने में कितना समय लगता है?”

युवा खनिक का जवाब था- “10 मिनट’  

लेकिन इस उमस भरी गर्म संकरी जगह में 10 मिनट भी बहुत लंबे लग रहे थे.

हादसों की खदानें  

इस युवक जैसे गरीबी से त्रस्त खनिक हर दिन मेघालय की रैट-होल माइन्स को 10 घंटे तक खोदते हैं. याद कीजिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने इस तरह के खनन पर प्रतिबध लगा दिया था. लेकिन उत्तर-पूर्व के इस राज्य में अब भी अनुमान के मुताबिक 5,000 रैट-होल माइन्स मौजूद हैं. रिकार्ड बहुत ही हृदय विदारक है- 2011 से अब तक 70 हादसों में 90 लोगों की जान जा चुकी है. 25 किलोमीटर की दूरी पर ही इसी जैंतिया हिल्स क्षेत्र में पानी से भरे एक गड्ढे से 15 खनिकों के जीवित बाहर निकल आने की संभावना बहुत कम है.  

मौत के फंदे में खनन

जिस युवक के पीछे इंडिया टुडे के रिपोर्टर जा रहे थे वो अब कोयले की मौजूदगी वाली जगह तक पहुंच चुका था. वो पीठ के बल पर अपने सिर पर स्थित चट्टान से कोयले के टुकड़े निकालना शुरू करता है. टुकड़े नीचे चार पहिए वाले छकड़े (पुशकार्ट) में गिरते हैं जिन्हें वो अपने पैरों से खींचता है. जरा सी भी चूक यहां जानलेवा हो सकती है. कमजोर गुफ़ा को लकड़ी के गीले कुंदों से बांधा हुआ है. अगर गलत जगह पर पैर पड़ जाए तो गुफा भरभरा कर ढह भी सकती है, और जो भी नीचे जिंदा हो वहीं दफन हो जाए. युवा खनिक बाहर आ जाता है. बाहर घनघोर अंधेरा है. उसने बताया कि कैसे जब वो महज सात साल का था तभी से गरीबी की वजह से इन रैट-होल माइन्स में जाने को मजबूर हो गया था.   

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युवक ने कहा, "मैं 7 साल का था जब अपनी मां के साथ यहां आया था. मेरे पिता के निधन के बाद मेरी मां हमें यहां लाई थी.”  युवक कड़ाके की ठंड में जंगल में तेज तेज चलते हुए कहता है, "मैंने अपनी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा यहीं खदानों में बिताया है. मुझे ठीक से नहीं पता कि इस काम में लगे युवक कभी 50 की उम्र तक भी पहुंच पाते हैं या नहीं.”

जिंदगी कितनी सस्ती

खनिक को हर तरह के खतरों का पता है. अभी तुरंत के खतरे, जीवन में आगे होने वाले खतरे. युवक कहता है, ये प्रदूषण (खान के अंदर) बहुत खतरनाक है. हम खतरे में ही जीतोड़ मेहनत करते हैं. हम जितना यहां से ले जा कर सौंपते हैं उतना ही हमें भुगतान मिलता है. एक बॉक्स (कोयले से भरी गाड़ी) का दो खनिकों को 2,200 रुपए मिलते हैं.

इंडिया टुडे की इंवेस्टीगेटिव टीम का अगला ठिकाना था- मेघालय का कोयला माफिया.

राज्य की एक अवैध कोलफील्ड की ऑपरेटर कुले लमारे ने माना कि वो बीते तीन दशकों से अवैध ढंग से कोयले का खनन कर रही है और उसे खुले बाजार में बेच रही है. लमारे ने ये भी माना कि ये धंधा अवैध है लेकिन बहुत फायदे वाला है. रिपोर्टर ने लमारे से सवाल किया- “क्या रैट-होल मुमकिन है? क्या मजदूर उपलब्ध हैं?”

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लमारे- “ मजदूर अब भी काम कर रहे हैं. कोयले को जंगलों में स्टॉक करके रखना पड़ता है. ये सब निर्भर करता है कि हफ्ते में कितना (कोयला) बाहर आया.”

लमारे के मुताबिक बारिश के दौरान कोयले की खेप को स्टोर करके रखा जाता है और बाद में इसका ट्रांसपोर्ट किया जाता है.

लामारे ने कहा, “गाड़ियों पर लोडिंग की जाएगी तो कुछ बचा कर नहीं रखा जाएगा. जैसे ही खेप जंगलों से आएगी उसे रात रात में ही डिलीवर कर दिया जाएगा. कोई हमें नहीं देखेगा- ना तो पुलिस और ना ही लोग. एक लॉरी में 40 टन कोयला लोड किया जा सकता है.”   

लमारे ने स्थानीय पुलिस के साथ साठगांठ होने का भी दावा किया. उसने अपनी अवैध खान से निकले कोयले को बेचने की पेशकश करते हुए पूरी सुरक्षा का भरोसा दिया. लमारे ने कहा- ‘हम खेप को एक जगह तक पहुंचा देंगे. जब सब तरफ से हरी झंडी मिल जाएगी तो इसे आगे ले जाया जाएगा. कई बड़े अधिकारी, पुलिस अधिकारी मेरे घर के (परिवार) ही हैं. मैं जिक्र (उनके नाम) नहीं कर सकती क्योंकि हम कानूनी रास्ते पर नहीं चल रहे हैं.’ लमारे ने जोर देकर कहा कि वो एक टन कोयले पर 2,000 रुपये बचाती है और कोयले से भरे एक ट्रक पर 80,000 रुपये से 1 लाख रुपये.    

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इंडिया टुडे की अंडरकवर टीम इसके बाद मेघालय में एक ट्रांसपोर्टर तक पहुंचने में कामयाब रही. किशन नाम के ट्रांसपोर्टर ने और साफ किया कि कोयले का ये काला धंधा चलता कैसे है? किशन ने बताया कि उसे सड़क के रास्ते एक ट्रिप के लिए 60-70,000 रुपये मिलते हैं. किशन के मुताबिक एक बिचौलिए को भी असम तक के खेप के ट्रांसपोर्ट के लिए साथ जोड़ा जाता है.   

किशन ने कहा, “सब कुछ फिक्स होने के बाद हम अपना वाहन शिलॉन्ग बाइपास के पास तक खुद ही पहुंचाते हैं. वहां से आगे बिचौलिया ले जाता है और वहां से पैसा लेता है.” कोल इंडिया को संभालना चाहिए जिम्मा?

मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया

मेघालय के मुख्यमंत्री कोनार्ड कॉन्गकल संगमा ने इंडिया टुडे से कहा कि उनकी सरकार खनन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की जगह इसके नियमन (रेग्युलेशन) की समर्थक है. संगमा ने हालांकि साथ ही कहा कि राज्य प्रशासन ने एनजीटी ऑर्डर को ‘आक्रामक’ ढंग से लागू कराया है और वो भी लॉजिस्टिक तौर पर कई दिक्कतें पेश आने के बावजूद.

संगमा ने इंडिया टुडे से कहा, “ 1,000 से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं. राज्य सरकार इसके (रैट होल माइनिंग) खिलाफ बहुत आक्रामक है.” संगमा ने ऐसी धारणाओं से असहमति जताई कि स्थानीय अधिकारियों की कोल माफिया के साथ साठगांठ है. संगमा ने मेघालय में रैट होल माइनिंग के स्तर का हवाला देते हुए कहा, “ये लॉजिस्टिक चुनौती है. ये कहना अनुचित है कि ये लोग आपस में मिले हुए हैं. कई छापे मारे गए हैं. बहुत सारे लोग पकड़े गए हैं. लेकिन ये मुश्किल चुनौती है.” संगमा के मुताबिक राज्य की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण से समझौता किए बिना इसे (खनन) नियमित किया जा सकता है. मेघालय सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही एनजीटी प्रतिबंध को चुनौती दे रखी है.

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जब संगमा से पानी से भरी खदान में चल रहे बचाव कार्यों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने माना कि 13 दिसंबर के हादसे में किसी के बचे होने की संभावना बहुत कम है. संगमा ने कहा, “जब हम लाखों-करोड़ लीटर पानी बाहर निकाल दिए जाने की बात करते हैं तब भी पानी का स्तर एक इंच भी नीचे नहीं गया है. ये बहुत ही मुश्किल स्थिति है.”

कोल इंडिया लिमिटेड के पूर्व चेयरमैन पार्थ भट्टाचार्य ने इंडिया टुडे को इस गोरखधंधे को सामने लाने के लिए बधाई दी और इसे ‘उम्दा जांच’ बताया. भट्टाचार्य ने जोर देकर कहा कि मेघालय में अवैध खनन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगना चाहिए और कोल इंडिया को राज्य में वैज्ञानिक ढंग से खनन का जिम्मा सौंपा जाना चाहिए. भट्टाचार्य ने ध्यान दिलाया कि मेघालय सरकार और कोल इंडिया लिमिटेड ने 2009 में एक प्रस्ताव पर विचार किया था जिसमें खनन को कोल इंडिया के तहत लाने का सुझाव था. 

कोल इंडिया लिमिटेड के पूर्व प्रमुख का कहना है कि तब ड्राफ्ट प्लान भी तैयार किया गया था. भट्टाचार्य ने कहा, ‘लेकिन उस ड्राफ्ट माइनिंग प्लान पर अमल होना बरसों से इंतजार कर रहा है.’ नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और पर्यावरणविद ओ पी सिंह के मुताबिक एनजीटी के प्रतिबंध के बावजूद खनन मेघालय में रोजीरोटी का मुख्य जरिया है. सिंह ने कहा, ‘खनन को बंद नहीं किया जा सकता क्योंकि ये अहम उद्योग है. राज्य में लोगों के गुजारे का स्रोत है.’ सिंह के मुताबिक चुनाव से पहले खनन पर प्रतिबंध हटा लेने के वादे किए जाते हैं, इससे भी अवैध खदानों के ऑपरेटर्स को बढ़ावा मिलता है.

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शिलॉन्ग से कांग्रेस सांसद विंसेट पाला ने भी सहमति जताते हुए कहा, “बीजेपी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र ( मेघालय के लिए) में वादा किया था कि 180 दिनों के अंदर खदानों को खोल दिया जाएगा. ऐसे चुनावी वादों से उन्हें (अवैध खनन करने वालों को) बढ़ावा मिलता है.” गैर सरकारी संस्था ‘इम्पल्स’ की संस्थापक हसीना खारभीह ने जोर देकर कहा है कि राज्य सरकार को सख्ती के साथ एनजीटी की ओर से लगाए प्रतिबंध को लागू कराना चाहिए. उन्होंने कहा, “सरकार को खदानों के बंद करने के आदेश का सम्मान करना चाहिए.”

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