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मैं माफी मांगता हूं अपने बुंदेलखंड के पानी और मच्छरों की तरफ से राहुल गांधी...भइया

गुस्ताखी माफ हो. आप इस कथित लोकतंत्र के इकलौते राजपरिवार गांधी-नेहरू के वारिस और मैं बुंदेलखंड के एक किसान का बेटा. जो वक्त रहते समझ गया कि गरीबी एक सोच नहीं सच्चाई है और पढ़ लिखकर पेट पालने लायक बन गया.

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राहुल गांधी
राहुल गांधी

भइया राहुल गांधी!

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गुस्ताखी माफ हो. आप इस कथित लोकतंत्र के इकलौते राजपरिवार गांधी-नेहरू के वारिस और मैं बुंदेलखंड के एक किसान का बेटा. जो वक्त रहते समझ गया कि गरीबी एक सोच नहीं सच्चाई है और पढ़ लिखकर पेट पालने लायक बन गया. तो मैं वो आम आदमी, वो नौजवान, पिछड़े इलाके का, जिसकी आप पिछले कुछ हफ्तों से चीख चीखकर बांहें चढ़ाकर दुहाई दे रहे हैं और आप कांग्रेस के तारणहार. फिर भी इस फर्क को पाटते हुए आपको भइया कह रहा हूं. क्योंकि आप इसी नाम से हम सबको संबोधित करते हैं और अपने दावों पर हामी भी भरवाते हैं.

तो भइया राहुल गांधी. पहली बात ये कि गांव का पानी पीने से पेट खराब नहीं होता. हम सब करोड़ों गांव वालों का तो नहीं हुआ. समय पर ही पेट साफ होता है. आपका खराब हुआ. आपने बताया कि हमारे गांव का पानी पिया इसलिए हुआ. तो दरअसल आपको आदत नहीं होगी हैंडपंप का पानी पीने की. बताया तो गया था कि मिनरल वॉटर की सीलबंद बोतल पहुंच गई थी. मगर शायद जब फोटू खिंचा रहे थे, तब हैंडपंप का चुल्लू भर पानी चला गया हो और खेल हो गया हो. खेल आपके पीछे से भी बहुत हुए. हमारे इंडिया टुडे के रिपोर्टर जब उन लोगों के पास गए, जिन्हें आपने भारत दर्शन के दौरान पुचकारा था, तो बताया गया कि उनका अभी भी बुरा हाल है. फिर भी विनम्रता का तकाजा है, इसलिए मैं अपने गांव, अपने क्षेत्र के पानी की तरफ से आपसे माफी मांगता हूं. पता नहीं हमारा पानी कब जागेगा और हम कब पानी पिलाना सीखेंगे शऊर से.

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मैं तहे दिल से उन मच्छरों की तरफ से भी आपसे माफी मांगना चाहता हूं, जिन्होंने आपको बुंदेलखंड दौरे के दौरान काटा. क्या करें हुजूर गरीब हैं वे भी. उनकी मानसिक दशा ठीक नहीं. उन्हें पता नहीं था कि बड़े लोग जो दशकों में एक बार आते हैं, उनका खून नहीं चूसना चाहिए यों.वैसे उन्हें भी सुनकर अच्छा लगेगा कि आपको अच्छा लगा.

राहुल भइया, हमें भी अच्छा लगा था, जब आठ बरस पहले आप ये सब बातें करते थे. कि मैं गांधी परिवार के नाम की वजह से यहां तक पहुंचा हूं, मगर अब इस सिस्टम को बदलना चाहता हूं. कि मैं गरीबों के पास जाता हूं. तो बाकी नेताओं को मिर्ची क्यों लगती है. कि मैं युवाओं को लाना चाहता हूं, सिस्टम बदलना चाहता हूं. मगर आठ बरस बीते. गरीब अब भी वहीं है. युवाओं के नाम पर नेतापुत्रों की फौज है और कांग्रेस के शीर्ष पर आज भी आप ही हैं. कभी कैबिनेट को हड़काते, कभी पीएम को फटकार लगाते. आप बदलना चाहते थे बहुत कुछ मगर बदले हैं सिर्फ रेट कार्ड. डीजल-पेट्रोल के. सब्जी के और हर चीज के.

आजकल आपके भाषण खूब देखता हूं. रिपीट कर करके. आपने अमरीका के प्रेजिडेंट से मिलने की तैयारी में जुटे पीएम और कैबिनेट की धज्जियां उड़ा दीं. आपके कांग्रेस प्रवक्ता शुरुआती सकते से उबर गए, मगर देश आपकी इस साफगोई पर न खिलखिला पाया. आपने मां के आंसू का हवाला देकर इज्जत की परिभाषा बताई, तो हमें लगा कि सरकार फूड बिल को लेकर संजीदा थी. मगर ये क्या. अगली ही मीटिंग में आपने अपने जनरल नॉलेज का ऐसा बखान किया कि हमारी बुद्धि इस्केप वेलॉसिटी पर सवार होकर दुनिया से रवाना हो गई.आपने सांप्रदायिक तनाव की बात की. दादी और पिता की मौत का जिक्र किया और अपने लिए अंदेशा जताया. इंदिरा गांधी, जिन्हें हमारे गांव के बुजुर्ग आज भी इंदिरा जी कहते हैं, सिख अंगरक्षकों के हाथों मारी गईं. किसी भी देश के लिए ये शर्म की बात है. शर्म तब भी आई, जब सरकार पहले तो भिंडरावाले को हाथ मजबूत करने का मौका देती गई और फिर मजबूरन दरबार साहिब में फौज भेजनी पड़ी. और सबसे ज्यादा शर्म तो तब आई, जब देश की राजधानी दिल्ली समेत कई उत्तर भारतीय शहरों में इंदिरा मां की हत्या के नाम पर उन्मादी भीड़ ने मेरे सिख भाई बहनों को बर्बर ढंग से मार दिया.

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आपके पिता की हत्या हमारी सुरक्षा एजेंसियों और सत्ता तंत्र के मुंह पर एक तमाचे की तरह था.उस वक्त की सरकार ने वक्त रहते सुरक्षा घेरे पर फैसला लिया होता, तो शायद ये हाल न होता.मगर राजीव गांधी की हत्या सांप्रदायिक तनाव नहीं विदेशी कूटनीतिक विफलता और खुफिया चूक का नतीजा था. तमिलों के गुस्से का नतीजा था. जिस प्रभाकरण को पहले पुचकारा, फिर आंखें तरेर समझौते पर दस्तखत को कहा. उसने पलटवार किया, तो हम तैयार नहीं थे. मगर देश का सिर झुका, शर्म, शोक और संकल्प से.

आपको परिवार समेत एसपीजी सुरक्षा दी गई. ईश्वर से प्रार्थना है कि आपका क्या किसी का भी परिवार यूं अकाल मृत्यु का सामना न करे और अपने हिस्से की पूरी जिंदगी जिए. मगर क्या आपको अपने सुरक्षा तंत्र पर यकीन नहीं है.

प्रवक्ता कहेंगे बयान तोड़ा जा रहा है. टूट तो हम रहे हैं. खेती की लागत बढ़ गई है, बुरा हो डीजल के बढ़ते दामों का. आप कहते हैं कि जमीन का चार गुणा मुआवजा मिलेगा. जमीन बेचना ही कौन चाहता है, जो मुआवजे का माल दिखा रहे हो. और ये घड़ी घड़ी बांहें चढ़ाकर हमसे हामी भरवाना बंद करो. अमिताभ बच्चन जैसा फील आता है. मगर वो एक्टर हैं. किसी और की लिखी लाइन पढ़ना उनका पेशा है और ये मामला कुछ घंटे का होता है. आप ये इज्जत का सबक, देश की शहादत और टप टप टोंटों पसीने की धार की बात कहते हैं, तो मन दुखी हो जाता है.

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अरे भइया. जो खेत में काम करता है, उसका पसीना टप टप टोंटों ही टपकता है. गांव में कितना भी धुंआ कर लो, मच्छर रहते ही हैं, बस मच्छरदानी लगानी पड़ती है. और रही पानी की बात, तो अकसर आया करें, पेट को आदत हो जाएगी. वर्ना दस्त की दास्तान पर लोग मजाक बनाएंगे.

आपकी लंबी उम्र और अच्छी सेहत की दुआ करता

आपका बुंदेलखंडी भइया

 

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