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Toilet एक शर्म कथा? PM मोदी के खुले में शौच मुक्त अभियान को राजस्थान में कैसे लगा पलीता

धौलपुर और भरतपुर दोनों जिलों में इस इनाम के लिए 330 करोड़ रुपयों का भुगतान हो चुका है. जबकि इन दोनों ही जिलों में आज भी ग्रामीण जनता खुले में शौच करने जा रही है. गांवों में कुछ टॉयलेट आधे-अधूरे बने हुए हैं तो कुछ को स्टोररूम बना दिया गया है.

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राजस्थान में खोखले साबित हो रहे हैं खुले में शौच मुक्त के दावे
राजस्थान में खोखले साबित हो रहे हैं खुले में शौच मुक्त के दावे

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प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छ भारत मिशन और खुले में शौच मुक्त अभियान को राजस्थान में पलीदा लग गया है. यह हकीकत इंडिया टुडे के ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आई है कि राजस्थान के कई गांवों में लोगों ने सरकार से इनाम भी ले लिया और शौच के लिए खेतों में जाना भी नहीं छोड़ा. जांच में सामने आया कि कहीं टॉयलेट आधे-अधूरे थे तो कहीं बने ही नहीं... और बिना किसी वैरिफिकेशन के सरकारी धन बांट दिया गया. हम आपको तीन भागों की सीरीज में इस पूरे भ्रष्टाचार का काला-चिट्ठा खोलकर बताएंगे. आज पेश है पहली किश्त...

राजस्थान के धोलपुर जिले के बाडी ग्राम पंचायत में तमाम पुरुष और महिलाएं इंडिया टुडे के संवाददाता को खुले आसमान के नीचे खेतों में शौच करने जाते नजर आए. ठीक ऐसी ही कहानी भरतपुर जिले के रारह ग्राम पंचायत की भी सामने आई. रारह गांव के लोगों के दिन की शुरुआत आज भी हमेशा की तरह हाथों में पानी की बोतल लिए खेतों की ओर जाते हुए ही होती है. यहां गौर करने वाली बात यह है कि भरतपुर जिले में रारह को ही सरकार ने खुले में शौच मुक्त पहला गांव घोषित किया था.

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धौलपुर और भरतपुर के ग्रामीण खुले में शौच मुक्त अभियान और स्वच्छ भारत मिशन के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब तो बड़ी ही बेहतरी के साथ देते हैं. असल में उन्हें इन दोनों ही योजनाओं के उद्देश्यों की मालूमात तो है ही साथ ही साथ इन लोगों ने राजस्थान सरकार की तरफ से दिया जाने वाला 'इनाम' भी ले रखा है.

आपको बता दें कि राजस्थान में वसुंधरा राजे सरकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भारत को खुले में शौच मुक्त बनाने वाले सपने को बढ़ावा देने के लिए हर शौचालय के बनने पर 12 हजार रुपयों की पुरस्कार राशि दे रही है. राजस्थान में इस स्कीम के तहत अब तक 55 लाख ग्रामीणों को यह इनाम मिल चुका है. यानि 6,600 करोड़ रुपए अब तक लोगों को उनके घरों में टॉयलेट बनवाने और देश को शौच मुक्त बनवाने में किए गए इस योगदान के लिए बांटे जा चुके हैं.

धौलपुर और भरतपुर दोनों जिलों में इस इनाम के लिए 330 करोड़ रुपयों का भुगतान हो चुका है. जबकि इन दोनों ही जिलों में आज भी ग्रामीण जनता खुले में शौच करने जा रही है. गांवों में कुछ टॉयलेट आधे-अधूरे बने हुए हैं तो कुछ को स्टोररूम बना दिया गया है.

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इंडिया टुडे के संवाददाता ने भरतपुर और धौलपुर के गांवों में जा-जाकर इस मामले की पड़ताल की. ग्राउंड रिपोर्ट में प्रशासनिक लापरवाही की सच्चाई खुलकर सामने आई कि कैसे बिना जांच-पड़ताल और वैरिफिकेशन के कैश रिवार्ड बांट दिया गया ताकि महात्वाकांक्षी योजना स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत खुले में शौच मुक्त अभियान को कागज पर सफल बताया जा सके.

बिना दीवारों के टॉयलेट

धौलपुर गांव में पूरन देवी की दो बहुएं खुले में शौच करने जाती हैं जबकि उनके घर के दो सदस्यों के नाम खुले में शौच मुक्त अभियान में मिलने वाले अवार्ड के अंतर्गत लाभार्थियों की सूची में दर्ज हैं. वजह पूछने पर पता चला कि पूरन देवी के घर में बने शौचालयों में सेप्टिक टैंक ही नहीं है. इसके अलावा एक टॉयलेट में एक तरफ से दीवार ही नहीं है. फिर भी दूसरों की तरह ही पूरन देवी के परिवार को दो बंद शौचालयों के लिए कुल 24 हजार रुपए मिल चुके हैं.

इंडिया टुडे से बात करते हुए पूरन देवी ने माना कि उन्हें बैंक खाते में 24 हजार रुपए मिल चुके हैं लेकिन यह भी कहा कि उनकी बहुएं अंधेरा रहते शौच के लिए अभी भी खेतों में ही जाती हैं.

उनकी दो बहुएं, फूलवती और सरोज शुरुआत में घरों में ही अंदर छिपी रहीं लेकिन जब उनकी सास कहीं चली गईं तो बाहर आ गईं. सरोज ने कहा, "दीवार गिर चुकी है. हम शौच के लिए खेतों में ही जाते हैं."

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एक टॉयलेट, चार इनाम

धौलपुर के ही उमाशंकर के परिवार के चार सदस्य राजस्थान सरकार से मिलने वाले इनाम के लाभार्थी हैं. खुद उमाशंकर, उनके दो भाई और उनके पिता चारों को मिलाकर 48 हजार उन्हें चार शौचालयों के निर्माण के लिए मिल चुके हैं. इंडिया टुडे के संवाददाता ने जब उनके घर का दौरा किया तो पाया कि केवल एक ही शौचालय का इस्तेमाल हो रहा है. एक शौचालय का इस्तेमाल स्टोररूम के तौर पर हो रहा था और उसमें गेहूं भरा हुआ था जबकि दूसरा इसलिए इस्तेमाल में नहीं था क्योंकि उसमें टॉयलेट सीट ही नदारद थी.

हालांकि, उमाशंकर ने इन आरोपों के खिलाफ अपना बचाव किया कि उनके परिवार को जितना पैसा मिलना चाहिए उससे ज्यादा पैसे उन्हें मिले. उन्होंने कहा कि परिवार को एक शौचालय में गेहूं भंडारण करना शुरू करना पड़ा क्योंकि गांव के बहुत से लोग शौचालय का इस्तेमाल करने के लिए उनके घर आने लगे थे.

इंडिया टुडे ने धौलपुर के कंचनपुर और पबेसूरा ग्राम पंचायतों का दौरा किया और उसके सामने ऐसे तमाम शौचालय आए जिनमें या तो सेप्टिक टैंक नहीं था या फिर सीट नदारद थी. कुछ उदाहरण ऐसे भी सामने आए जिनमें शौचालयों में पानी की सप्लाई की कमी थी.

कहां गया पैसा?

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धौलपुर गांव के रामविलास का मामला थोड़ा अलह ही नजर आया. रामविलास के मुताबिक उनके परिवार के दो सदस्यों का नाम लाभार्थियों की सूची में था. जिसके मुताबिक कागजों पर उनके परिवार को दो शौचालयों के निर्माण के लिए 24 हजार रुपए मिलने थे लेकिन उन्हें सिर्फ 12 हजार रुपए ही मिले.

राम विलास ने कहा, "दोनों शौचालयों के लिए पैसा पेपर पर दे दिया गया है लेकिन मुझे पैसा सिर्फ एक के लिए ही मिला. पता नहीं कि क्या हुआ..."

फर्जी पता, फर्जी फोटो

कुछ मामलों में ऐसी गड़बड़ियां भी सामने आईं, जहां बिना शौचालय बनवाए ही ग्रामीणों को 12,000 रुपये का इनाम दे दिया गया. ऐसी ही एक ग्रामीण सिया हैं. इंडिया से बातचीत में शुरुआती हिचकिचाहट के बाद उसने कबूल किया कि उसे भी एक ऐसे ही शौचालय के लिए 12,000 रुपये मिले, जो कि असल में उसके बहनोई के घर बने थे.

सिया ने बताया कि उसने अपने आवेदन में गलत पता दिया था, लेकिन उसके कागजात पास कर दिए गए. सिया बताती है, 'जीजा जी के घर में शौचालय बना... मैंने अपने घर नहीं बनवाया. लेकिन मुझे पूरे 12,000 रुपये मिल गए.'

वहीं गांव की ही रहने वाली मीरा बताती हैं कि उसने फर्जी शौचालय की तस्वीर जमा कर स्वच्छ भारत मिशन के तहत इनाम ले लिया. वह बताती हैं, 'एक बार जब पैसे मिल गए, मैंने टॉयलेट सीट हटा दिया और वहां रसोई बना दी.' मीरा का परिवार फिर से शौच के लिए खुले में जाने लगा.

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