सियाचिन का नाम सुनकर ही बदन में सिहरन सी दौड़ जाती है. फरवरी की उन कड़वी यादों को भला कौन भुला सकता है जब भारतीय सेना के 10 जवान बर्फीले तूफान में दबकर शहीद हो गए थे. हनुमंतप्पा ने कई दिनों तक मौत को छकाया था, लेकिन सियाचिन में फिर से भारतीय सेना का एक पोर्टर 130 फीट गहरी खाई में समा गया. 5 दिनों तक रेस्क्यू ऑपरेशन भी चला.
बर्फ के समंदर में खोया सेना का एक पोर्टर
दुनिया का सबसे ऊंचा, दुर्गम, ठंडा और खर्चीले युद्धस्थल का नाम सियाचिन है. बर्फ के इसी समंदर में फिर से चला एक बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन. यहां एक कीमती जिंदगी फिर से दांव पर थी . 19500 फीट की ऊंचाई पर एक पोर्टर या कुली की जान बचाने की सबसे कठिन कोशिश की गई. भारतीय सेना का एक पोर्टर ठुकजे ग्यासकेट 130 फीट की गहराई में फंसा था. ठुकजे ग्यासकेट 25 फरवरी को बर्फीली दरार में गिर गया था.
रसद की सप्लाई देते वक्त दरार में गिरा था पोर्टर
पोर्टर ठुकजे ग्यासकेट 25 फरवरी को उस वक्त बर्फीली क्रेवाइस में गिर गया जब वो स्नो स्कूटर से 19 मद्रास बटालियन के लिए रसद की सप्लाई को लेकर जा रहा था. अचानक से हुए इस हादसे ने 19 मद्रास बटालियन के अफसरों और जवानों के हौसले, हिम्मत, काबिलियत और जज्बे का इम्तिहान लेना शुरू कर दिया था.
6 अफसरों और 30 जवानों ने तलाशी अभियान में जान लगा दी
सियाचिन के क्रेवाइस में ठुकजे ग्यासकेट के गिरने के दिन से ही बटालियन के करीब 6 अफसरों और 30 जवानो ने तलाशी अभियान में जी जान लगा दिया . इनके अलावा सियाचिन बैटल स्कूल के भी कई विशेषज्ञों ने उसे खोजने और बचाने के लिए पूरा जोर लगा दिया. सभी आधुनिकतम तरीकों से 19 हजार 500 फीट की ऊंचाई पर ठुकजे ग्यासकेट को खोजने की मुहिम शुरू हुई. जिस जगह पर पोर्टर के फंसे होने की आशंका थी वहां 130 फीट का संकरा गड्ढा खोदा गया.
आजतक ने जुटाई रेस्क्यू ऑपरेशन की एक्सक्लूसिव जानकारी
सियाचिन वही इलाका है जहां 19 मद्रास बटालियन के ही लांस नायक हनुमंतप्पा समेत 10 जवानों की बर्फीले तूफान में दबकर शहादत हुई थी. 3 फरवरी को सेना के 10 जवान हिमस्खलन में बर्फ के 30 फीट वजन में दब गए थे. उसी जगह पर सेना के अफसर और जवान अपने पोर्टर के रेस्क्यू ऑपरेशन की एक्सक्लूसिव जानकारी आजतक ने जुटाई.
तलाशी अभियान में जिंदा नहीं मिल सका जांबाज पोर्टर
पांच दिन तक ठुकजे ग्यासकेट के पास पहुंचने की कोशिश जारी रही. इसमें सफलता भी मिली लेकिन तबतक पोर्टर ठुकजे की सांसे थम चुकी थी. उसकी धड़कनें रुक चुकी थी . माइनस 25 से भी कम डिग्री सेल्सियस तापमान को ठुकजे ग्यासकेट का शरीर बर्दाश्त नहीं कर पाया और भारतीय सेना का साथ छोड़ गया.