कश्मीर में लगातार आतंकवाद पैर पसार रहा है. इतना ही नहीं अब वहां के स्थानीय युवक भी हाथों में पत्थर लेकर सुरक्षाबलों के सामने खड़े हो गए हैं. हाल फिलहाल में कई मौकों पर स्थानीय युवक हाथों में पत्थर लेकर आतंकियों की ढाल बनकर भारतीय सेना के सामने खड़े रहे. पिछले साल 8 जुलाई को हिजबुल मुजाहिद्दीन के पोस्टर ब्वॉय आतंकी बुरहान वानी के एनकाउंटर में ढेर किए जाने के बाद से घाटी में एकाएक तनाव और पत्थरबाजी की घटनाएं बढ़ गई हैं. घाटी में बढ़ती आतंकी और पत्थरबाजी घटनाओं के पीछे पाकिस्तान का हाथ माना जाता है.
घाटी में इस तरह का तनाव कोई नया नहीं है. विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान लगातार भारत के इस इलाके में अशांति फैलाता रहा है. भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद 1947 से जारी है. इसको लेकर पाकिस्तान ने भारत पर तीन बार हमला किया और तीनों बार उसे बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा.
इस जनरल ने रखी आतंक की नींव
1971 में शर्मनाक हार के बाद काबुल स्थित पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी में सैनिकों को हार का बदला लेने की शपथ दिलाई गई और अगले युद्ध की तैयारी को अंजाम दिया जाने लगा, लेकिन इस बीच अफगानिस्तान में हालात बिगड़ने लगे. 1971 से 1988 तक पाकिस्तान की सेना और कट्टरपंथी अफगानिस्तान में उलझे रहे. यहां पाकिस्तान की सेना ने खुद को गुरिल्ला युद्ध में मजबूत बनाया और युद्ध के विकल्पों के रूप में नए-नए तरीके सीखे. अब यही तरीके भारत पर आजमाने की बारी थी. तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक ने 1988 में भारत के खिलाफ 'ऑपरेशन टोपाक' नाम से 'वॉर विद लो इंटेंसिटी' की योजना बनाई. इसके तहत कश्मीर के लोगों के मन में अलगाववाद और भारत के प्रति नफरत के बीज बोने थे और फिर उन्हीं के हाथों में हथियार थमाने थे.
...जब कश्मीर से हटा भारत का ध्यान
पाकिस्तान ने भारत के पंजाब में आतंकवाद शुरू करने के लिए पाकिस्तानी पंजाब में सिखों को 'खालिस्तान' का सपना दिखाया और हथियारबद्ध सिखों का एक संगठन खड़ा करने में मदद की. पाकिस्तान के इस खेल में भारत सरकार उलझती गई. स्वर्ण मंदिर में हुए ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार और उसके बदले की कार्रवाई के रूप में 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी ने देश की बागडोर संभाली. राजीव गांधी ने कश्मीर की तरफ से पूरी तरह से ध्यान हटाकर पंजाब और श्रीलंका में लगा दिया. इंदिरा गांधी के बाद भारत की राह बदल गई. इससे पंजाब में आतंकवाद के नए खेल के चलते पाकिस्तान एक बार फिर कश्मीर पर नजरें टिकाने लगा और उसने पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) में लोगों को आतंक के लिए तैयार करना शुरू किया. अफगानिस्तान का अनुभव यहां काम आने लगा था.
'ऑपरेशन टोपाक' का ही हिस्सा है पत्थरबाजी
भारतीय राजनेताओं के ढुलमुल रवैये के चलते कश्मीर में 'ऑपरेशन टोपाक' बगैर किसी परेशानी के चलता रहा. अब दुश्मन का इरादा सिर्फ कश्मीर को ही अशांत रखना नहीं रहा, वे जम्मू और लद्दाख में भी सक्रिय होने लगे. पाकिस्तानी सेना और आईएसआई ने मिलकर कश्मीर में दंगे कराए और उसके बाद आतंकवाद का सिलसिला चल पड़ा. कश्मीर में आतंकवाद के चलते करीब 7 लाख से अधिक कश्मीरी पंडित विस्थापित हो गए और वे जम्मू सहित देश के अन्य हिस्सों में जाकर रहने लगे. इस दौरान हजारों कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतार दिया गया. घाटी में मस्जिदों की तादाद बढ़ाना, गैर मुस्लिमों और शियाओं को भगाना और बगावत के लिए जनता को तैयार करना 'ऑपरेशन टोपाक' के ही चरण हैं. इसी के तहत कश्मीर में सरेआम पाकिस्तानी झंडे लहराए जाते हैं और भारत की खिलाफत की जाती है. पत्थरबाजी और आतंकियों की घुसपैठ भी इसी का हिस्सा है.
घाटी में अशांति के लिए फंडिंग करता ISI
आईएसआई ने कश्मीर में अपनी गतिविधियों को प्रायोजित करने के लिए हर महीने 2.4 करोड़ खर्च करता है. इस कार्यक्रम के तहत, आईएसआई ने लश्कर-ए-तैयबा सहित कश्मीर में 6 आतंकवादी समूहों को बनाने में मदद की. अमेरिकी खुफिया अधिकारियों का मानना है कि आईएसआई लगातार लश्कर-ए-तैयबा को सुरक्षा प्रदान करता है.