महाराष्ट्र के पुणे शहर में चरमपंथियों ने फेसबुक पर पोस्ट की गई तस्वीरों को मुद्दा बनाकर जिस तरह से एक इंजीनियर की हत्या कर दी वह निहायत ही वहशियाना कार्रवाई है और जिन लोगों ने इसे अंजाम दिया उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए. लेकिन इस दुखद मुद्दे पर एनसीपी के चीफ शरद पवार जैसी सस्ती बयानबाजी कर रहे हैं, वह भी निंदनीय है.
उन्होंने इस मुद्दे को कुछ अलग ढंग से पेश करके पीड़ितों की सहानुभूति लूटने की कोशिश की. उन्होंने इसका सारा दोष केंद्र में आई नई सरकार पर थोप दिया है. उनका आरोप है कि नई सरकार के आते ही अल्पसंख्यकों और दलितों पर अत्याचार बढ़ गए हैं. पुणे में इंजीनियर की हत्या के मामले में जो लोग गिरफ्तार हुए हैं उनमें एक हिंदू चरमपंथी गुट हिंदू राष्ट्र सेना के लोग हैं.
इनमें से 18 अब तक पुलिस की गिरफ्त में आ चुके हैं. इस संस्था के मुखिया धनंजय देसाई के बारे में कहा जा रहा है कि उस पर हिंसा भड़काने के पहले से कई आरोप हैं. इस गुट के कुछ सदस्यों पर जुलाई 2013 में एक हिंदू नेता की हत्या का भी आरोप है. काफी समय से यह गुट हिंसात्मक कार्यों में जुटा हुआ है. यह बात हैरानी की इसलिए भी है कि महाराष्ट्र में एक सख्त कानून मकोका के रूप में लागू है.
यह कानून बेहद सख्त है और इसमें पकड़े जाने पर जमानत मिलना भी मुश्किल है. लेकिन अगर यह गुट या गिरोह इतना ही उपद्रवी तथा खूंखार है तो उसके खिलाफ इस कानून को लागू क्यों नहीं किया गया? क्यों नहीं इस पर अंकुश कसा गया जबकि महाराष्ट्र में सरकार एनसीपी-कांग्रेस की थी और उसके गृह मंत्री पवार के खास आरआर पाटील हैं. वह चाहते तो उस पर लगाम कस सकते थे लेकिन ऐसा हुआ नहीं. मतलब साफ है.
शरद पवार एक तीर से दो शिकार करना चाहते हैं. पहला तो यह कि वे अपनी सरकार पर लगे अकर्मण्यता के आरोप को झुठलाना चाहते हैं. दूसरा यह कि इस बहाने वह अल्पसंख्यकों के वोट बटोरना चाहते हैं. लालू यादव, मुलायम सिंह, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी वगैरह जैसे तथाकथित अल्पसंख्यक हितैषी नेताओं की कतार में पवार भी खड़े हो गए हैं. लोक सभा चुनाव में उनकी पार्टी की जो दुर्दशा हुई है उसके बाद उन्हें समझ में आ चुका है कि विधान सभा चुनाव में पार्टी की क्या हालत होगी. उन्हें डर है कि कहीं पार्टी का सूपड़ा ही न साफ हो जाए. दस वर्षों से सत्ता में काबिज एनसीपी के पास जनता को दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है, उलटे पार्टी के नेताओं पर बड़े-बड़े घोटालों में शामिल होने का आरोप है.
शरद पवार राजनीति के चतुर खिलाडी़ हैं और अब वे कोई नया मुद्दा ढूंढ़ रहे हैं ताकि पार्टी को प्राण वायु मिले. लेकिन वे शायद भूल गए हैं कि इस देश में अल्पसंख्यकों को वोटबैंक मानकर राजनीति करने के दिन लद गए हैं. भारतीय अल्पसंख्यकों की सोच में बदलाव आया है और वे सोच समझकर कदम उठा रहे हैं. उन्हें बरगलाना या फुसलाना आसान नहीं है. आखिर पुणे की दर्दनाक घटना की जिम्मेदारी महाराष्ट्र सरकार की भी है और एनसीपी इसका हिस्सा है. ज़ाहिर है कि इस तरह का बयान देकर पवार अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते.