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OPINION: राहुल गांधी का एक विस्मरणीय भाषण

कांग्रेस के राजकुमार राहुल गांधी अपने भाषणों के लिए कभी नहीं जाने जाते थे लेकिन इस बार उन्हें एक बेहतरीन मौका मिला जिसे उन्होंने जाया कर दिया. अपने चुनींदा कार्यकर्ताओं के सामने उन्होंने कई बातें कहीं और कई उपलब्धियों को गिनाया जिनमें आरटीआई भी है.

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कांग्रेस के राजकुमार राहुल गांधी अपने भाषणों के लिए कभी नहीं जाने जाते थे लेकिन इस बार उन्हें एक बेहतरीन मौका मिला जिसे उन्होंने जाया कर दिया. अपने चुनींदा कार्यकर्ताओं के सामने उन्होंने कई बातें कहीं और कई उपलब्धियों को गिनाया जिनमें आरटीआई भी है.

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नरेगा, आधार, पंचायती राज वगैरह की उन्होंने चर्चा की. चुनावी बिगुल बजाते हुए उन्होंने ऊंचे स्वर में अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित किया और उनमें उत्साह भरने की कोशिश भी की. लेकिन बड़ी सफाई से पीएम कैंडिडेट बनने की कार्यकर्ताओं की मांग को टाल गए. उन्होंने लोकतंत्र पर बातें कीं, पार्टी के बारे में कहा और उसे एक सोच बताया. उन्होंने कुछ लोक लुभावनी बातें भी कहीं मसलन रसोई गैस के सिलिंडरों की संख्या बढ़ाकर सालाना 12 करने का सुझाव.

उन्होंने कार्यकर्ताओं को खुश करने के लिए यह भी कहा कि उनसे पूछकर ही उम्मीदवार तय किए जाएंगे यानी पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की एक शुरुआत. राहुल युवा हैं और इसलिए अपने भाषण में उन्होंने युवा वर्ग को पूरा ध्यान में रखा.

राहुल गांधी ने विपक्ष की मार्केटिंग की चर्चा की लेकिन सवाल यह है कि उन्हें अपनी मार्केटिंग से कौन रोक रहा है. जितनी उपलब्धियों की वह बातें कर रहे हैं उन पर तो अच्छी खासी मार्केटिंग हो सकती है. इस बात पर वह विपक्ष की आलोचना कैसे कर सकते हैं?

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उन्होंने सच बोलने के मामले में पुराने नेताओं को याद किया. उनकी फोटो दिखाई लेकिन यह बात समकालीन नेताओं के बारे में क्यों नहीं कही? भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े आरोपों पर वह चुप क्यों रहे? पार्टी चुनाव में किस मोटो से लड़ेगी और उसका नारा क्या होगा, इस पर वह कुछ नहीं बोले. मतलब यह है कि आज जो भी मुद्दे प्रासंगिक हैं उनकी उन्होंने उपेक्षा कर दी. यह भाषण उनके जीवन का सर्वश्रेष्ठ तो कतई नहीं कहा जा सकता है. हमें शायद अभी और इंतज़ार करना होगा और उनके भाषण लिखने वालों को भी और मेहनत करनी होगी.

राहुल गांधी के भाषण की शुरुआत में जो जोश था वह आगे नहीं दिखा और न ही उनमें वह आक्रामक अंदाज दिखाई दिया जो युद्ध में सैनिकों का नेतृत्व करने वाले कप्तान में दिखता है. यह एक ऐसे सैनिक का अंदाज नहीं लगा जो आर-पार की लड़ाई में भाग लेने जा रहा हो. जूझारू सैनिकों के तेवर ही अलग होते हैं और वह तेवर यहां नहीं दिखा. बस दिखी तो एक मां का दमकता हुआ चेहरा और उसकी ममता भरी आंखें.
(मधुरेंद्र प्रसाद सिन्‍हा वरिष्‍ठ पत्रकार और हमारे संपादकीय सलाहकार हैं)

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