आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल का मीडिया से प्रेम खत्म हो चला है और अब वे उसे अपना दुश्मन मानने लगे हैं और इसका ही उदाहरण है समूचे मीडिया को जेल भेज देने की धमकी.
पिछले कुछ समय से केजरीवाल नाराज चल रहे हैं और उसका कारण साफ है कि वो चाहते हैं कि मीडिया वह सब न दिखाए जो उनकी छवि को धक्का पहुंचाता है बल्कि वह दिखाए जिससे उनकी छवि सुधरती है. लेकिन समस्या है कि मीडिया जिसे ऊपर पहुंचाता है उसकी गलतियों पर उसे नीचे भी गिरा देता है. हर समय एक जैसा रहना मीडिया की फितरत भी तो नहीं है.
कभी केजरीवाल मीडिया के दुलारे थे क्योंकि उन्होंने कई बड़े मुद्दे उठाए और जनता के साथ जुड़े. लेकिन बाद में उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी बना ली और उसके बाद भी वह उम्मीद करते रहे कि उनके हर कदम की वाह-वाही होगी. लेकिन वह खेल के बेसिक नियम भूल गए. एक गैर राजनीतिक संगठन के प्रति मीडिया जितना नरम रहता है उतना राजनीतिक दलों के प्रति नहीं क्योंकि वह जानता है कि उनका एकमात्र उद्देश्य सत्ता पाना ही है. अगर अरविंद केजरीवाल यह दुहाई दे रहे हैं कि वे सबसे ईमानदार हैं और उन पर उंगली उठाई ही न जाए तो यह गलत है. वो जो कुछ भी गलत करेंगे उसका खामियाजा उन्हें भुगतना ही पड़ेगा. वह भी तमाम राजनीतिक नेताओं की तरह लटके-झटके अपना रहे हैं, उनकी ही तरह बयान दे रहे हैं और पलट रहे हैं. तो ऐसे में उनका मीडिया के खिलाफ ज़हर उगलना निरर्थक है.
एक और बात है. केजरीवाल ने बहुत कम समय में बहुत ज्यादा प्रसिद्धि पा ली. यह प्रसिद्धि अब उनके दिमाग पर चढ़ने लगी है. उन्हें अब यही लगता है कि वो जो बोलें उन पर गौर फरमाया जाए. हर कोई उन पर विश्वास करे. वो अगर गलत बोलें तो उन पर ध्यान न दिया जाए. यानी हर हाल में उनके दोनों हाथों में लड्डू रहें. ऐसे में कुछ भी ऐसा छप जाने या दिखाए जाने से उन्हें गुस्सा आता है जो उनके मनमाफिक नहीं है. उनकी समस्या है कि वह अपने को विशिष्ट श्रेणी का राजनीतिज्ञ मानते हैं. और यह विशिष्टता की उनकी अवधारणा उन्हें उग्र बना रही है. वह आम नहीं रहे क्योंकि आम आदमी तो आलोचनाओं को सहने के लिए हमेशा तैयार रहता है, खास नहीं. आम आदमी तो ऐसे हालात से जूझता रहता है. अरविंद केजरीवाल अब आम आदमी नहीं हैं, वह खास बन चुके हैं और यह भड़ास उसी का नतीजा है.