बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी बिहार के दौरे पर हैं. उनके पिछले दौरे में बम धमाकों में मारे गए लोगों के परिवारों को सांत्वना देने के लिए. उनकी इस पहल ने वहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की त्योरियां चढ़ा दी हैं. वे उन पर तनाव बढ़ने का आरोप लगा रहे हैं.
इसमें दो राय नहीं है कि मोदी एक योजनाबद्ध तरीके से अपनी राजनीति के पर फैला रहे हैं और वे इसे एक बड़े अवसर के रूप में देख रहे हैं. लेकिन नीतीश कुमार को क्या हुआ, जो वे उन पीड़ितों के घर न जाकर दिल्ली में 14 दलों की सेक्युलरिज्म बैठक में भाग लेने पहुंच गए? अपने राज्य के मुख्यमंत्री होने के नाते उनका यह फर्ज था कि वह पीड़ितों के घर जाते या व्यक्तिगत दूत भेजकर सांत्वना देते. उन्होंने राजधर्म नहीं निभाया और अपना नफा-नुक्सान देखने की कोशिश की. अपने सेक्युलर कार्ड को दिखाने की कोशिश में वे पक्षपात पर उतर आए. शायद उन्हें लगा कि मोदी की रैली में मरने वाले बीजेपी के समर्थक हैं और इसलिए वे उनकी सहानुभूति के हकदार नहीं हैं.
लेकिन मोदी ने भी इस मुद्दे को उछालकर इसे बहुत बड़ा बना दिया और एक तरह से इसका फायदा उठाने की कोशिश की है. बेगुनाहों की मौत को अवसर के रूप में देखना एक अनुचित व्यवहार है. इसे किसी तरह से स्वीकार नहीं किया जा सकता है. लेकिन मोदी इस समय हवा के पंखों पर सवार हैं और उन्हें उचित-अनुचित की शायद परवाह नहीं है. ऐसे में फेयर पॉलिटिक्स की उम्मीद नहीं की जा सकती है.
देश इस समय राजनीति के कोलाहल से गूंज रहा है जहां सच झूठ बनता दिख रहा है और झूठ सबसे बड़ा सच. लोकतंत्र के लिए यह शुभ संकेत नहीं है. जब सही मु्द्दों पर सही लोग सही ढंग से बातें नहीं करेंगे तो देश किस दिशा में जाएगा? गलत मुद्दे और उन पर रस्साकशी किसी के हित में नहीं है. भारतीय लोकतंत्र इस समय एक ऐसे दोराहे पर खड़ा है जहां से एक सड़क मंजिल की ओर जाती है तो दूसरी रसातल की ओर, हमारे राजनेताओं को इनमें से सही चुनाव करना है.