प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार अब उनके बचाव में उतरे हैं. उनका कहना है कि प्रधानमंत्री खूब बोले, उन्होंने काफी काम किया और उनके समय में देश में तरक्की हुई. इन बातों के समर्थन में वह आंकड़े लोकर उतरे. इनके जरिए उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की कि जैसा दिखता है, वैसा सच नहीं है. उन्होंने मनमोहन सिंह को 'विकास पुरुष' बताया. लेकिन इन बातों पर शायद मीडिया ने खास ध्यान नहीं दिया, क्योंकि आंकड़े छलते हैं और कई बार झूठ का एक माध्यम होते हैं. अगर मीडिया सलाहकार की ही बात मान ली जाए, तो मनमोहन सिंह ने लगभग 1200 स्पीच दिए. अब सवाल है कि इतने सारे स्पीच किसने सुना और उनका क्या असर हुआ? उनकी आवाज़ दूर-दूर तक क्यों नहीं गूंजी?
अगर उन्होंने गांवों और किसानों की भलाई के बड़े काम किए, तो उन्हें शाबासी क्यों नहीं मिली? उनके समय में विकास हुआ, तो उसकी चर्चा आज क्यों नहीं हो रही है? संसद में कई ऐसे मौके आए जब वह बोल सकते थे, लेकिन वह बोले नहीं. लाल किले की प्राचीर से तो उन्हें बोलने का मौका बहुत बार मिला, फिर वहां क्या बोले वह? ऐसे कई सवाल ज़ेहन में उठते हैं. आखिर यह वही मनमोहन सिंह तो हैं, जिनके आर्थिक सुधारों से देश की जनता मोहित हुई थी और उनकी जय-जयकार हुई थी. यह वही मनमोहन सिंह हैं, जिनके प्रधानमंत्री बनने पर लोगों ने हर्ष जताया था. वे वही मनमोहन सिंह हैं, जिनकी ईमानदारी पर किसी ने कभी संदेह नहीं किया.
यूपीए 2 के शासनकाल में देश की हालत में जो गिरावट आई, उसके लिए बेशक मनमोहन सिंह अकेले जिम्मेदार नहीं हो सकते हैं. इसके लिए कई लोग और परिस्थितियां जिम्मेदार हैं, लेकिन सवाल उनके बारे में ही उठाए जाएंगे, क्योंकि वे उस सरकार के मुखिया थे. अगर किसी मंत्री ने ढंग से काम नहीं किया, तो उसकी जिम्मेदारी तो है ही, प्रधानमंत्री की भी उतनी ही जिम्मेदारी है. यूपीए 2 का शासनकाल कैसा रहा, यह किसी से भी पूछा जाए, तो जवाब वही होगा कि यह एक असफल सरकार थी. आंकड़े देकर उसे महान नहीं बताया जा सकता है और आंकड़े भी वैसे कि लोगों को भरमाया जाए.
समय बड़ा निर्मम होता है और उसे राजा को रंक बनाने में देर नहीं लगती. आज मनमोहन सिंह पर वार हो रहे हैं और उनकी पार्टी चुप है. उनकी साख पर बट्टा लग गया, तो उन्हें खुद ही बचाव में आना पड़ रहा है. यह सब दुखद है, क्योंकि मनमोहन सिंह को देश की कई उपलब्धियों का श्रेय जाता है. उन्होंने जो कुछ कमाया था, वह सब अपनी चुप्पी से गंवा दिया, क्योंकि मौन रहना हमेशा फलदायक नहीं होता है, कभी-कभी यह काफी कष्टदायक होता है.