अब भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कह रहे हैं कि मीडिया ने बनाई नरेंद्र मोदी की लहर. इसके पहले अरविंद केजरीवाल ने यह बात कही. उसके पहले कांग्रेस ने केजरीवाल के बारे में यही बात कही. मतलब यह है कि हर किसी को मीडिया में खोट दिखाई देता है. हर कोई समय और अवसर के हिसाब से मीडिया को जिम्मेदार बता देता है. लेकिन हैरानी है कि ऐसा आरोप लगाने वालों में ऐसे लोग हैं जो देश चलाते हैं.
वे बड़ी हस्तियां हैं और हैरानी इस बात की है कि वे अपनी कमजोरी छुपाने के लिए मीडिया पर वार करती हैं. सवाल है कि मीडिया कोई लहर कैसे पैदा कर सकती है, खासकर तब जबकि कहीं कोई सुगबुगाहट न हो. आखिर आग होगी तभी धुआं होगा. लेकिन आरोप लगाने वाले बाज नहीं आते. उन्हें लगता है कि ऐसा आरोप मढ़कर वे अपनी कमजोरियों को छुपा लेंगे. ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि भारत की मीडिया दुनिया की सबसे निष्पक्ष मीडिया में गिनी जाती है. यह हो सकता है कि पक्षपात या दुष्प्रचार के कुछ मामले सामने आए हों लेकिन कमोबेश यह एक निष्पक्ष संस्था है जो अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी जानती है.
अगर आज कांग्रेस को यह लग रहा है कि मोदी की लहर मीडिया ने पैदा की है तो उसे अपने बारे में सोचना होगा कि आखिर वह ऐसा क्यों नहीं कर पाई जबकि सत्ता में दस साल थी. क्यों नहीं उसने ऐसा कुछ किया कि एक लहर पैदा हो? आखिर उसने मौका हाथ से जाने क्यों दिया? क्या उसके पास मीडिया मैनेजर नहीं थे? कई सवाल हैं जिनके जवाब किसी के पास नहीं हैं. उठाना और फिर गिराना तो मीडिया की फितरत है. वह हमेशा किसी के साथ रही है भला?
सच तो यह है कि मीडिया निर्मोही है. अगर आज यह किसी का साथ दे रही है तो जरूरी नहीं कि उसकी हमेशा की हो जाए. वक्त और जिम्मेदारियों के हिसाब से वह हमेशा अपना रोल बदलती है. इसने न जाने कितनों को चढ़ाया है और न जाने कितनों को गिराया है. इस पर पक्षपात का आरोप लगाना सरासर ज्यादती होगी.