अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी अब अपने ही जाल में उलझती जा रही है. जिस जोश खरोश से इसका गठन हुआ और जैसे क्रांतिकारी वादे पार्टी ने किए उससे तो राजनीति में एक तूफान सा आ गया था. लेकिन समय के साथ-साथ पार्टी भ्रमित और रक्षात्मक होती जा रही है.
पार्टी के विद्रोही विधायक विनोद कुमार बिन्नी अनशन पर उतर आए और मंत्री सोमनाथ भारती ने पार्टी की भद पिटवाई. उनकी रक्षा में पार्टी दिन-रात एक कर रही है और किसी की नहीं सुन रही है. सड़कों पर रहकर केजरीवाल ने जिस तरह से सरकार चलाने का एक उदाहरण पेश किया वह भी किसी के गले नहीं उतरा और राष्ट्रपति को भी तीखी टिप्पणी करनी पड़ गई.
इस शोर-शराबे में पार्टी के बड़े-बड़े वादों का क्या हुआ यह किसी की समझ में नहीं आ रहा है. पार्टी अब कह रही है कि वह लोकपाल जल्द लाएगी. लेकिन इसके पहले पानी-बिजली के वादे कितने पूरे हुए, यह हर किसी ने देखा. पार्टी ने राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार को बहुत बड़ा मुद्दा बनाया था लेकिन अब तक उस दिशा में कुछ ठोस होता नहीं दिख रहा है.
अगर ध्यान से देखें तो पाएंगे कि पार्टी ने बहुत शोर मचाया और अब भी मचा रही है लेकिन कोई ठोस तस्वीर निकल कर आती दिख नहीं रही है. अब उसकी बातें लोगों के गले नहीं उतर रही हैं. दिल्ली के चुनाव में पार्टी की अप्रत्याशित सफलता के बाद पार्टी बेहद महत्वाकांक्षी होती दिखती है.
एक राजनीतिक दल होने के नाते अगर चुनाव लड़ना उसका फर्ज है और उसमें कुछ ग़लत नहीं है लेकिन यहां मामला कुछ और होता दिख रहा है. पार्टी का ध्यान बंटता जा रहा है और असंतुष्ट लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है. लोगों की समस्याएं जस की तस हैं. लोगों की हजारों शिकायतें हर रोज आ रही हैं लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो पा रही है. अस्थायी शिक्षक और कर्मचारी जिस उम्मीद से पार्टी के साथ खड़े हुए थे, वे हैरान हैं. पार्टी ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे उसकी जय जयकार हो जाए.
ऐसा नहीं है कि पार्टी से जुड़े सभी सपने टूट गए हैं, लेकिन उसने जितनी जल्दी का वादा किया वह कहीं नहीं दिखाई देता. जिस जनलोकपाल बिल की पार्टी बात कर रही है उससे तुरंत तो कुछ होने वाला नहीं है. अगर अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार की तह में जाना चाहते हैं तो उन्हें कई मुद्दे मिल सकते हैं. लेकिन इसमें भी वक्त लगेगा. यानी जो कुछ वह करना चाहते हैं उन सब में वक्त लगेगा और यह वक्त ही तो है जो उनके पास बहुत कम है. अपने बड़े-बड़े वादों और महत्वाकांक्षाओं से पार्टी घिरी हुई सी दिख रही है.