राहुल गांधी के बयान से अब वह धुंध छंट गई है जो उनकी पीएम पद की उम्मीदवारी की राह को धुंधला कर दिखा रही थी. अब यह साफ हो गया है कि वे 2014 में कांग्रेस की कमान पीएम कैंडिडेट के तौर पर संभालेंगे. ज़ाहिर है कि मल्लाहविहीन सी दिख रही भारत की इस सबसे पुरानी पार्टी में अब ज़ोश भर जाएगा.
चार राज्यों में बुरी तरह मार खाए उसके कार्यकर्ताओं में अब शायद थोड़ा उत्साह जगे. पार्टी के सामने बड़ा प्रश्न यह था कि आखिर नरेन्द्र मोदी की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के सामने वह अपना कौन उम्मीदवार उतारे? अब राहुल गांधी ने ऊहापोह की इस स्थिति को खत्म कर दिया है. वे संशय और अविश्वास से भरी एक पार्टी के नेता के रूप में चुनाव लड़ेंगे और कमान भी संभालेंगे. लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि इतने समय तक, इतने मानमनौव्वल और इतने आक्रमण झेलने के बाद ही वह क्यों सामने आए?
शायद आने वाले समय में अपनी प्रेस वार्ताओं में वह यह स्पष्ट करेंगे या हो सकता है कि चुप्पी ही साध जाएं. बहरहाल, 2104 की जिम्मेदारी उनके युवा कंधों पर है और पार्टी है कि पस्त दिख रही है. ऐसा नहीं है कि किसी बाहरी आक्रमण ने पार्टी को इतना कमज़ोर बना दिया. यह सब पार्टी के कर्णधारों की ही करनी है.
यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि यूपीए सरकार में सत्ता के दो केन्द्र थे और आपसी हितों और उससे भी ज्यादा फैसलों का टकराव होता था. फाइलें रुकी रह जाती थीं और फैसलों पर अनिर्णय की तलवार लटक जाती थी. पीएम कोई और था तो राजसत्ता किसी और के पास थी. बड़ा ही विरोधाभास था. लेकिन अब धुंध छंट चुकी है और राहुल विधिवत कमान संभालने को तैयार हैं.
इसके साथ ही पार्टी में उन लोगों के दिन भी लद गए जो पर्दे के पीछे से सत्ता चलाने का खेल करते थे. यह सच है कि आगे मुकाबला बहुत कठिन है लेकिन यह भी नहीं कहा जा सकता कि राहुल राजनीति के नौसिखिये खिलाड़ी हैं. उन्होंने राजनीति को समझा है और छोटे-छोटे कदम भी उठाए हैं. भले ही उन्हें अपार सफलता हाथ नहीं लगी हो लेकिन शुरुआत करने लायक अनुभव उनके पास है.
चुनाव अभियान में वह कह सकते हैं कि उन्होंने राजनीति में शुचिता की बात की थी, व्यवस्था में बदलाव लाने के प्रयास का वो हिस्सा बने थे और गांवों में जाकर गरीबों के घर रात बिताकर राजनीति की वर्णमाला समझने का एक प्रयास भी किया था. बहरहाल बाजी बिछ चुकी है. अब देखना है कि राहुल गांधी कांग्रेसियों में कितना साहस भर पाते हैं और कैसे अपने को अशोक साबित कर पाते हैं.
(मधुरेंद्र प्रसाद सिन्हा वरिष्ठ पत्रकार और हमारे संपादकीय सलाहकार हैं)