आम आदमी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल को मीडिया से परेशानी है. वह कहते हैं कि मोदी की कोई हवा नहीं है और मीडिया ने यह हवा बनाई है. वह आरोप लगाते हैं कि मीडिया जड़ में नहीं जाती. उनका कहना है कि मीडिया अतिवादी है. मीडिया के खिलाफ वह तरह-तरह के बयान देते रहते हैं. जिस मीडिया ने उन्हें राष्ट्रीय नेता बनाया उसके बारे में वह कुछ भी कहते बाज नहीं आते.
उनका यह स्वभाव हो गया है कि जब मौका मिले मीडिया की खिंचाई कर दी जाए. अब यह समझना मुश्किल है कि ऐसा कहने के पीछे उनकी मंशा क्या है, क्या वह इस तरह के बयान देकर मीडिया पर एक दबाव बनाना चाहते हैं ताकि उनकी खुद की कवरेज पूरी होती रहे या फिर वे नहीं चाहते कि किसी और को मीडिया तव्वजो न दे? कहना मुश्किल है. केजरीवाल वह केजरीवाल नहीं है जो हमने एक-डेढ़ साल पहले देखा था. अब वह राजनीति के चतुर खिलाड़ी बन चुके हैं. वह शब्दों से खेलना जानते हैं और दूसरों पर सीधा आक्रमण करना भी जानते हैं. वह तमाम चालें जानते हैं जिनसे मीडिया में बना रहा जा सकता है.
उन्होंने अपनी ईमानदारी का जो ढिंढोरा पीटा वह बेमिसाल है. ऐसा नहीं कि भारत में ईमानदार राजनीतिज्ञ या मंत्री नहीं है, लेकिन केजरीवाल अपने को सर्वश्रेष्ठ बताने में जरा भी नहीं हिचकते. वह भूल जाते हैं कि इसी देश में ममता बनर्जी, मनोहर पर्रिकर, नीतीश कुमार जैसे मुख्यमंत्री भी हैं जिनकी ईमानदारी और सादगी पर कोई शक नहीं है. लेकिन अभी तो वह मीडिया से खफा दिख रहे हैं. उन्हें तकलीफ इस बात की है कि मीडिया हर वक्त उनके बारे में क्यों नहीं दिखाता-सुनाता है. जबकि सच्चाई यह है कि टीवी चैनलों पर वह राहुल गांधी से भी ज्यादा समय तक दिखलाए जाते रहे हैं. जितना वक्त चैनलों ने राहुल गांधी को दिखाया उसका दुगना अरविंद केजरीवाल को दिखाया जबकि राहुल न केवल राष्ट्रीय पार्टी के नेता हैं बल्कि उनकी ही पार्टी अभी देश पर शासन कर रही है. लेकिन केजरीवाल इससे खुश नहीं है, वह मीडिया के व्यवहार में पक्षपात देखते हैं.
दरअसल केजरीवाल की पब्लिसिटी की भूख उन्हें मीडिया पर वार करने को प्रेरित करती है. उन्होंने मीडिया से इतना कुछ पा लिया कि यह भूख और जग गई है. उन्हें अब और पब्लिसिटी चाहिए. इसी पब्लिसिटी की तलाश में उन्होंने अपना मोटो भी बदल लिया, वह आए तो थे भ्रष्टाचार के खिलाफ झंडा बुलंद करने को लेकिन उन्हें लगा कि इसमें उन्हें काफी पब्लिसिटी मिल चुकी है तो वह साम्प्रदायिकता को देश का सबसे बड़ा दुश्मन मानने लगे. उन्हें मालूम था कि इससे वे सीधे नरेंद्र मोदी के सामने आ जाएंगे फिर खूब पब्लिसिटी मिलेगी और उन्हें मिली भी. लेकिन वह इससे खुश नहीं हैं क्योंकि उन्हें अभी और चाहिए. इसलिए वह कहने से बाज नहीं आते कि मीडिया मोदी के आगे रेंग रहा है.
चुनाव खत्म होने वाले हैं और रिजल्ट भी हफ्ते भर में आ जाएंगे. यह देखना दिलचस्प होगा कि उसके बाद केजरीवाल पब्लिसिटी की अपनी भूख शांत करने के लिए क्या करते हैं?