बीसवीं सदी के महापुरुषों में शिरडी के साईं बाबा को गिना जाता है. गरीबों, दुखियारों और अनाथों की निस्वार्थ भाव से सेवा करके उन्होंने अपने आलोचकों तक का दिल जीत लिया था. मानवता की सेवा में उनका कोई सानी नहीं था. उन्होंने अपने इस काम में धर्म को कभी आडे़ नहीं आने दिया और हर धर्म तथा समुदाय की चुपचाप सेवा की. महाराष्ट्र के शिरडी ग्राम को उन्होंने अपनी कर्मस्थली बनाया और जीवन भर वहीं रहे.
वह हिन्दुओं के साथ दीवाली मनाते थे तो मुसलमानों के साथ ईद. उन्होंने धर्म के आधार पर किसी के साथ कोई व्यवहार नहीं किया और अपना जीवन कमजोर तथा सर्वहारा वर्ग को अर्पित कर दिया. उन्हें हिन्दू-मुस्लिम एकता का एक ज्वलंत मिसाल माना जाता है. वह मानते थे कि धर्म चाहे जो भी हो ईश्वर एक है. यही कारण है कि उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई और वे एक फकीर से पूजनीय महापुरुष का दर्जा पाने में सफल हुए. आज देश-विदेश में बड़ी तादाद में उनके अनुयायी हैं.
शिरडी स्थित उनके मंदिर में लाखों भक्त हर साल उनकी अराधना करने और आशीर्वाद मांगने आते हैं. यह कोई मामूली बात नहीं है कि महाराष्ट्र के एक सुदूर गांव में चुपचाप गरीबों और लाचारों की सेवा करने वाला एक फकीर इतना देश में लोकप्रिय हो जाए कि लोग उसे भगवान की दर्जा ही दे दे. लेकिन अब शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने उनके बारे में तरह-तरह की बातें कहकर एक अनावश्यक विवाद को जन्म दे दिया है.
उनका कहना है कि साईं बाबा की पूजा हिन्दू धर्म को बांटने की साजिश है और इसके पीछे विदेशी ताकतें हैं. इससे हिन्दू धर्म कमजोर होगा. शंकराचार्य बयान देते वक्त यह भूल गए कि हिन्दू धर्म तो जाति और परंपराओं के आधार पर पहले से ही बंटा हुआ धर्म है और उसे एक करने के लिए आज भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है. आज हिन्दू धर्म में तमाम तरह की कुरीतियां, अंधविश्वास और गलत परंपराओं को बढ़ावा दिया जा रहा है लेकिन शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती उनके बारे में कुछ नहीं बोलते.
जिस हिन्दू धर्म में नारी की पूजा की बातें की जाती हैं, वहां उनकी सबसे ज्यादा दुर्दशा है. धर्म के नाम पर धन कमाने का सिलसिला जारी है और सैकडों फर्जी बाबा देश के कोने-कोने में विचरण कर रहे हैं, उनके बारे में उन्होंने क्यों नहीं मुंह खोला? बड़े-बड़े मंदिरों में भक्तों से जिस तरह से पैसे ऐंठे जाते हैं उसके बारे में उन्होंने कभी कुछ क्यों नहीं कहा? साईं बाबा को वह गुरू भी मानने को तैयार नहीं है और उसके पीछे उनके तर्क भी अजीब हैं. उनका कहना है कि गुरू आदर्शवादी होता है और साईं बाबा ऐसे नहीं थे. यह सरासर गलतबयानी है. साईं बाबा ने जो आदर्श स्थापित किए वे बहुत कम लोग ही कर पाते हैं. उनका यह कथन कि ब्रिटेन हिन्दुओं को बांटना चाहता है, निहायत ही गैरजिम्मेदाराना है.
उन्हें एक सच्चे हिन्दू की तरह सहनशीलता और दयालुता की प्रतिमूर्ति की तरह व्यवहार करना चाहिए न कि एक असहिष्णु और संकीर्ण सोच वाले व्यक्ति की तरह. शंकराचार्य का पद बड़ा होता है और उससे हमेशा अच्छी तथा विद्वतापूर्ण बातों की अपेक्षा की जाती है. स्वरूपानंद सरस्वती इस तथ्य को समझकर ही बयान देते तो बेहतर है.