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Opinion: रक्षा मंत्री की दो टूक स्वीकारोक्ति

नए रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर अपनी सादगी और साफ बोल के लिए जाने जाते हैं. उनकी बातों में कोई छल या दांवपेंच नहीं दिखता. आजतक के एजेंडा 2014 कार्यक्रम में उन्होंने सादगी से अपनी बात रखी और सरकार की नीति की एक झलक भी दिखाई. उन्होंने साफ जता दिया कि वे कुछ करके दिखाना चाहते हैं. देश की रक्षा के प्रति वह संवेदनशील हैं और इसमें कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं.

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रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर

नए रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर अपनी सादगी और साफ बोल के लिए जाने जाते हैं. उनकी बातों में कोई छल या दांवपेंच नहीं दिखता. आजतक के एजेंडा 2014 कार्यक्रम में उन्होंने सादगी से अपनी बात रखी और सरकार की नीति की एक झलक भी दिखाई. उन्होंने साफ जता दिया कि वे कुछ करके दिखाना चाहते हैं. देश की रक्षा के प्रति वह संवेदनशील हैं और इसमें कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं.

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उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान की हरकतों का जवाब अच्छी तरह दिया जाएगा लेकिन हमें इसका हल ढूंढ़ना ही होगा. यानी वह चाहते हैं कि एक ओर तो भारत पाकिस्तान को उसकी गलत हरकतों के लिए कड़ा जबाव तो देता रहे, साथ ही दीर्घशांति के लिए रास्ते भी ढूंढ़ता रहे. यह बात पते की है क्योंकि हर समझदार व्यक्ति जानता है कि बंदूक का जवाब तो बंदूक से दिया जा सकता है लेकिन दो पड़ोसियों के बीच यह नीति हमेशा कारगर नहीं हो सकती. पड़ोसी के साथ अंततः बेहतर संबंध रखने ही होते हैं.

रक्षा मंत्री का देश के सिपाहियों की जरूरतों को समझना और उनके लिए कुछ कर दिखाने की भावना रखना एक बड़ी बात है. अमूमन रक्षा मंत्री हथियारों और गोला-बारूद की बात तो करते हैं लेकिन उनकी प्राथमिक सुविधाओं मसलन जूते वगैरह की बातें नहीं करते. जब सियाचिन में पाकिस्तान ने हमला किया और कई जगहों पर कब्जा कर लिया तो पता चला था कि हमारे सिपाहियों के पास उतनी ऊंचाई पर लड़ने के लिए न तो गर्म कपड़े हैं और न ही जूते. यह बहुत निराशाजनक था और उस कारण हमारे जाबांज जवानों को बहुत परेशानी उठानी पड़ी थी.

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लेकिन वर्तमान रक्षा मंत्री इस मामले में संवेदनशील दिखते हैं. उन्हें लगता है कि हमारे सैनिकों के पास गोला-बारूद और उपकरणों की भारी कमी है, जिसे पूरा किया जाना जरूरी है लेकिन साथ ही साथ उनकी बुनियादी जरूरतों की उपेक्षा नहीं की जा सकती है. उनका यह कहना कि रक्षा के सामानों के सौदे में लगे एजेंटों को वैधानिकता प्रदान की जाए बिल्कुल सही है. इससे सौदों में पारदर्शिता आएगी और किकबैक के आरोप भी नहीं लगेंगे. उससे भी बड़ी बात यह होगी कि वे हथियारों की खरीद वर्षों तक नहीं लटकी रहेगी.

मनोहर पर्रिकर की एक और बात अच्छी लगती है कि उन्हें अपनी योग्यता या डिग्री के बारे में कोई गुमान नहीं है. यह आज के संदर्भ में बहुत बड़ी बात है क्योंकि अमूमन बड़े पदों पर आसीन लोग अपनी योग्यता या डिग्री के बारे में बहुत दंभी हो जाते हैं. रक्षा सौदों और हथियारों के उत्पादन के बारे में उनका बयान सही है. उन्हें पता है कि इनमें जल्दबाजी नहीं हो सकती है. वे चाहते हैं कि जो कुछ भी खरीदा जाए वह बेहतर हो और जरूरत का हो. हम उम्मीद कर सकते हैं कि मनोहर पर्रिकर के कार्यकाल में देश के रक्षा मंत्रालय में आमूल-चूल बदलाव आएगा क्योंकि यहां अब सोच बदल गई है.

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