भारतीय गणराज्य के 29 वें राज्य का उदय हो चुका है. इसके साथ ही कई दशकों से चले आ रहे एक संघर्ष और विवाद का अंत हो गया है. तेलंगाना आंदोलन के नायक के. चंद्रशेखर राव ने आंध्र प्रदेश से अलग हुए राज्य के नेतृत्व की कमान अपने हाथ में ले ली है.
राजनीति के खेल भी अजीब हैं, एक ही भाषा बोलने वाले लोगों के अब दो राज्य हो गए हैं. चंद्रशेखर राव जो केसीआर के नाम से जाने जाते हैं कांग्रेस के नेता थे और बाद में इस आंदोलन की कमान अपने हाथों में लेकर तेलांगना क्षेत्र में एक नायक की तरह उभरे और आज उसके मुखिया बन गए. दिलचस्प बात यह है कि जिस कांग्रेस ने इस राज्य के गठन के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया, वह सत्ता के खेल में पिछड़ गई और सारा श्रेय केसीआर ले गए. जिस आंध्र प्रदेश से कांग्रेस ने पिछले लोक सभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जीतीं, उनके हाथ कुछ नहीं आया. दरअसल जिस अटपटे ढंग से इस राज्य का बंटवारा हुआ उसका खामियाजा तो पार्टी को भुगतना ही था.
आजाद भारत में एक राज्य के बंटवारे के बाद दूसरा राज्य बनने की यह कोई नई दास्तां नहीं है, पहले भी कई राज्य बने. लेकिन दुखद यह है कि एक-दो छोड़कर बाकी में वे वादे पूरे नहीं हुए जो आंदोलन के दौरान किए गए थे. उत्तराखंड, झारखंड और यहां तक कि छत्तीसगढ़ का उदाहरण हमारे सामने है. ये सभी राज्य जनता की आंकांक्षाओं पर खरे नहीं उतरे और वहां हालत वही है जो पहले थी. दरअसल जिन लोगों ने उन आंदोलनों की कमान अपने हाथों में ली थी वे या तो रास्ते से भटक गए या फिर उन्हें आगे का रास्ता ही नहीं सूझा. उन राज्यों की जनता को कोई फायदा नहीं हुआ, बस नौकरशाहों की फौज फली-फूली. भ्रष्ट स्थानीय नेताओं की बन आई और उन्होंने जमकर शोषण किया.
केसीआर ने एक राजनेता की तरह वहां की जनता से लंबे-चौड़े वादे किए हैं और कहा कि वह भ्रष्टाचार का खात्मा कर देंगे. उन्होंने जन कल्याण की बड़ी योजनाओं के शुरुआत की भी बातें कही हैं. अब यह उनकी निष्ठा और प्रतिबद्धता पर निर्भर करता है कि वह क्या कर पाते हैं.
बहरहाल नए राज्य के जन्म पर यही शुभकामना दी जा सकती है कि यह राज्य फले-फूले और जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतरे. तो स्वागत कीजिए भारत के इस नए राज्य का जिसकी जनता ने काफी समय तक प्रतीक्षा करने के बाद यह पाया है और उम्मीद कीजिए कि प्रगति का रथ यहां तेज गति से दौड़ेगा.