scorecardresearch
 

Opinion: मोदी और बनारसी साड़ी

पीएम मोदी की वाराणसी यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण है लेकिन उन्होंने वहां के लाखों बुनकरों की स्थिति सुधारने के लिए जो बातें कहीं वे सारगर्भित हैं. उनका यह कहना कि हर मां चाहती है कि उसकी बेटी अपनी शादी पर बनारसी साड़ी पहने, बहुत ही दूरदर्शी बयान है.

Advertisement
X
वाराणसी में नरेंद्र मोदी
वाराणसी में नरेंद्र मोदी

पीएम मोदी की वाराणसी यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण है लेकिन उन्होंने वहां के लाखों बुनकरों की स्थिति सुधारने के लिए जो बातें कहीं वे सारगर्भित हैं. उनका यह कहना कि हर मां चाहती है कि उसकी बेटी अपनी शादी पर बनारसी साड़ी पहने, बहुत ही दूरदर्शी बयान है.

Advertisement

बनारसी साड़ियां सदियों से साड़ियों का सिरमौर रही हैं. वे बेटी की शादी में दी जाने वाली एक धरोहर होती हैं. बनारसी साड़ियों ने न केवल वाराणसी को एक प्रतिष्ठा दी है बल्कि वहां हजारों बुनकरों और कारीगरों को रोजी-रोटी दी है. इससे वहां की अर्थव्यवस्था चलती है और हजारों घरों में चूल्हा भी जलता है. लेकिन हाल के वर्षों में जैसे कि बनारसी साड़ी के व्यवसाय पर ग्रहण लग गया. इनकी बिक्री कम होने लगी. नई पीढ़ी की लड़कियों में इसके प्रति रुचि कम हो गई, बिचौलियों ने भी बुनकरों को खूब ठगा, राज्य सरकार ने उनके लिए कुछ भी नहीं किया. नतीजतन किसी समय भारत की शान कही जाने वाली बनारसी साड़ियां गुमनामी के अंधेरे में खोने लगीं. एक ओर बुनकरों के सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई दूसरी ओर एक फलता-फूलता व्यवसाय ठहरने लगा. साड़ी बुनने का पुश्तैनी धंधा खत्म होने लगा और रोजगार की तलाश में बुनकर तथा कारीगर

Advertisement

पलायन करने लगे. किसी ने उनकी सुध नहीं है. यह देखते हुए भी कि ज्यादातर बुनकर अल्पसंख्यक हैं, उनके हितों की लंबी-चौड़ी बातें करने वाली राजनीतिक पार्टियां चुप्पी साधे रहीं. उनके लिए कुछ नहीं किया गया. अब पीएम ने इस बात का जिक्र करके बनारसी साड़ियों के काम में लगे हजारों बुनकरों के लिए सुनहरे भविष्य का तानाबाना बुनने की कोशिश की है. जो लोग भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं से परिचित हैं उन्हें पता होगा कि सैकड़ों वर्षों से चल रहा भारतीय कपड़ा उद्योग देश का दूसरा सबसे बड़ा उद्योग है और यह साढे़ तीन करोड़ लोगों को सीधे रोजगार देता है और लगभग इतने ही लोग इसमें अप्रत्यक्ष रूप से लगे हुए हैं. अंग्रेजों ने इसे नष्ट करने के लिए काफी कुछ किया लेकिन वे सफल नहीं हुए. लेकिन इसने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने को बचाए रखा. देश के कोने-कोने में बसे लाखों कारीगरों ने अपना पेट काटकर इसे बचाया.

भारत के कपड़े सारी दुनिया में एक्सपोर्ट होते रहे हैं लेकिन 2009 में आई मंदी ने इसे मुसीबत में डाल दिया. हमारे एक्सपोर्ट पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा और हजारों इकाइयां बंद हो गईं. लाखों कारीगर बेरोजगार हो गए. चीन के सिल्क ने हमारे सिल्क उद्योग को संकट में डाल दिया और इसके सामने अस्तित्व का सवाल खड़ा हो गया. इसका असर बनारसी साड़ियों पर भी पड़ा. खुशी की बात है कि पीएम मोदी ने बनारसी साड़ियों का जिक्र करके इस उद्योग की ओर सभी का ध्यान खींचा है. उम्मीद की जा सकती है कि उनकी बात सुनी जाएगी और इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए बड़े कदम उठाए जाएंगे.

Advertisement
Advertisement