कांग्रेस पार्टी में एक नई चर्चा शुरू हुई है, बूढ़े नेताओं के बारे में. जनार्दन द्विवेदी का कहना है कि 70 साल से अधिक उम्र के नेताओं को सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए. उन्हें सलाहकार की भूमिका निभानी चाहिए. उनका मानना है कि सार्वजनिक जीवन में रहने वालों के लिए भी अन्य प्रोफेशनल्स की तरह उम्र की सीमा होनी चाहिए.
पार्टी के महत्वपूर्ण पदों पर रहने वालों को बहुत भागदौड़ करनी होती है और कम उम्र के लोग उनके लिए उपयुक्त होते हैं. इससे पहले पूर्व मंत्री जयराम रमेश ने कहा था कि कांग्रेस के वो नेता जो 70 साल के हो चुके हों, रिटायर हो जाएं. कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पहले ही युवा नेताओं पर ज्यादा विश्वास जताया था. उधर पीएम मोदी ने अपने दल में बूढ़े नेताओं को सक्रिय पदों से बाहर कर दिया है. उनकी कोर टीम में ज्यादातर नेता कम उम्र के हैं और वह उन पर पूरा भरोसा जता रहे हैं. लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी सरीखे नेताओं को किनारे किए जाने के बाद यह बात साफ हो गई है कि बीजेपी में अब बूढ़े नेताओं के लिए कोई सक्रिय जगह नहीं है.
भारतीय राजनीति की यह अजब विडंबना रही है कि ज्यादातर महत्वपूर्ण पदों पर बूढ़े नेता हावी होते रहे हैं. कई राजनीतिक नेता जो शारीरिक रूप से भी अक्षम रहते थे, वह भी महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान हो जाते रहे हैं. इसका एक उदाहरण है सीस राम ओला का 86 वर्ष की उम्र में मंत्री बनाया जाना. वह महज छह महीने ही इस पद पर रह पाए और स्वर्ग सिधार गए. कहने का मतलब साफ है कि अत्यधिक उम्र के नेताओं को मंत्री या ऐसे महत्वपूर्ण पद देना कोई समझदारी नहीं है. शारीरिक रूप से वे उतने सशक्त नहीं होते हैं और न ही उस उम्र में बुद्धि साथ दे पाती है. इससे भी बडी़ बात यह है कि सवा सौ करोड़ लोगों के देश में कम उम्र के योग्य राजनीतिज्ञों की कमी नहीं है.
हर पार्टी में युवा या कम बुजुर्ग नेता हैं जो हर महत्वपूर्ण पदों पर कहीं बेहतर ढंग से काम कर सकते हैं. उनकी उत्पादकता भी कहीं ज्यादा होगी. आज के बदलते वक्त में नेताओं तथा महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों को भी तेज गति से काम करना होता है. वो लोग जो शारीरिक और मानसिक रूप से कहीं सक्षम हों, उन्हें ज्यादा जिम्मेदारी देना उचित होगा.
भारत दुनिया का सबसे युवा देश होने जा रहा है जहां युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा होगी. ऐसे में उनकी तरह का सोच रखने वाले राजनीतिज्ञों की भी जरूरत है. उनकी आकांक्षाओं और उम्मीदों को समझना होगा. देश को अगर बेहतर ढंग से चलाना है तो उनकी अधिक से अधिक भागीदारी होनी चाहिए. हर पार्टी को यह बात समझनी होगी. बीजेपी ने तो इसकी शुरुआत कर दी है. कांग्रेस में इस पर चिंतन शुरू हुआ है. यह अच्छा संकेत है और आने वाले दिनों में इसके अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे.