गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश सहित 10 राज्यों की 33 विधान सभा सीटों और 3 लोकसभा की सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणाम सामने हैं. बीजेपी के लिए ये निराशाजनक हैं और एक तरह से राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में पार्टी के लिए धक्का है. राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पार्टी ने लोकसभा चुनाव में जो जलवा दिखाया था, वह काफी हद तक गायब है.
राजस्थान में पार्टी को तीन सीटों से हाथ धोना पड़ा जबकि सिर्फ एक सीट उसके खाते में गई. यह मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए बड़ा धक्का है और उन्हें इस पराजय के बाद आगे के बारे में सोचना पड़ेगा. हालांकि वह कह सकती हैं कि इन सभी सीटों पर कांग्रेस की विजय का मार्जिन बहुत ही कम है. लेकिन हार हार ही होती है और उसमें मार्जिन का कोई मायने नहीं है.
लेकिन उत्तर प्रदेश के बारे में बीजेपी आलाकमान को अपनी रणनीति के बारे में फिर से सोचना होगा. वहां समाजवादी पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी की अनुपस्थिति में प्रभावशाली जीत दर्ज की है. उसने नौ सीटों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जबकि लोकसभा चुनाव में 70 सीटें जीतने वाली बीजेपी को महज दो सीटें मिलीं. मैनपुरी लोकसभा सीट पर जैसी कि उम्मीद थी मुलायम के भाई के पोते ने जीत दर्ज की. इनमें से कुछ सीटें ऐसी थीं जिनके बारे में अनुमान था कि वे बीजेपी की झोली में जाएंगी, सपा के पास गईं.
बीजेपी के लिए यह बड़ा धक्का है क्योंकि वहां पार्टी की निगाहें लखनऊ के सिंहासन पर है. लेकिन ये चुनाव परिणाम उसके सपनों पर पानी फेर सकते हैं. इनसे इतना संकेत तो मिलता है कि पार्टी पहले जैसी मजबूत नहीं रही और वहां संगठन स्तर पर काफी कुछ करने की जरूरत है. अमित शाह का जादू और मोदी का नाम पार्टी के काम नहीं आया. वैसे भी विधान सभा चुनाव में हमेशा समीकरण और मुद्दे अलग होते हैं.
लेकिन पार्टी को इस बात से संतोष हो सकता है कि उसने आखिरकार बंगाल में कदम रख ही दिया. वहां लोकसभा चुनाव में भले ही उसे सीटें नहीं मिली थीं लेकिन विधान सभा में उसने एक सीट पर जीत हासिल करके एक नया अध्याय लिखा. असम के सिलचर की सीट पर जीत भी उसके लिए सुखद है. गुजरात के परिणाम पार्टी के लिए संतोष का सबब बन सकते हैं लेकिन उससे खुशी नहीं मिल सकती.
बहरहाल बात यहीं खत्म नहीं हो जाएगी. इन परिणामों से सपा का मनोबल बढ़ेगा जिसने बिना कुछ किए ही इतनी सारी विधान सभा सीटें जीत लीं. पार्टी ने तो अपने प्रदर्शन में सुधार किया और न ही ऐसा कुछ कर दिखाया कि वोटर उसकी ओर हो जाएं. इसका मतलब साफ है कि बीजेपी के प्रति लोगों का रुझान कम हुआ है और मोदी लहर अब वहां नहीं है. यह पार्टी के लिए भले चिंताजनक न हो लेकिन इस पर उसे विचार जरूर करना होगा और वैसे भी पार्टी मोदी लहर के सहारे कब तक बैठी रहेगी? जाहिर है, बिहार चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश के परिणामों से पार्टी आलाकमान को एक बार धक्का जरूर लगा होगा. उसे आत्म विश्लेषण करना होगा और राज्य संगठनों के अध्यक्षों को नए सिरे से चिंतन करना होगा. महाराष्ट्र-हरियाणा के चुनाव आ चले हैं और पार्टी आलस करने की जहमत नहीं उठा सकती. यह धक्का पार्टी की नींद खोने के लिए शायद काफी होगा.