देश में एक हिन्दू लहर सी आई हुई है और वो जो कुछ भी गैर हिन्दू है, आलोचना के दायरे में आ रहा है. इसके कई उदाहरण मिल रहे हैं लेकिन ताजा उदाहरण है मदरसों पर बीजेपी सांसद साक्षी महाराज का हमला. साक्षी महाराज मदरसों पर आतंकवाद को बढ़ावा देने और लव जेहाद जैसे काम करने का आरोप लगा रहे हैं. वे उनके योगदान को पूरी तरह से खारिज करते हुए उनकी कटु आलोचना कर रहे हैं.
ऐसे कई हिन्दूवादी नेताओं ने पहले भी मदरसों की आलोचना की थी. उन सभी का यही कहना था कि यहां कट्टरवाद को बढ़ावा दिया जाता है. यह सच है कि भारतीय मदरसों में मुख्य रूप से इस्लाम की शिक्षा दी जाती है, लेकिन वहां किसी मजहब या समुदाय के प्रति किसी तरह की नफरत की बातें नहीं सिखलाई जाती हैं. जो लोग मदरसों का इतिहास जानते हैं उन्हें पता होगा कि प्रसिद्ध समाज सुधारक राजा राममोहन राय भी बंगाल के एक मदरसे में पढ़े थे. उन जैसे सैकड़ों हिन्दू धर्मावलंबियों ने मदरसों में उस जमाने में शिक्षा पाई थी. भारत में मदरसे मुगल काल में फले-फूले थे और वहां शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था थी.
दरअसल मदरसा का मतलब शिक्षा का स्थान ही होता है. मदरसों में सभी धर्मों के लोगों को पढ़ने की आजादी थी और किसी तरह का भेदभाव नहीं था. बंगाल में तो मदरसों में उच्च शिक्षा भी दी जाती थी. मदरसे कुछ ऐसे थे जैसे ईसाई मिशनरी के शिक्षा संस्थान होते थे. लेकिन आज ऐसा क्या हो गया कि इन मदरसों पर सवाल उठने लगे? सच तो यह है कि इनकी लोकप्रियता का कारण मजहब नहीं है बल्कि गरीबी है. आज भी भारत के कई हिस्सों में मुसलमानों के बच्चों के लिए पढ़ने के लिए संस्थाओं की कमी है. वे चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ें तो लेकिन अपने मजहब को सही ढंग से जानें. वे चाहते हैं कि उनके बच्चे न केवल उर्दू और अरबी पढ़ें बल्कि अपने मजहब के बारे में पूरी ज्ञान प्राप्त करें. यह भी सच है कि मदरसों का बड़ा काम इस्लाम और कुरान शरीफ के बारे में बताना है जो हर मुसलमान चाहता है.
ग्रामीण इलाकों में सरकारी स्कूलों की हालत किसी से छुपी नहीं है. इसलिए वे अपने बच्चों को वहां पढ़ने भेजते हैं. अब इससे अन्य धर्मावलंबियों के मन में यह धारणा बैठ सकती है कि इससे समाज के विभिन्न धर्म के लोगों में अलगाव की भावना बढ़ेगी. इस बात में दम भी है. लेकिन इसका इलाज क्या हो सकता है, इस पर सभी उदारवादियों को बैठकर विचार करना होगा. सिर्फ उनकी आलोचना कर देने या उनके आधुनिकीकरण की बात उठा देने से मामला सुलझ नहीं जाएगा. मदरसों को बदलते समय के साथ कितना बदला जा सकता है, इस बारे में विचार तो होना ही चाहिए. वहां बच्चों को इस्लाम के अलावा और क्या-क्या पढ़ाया जा सकता है, इस पर मुस्लिम विद्वानों के साथ मिलकर चर्चा करनी चाहिए.
मदरसों में इस्लाम की पढ़ाई हो रही है तो उसमें कुछ भी गलत नहीं है. जरूरत है वहां पढ़ रहे बच्चों को आधुनिक शिक्षा व्यवस्था से रूबरू कराने, उन्हें रोजगारोन्मुख शिक्षा दिलाने और विज्ञान का ज्ञान देने की. यह कोई आसान काम नहीं है. देश में आज भी पांच फीसदी मुस्लिम बच्चे मदरसों में ही पढ़ते हैं. उन्हें बेहतर शिक्षा इन संस्थाओं को आधुनिक बनाकर ही दिया जा सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए बड़ी राशि देकर इस दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है.