scorecardresearch
 

Opinion: सुप्रीम कोर्ट के दूरगामी असर वाले दो फैसले

देश की सबसे बड़ी अदालत ने लगातार दो ऐसे फैसले दिए हैं जिनकी बहुत ही ज्यादा जरूरत थी. पहला तो यह कि दहेज के मामलों मेंगिरफ्तारी सिर्फ जरूरी होने पर ही हो और दूसरा फतवों के बारे में.

Advertisement
X

देश की सबसे बड़ी अदालत ने लगातार दो ऐसे फैसले दिए हैं जिनकी बहुत ही ज्यादा जरूरत थी. पहला तो यह कि दहेज के मामलों में गिरफ्तारी सिर्फ जरूरी होने पर ही हो और दूसरा फतवों के बारे में.

Advertisement

दहेज कानून कई साल पहले देश में दहेज के कारण हो रही मौतों को देखते हुए बनाया गया था. कानून बनाने वालों और जनता की राय थी कि दहेज उत्पीड़न के मामले आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गए हैं और उनका निदान तथा उन्हें रोकने के लिए सख्त कानून की जरूरत है. इसके बाद यह कानून बनाया गया. लेकिन दुर्भाग्यवश उस कानून का इतना दुरुपयोग होने लगा कि बात सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंची और उसने फैसला दिया कि इस तरह के मामलों में गिरफ्तारी तभी हो जब उसकी जरूरत दिखाई दे.

यानी कि ऐसा लगे कि आरोपी उस मामले में गवाहों पर दबाव डाल रहा हो या वह कोई और अपराध कर रहा हो या फिर फरार होने की तैयारी में है. दरअसल दहेज प्रताड़ना के मामलों में सख्त कानून होने के कारण पुलिस उन सभी को गिरफ्तार कर लेती है जिनके नाम एफआईआर में होते हैं. वैसे लोगों में कई बार बहुत बूढ़े लोग, दूसरे शहरों में रह रहे लोग और यहां तक कि एनआरआई भी लपेटे में आकर जेल पहुंच गए.

Advertisement

इस कानून में तुरंत जमानत का प्रावधान न होने के कारण लोग इसे हथियार बना लेते हैं और कई बार बदला चुकाने के इरादे से कई ऐसे लोगों के नाम डाल देते हैं जो उस अपराध से सीधे तौर पर जुड़े हुए भी नहीं हैं. यह देखते हुए कि दहेज प्रताड़ना के मामलों में सिर्फ 15 प्रतिशत लोगों को ही सजा मिलती है, अदालत का यह फैसला सराहनीय है. इससे निर्दोष लोग अनावश्यक रूप से जेल जाने से बच जाएंगे और मामला दर्ज कराने वालों की संख्‍या भी गिरेगी क्योंकि झूठी शिकायत करने वाले लोग निरुत्साहित भी होंगे.

फतवों से जुड़ा सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी इस मायने में बेहद महत्वपूर्ण है कि देश में इसका काफी चलन रहा है. अल्पसंख्यकों के कई मामलों में कई बार मौलवी या संस्था ने फतवे जारी करते हैं जो काफी विवादास्पद होते हैं. ये एक तरह से स्वतंत्र अदालत चलाने जैसा है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इन पर बंदिश लगाई है और कहा है कि इन्हें मानना जरूरी नहीं है और देश में शरिया अदालतों को कानूनी मान्यता नहीं है. उसे राय देने का हक तो है लेकिन वह किसी के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं कर सकता है. उससे किसी को ऐसे किसी व्यक्ति के बारे में फतवा जारी करने का हक नहीं है जो उसके सामने न हो और फतवे से किसी बेगुनाह को तकलीफ नहीं पहुंचनी चाहिए. यह फैसला भी फतवे पर कई वर्षों से चल रहे विवाद का अंत कर देगा और एक स्वस्थ परंपरा को जन्म देगा जिसमें बेगुनाह प्रताड़ित नहीं होंगे.

Advertisement

दहेज कानून का मामला भी अजीब था. एक कानून जो निर्दोष लोगों की रक्षा के लिए बनाया गया था, वह अन्याय का अस्त्र बन गया था और न जाने कितने बेगुनाहों की बलि ले रहा था. भारत में कानूनों के दुरुपयोग की यह भी एक दुखद दास्तां है. अब सुप्रीम कोर्ट के इस फेसले से इसमें ब्रेक लगेगा और दूसरों को फंसाने या परेशान करने की मानसिकता पर रोक लगेगी.

Advertisement
Advertisement