उत्तराखंड का वह भयानक विनाश हम अभी भूले भी नहीं थे कि धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में जल प्रलय आ गया. अभूतपूर्व बारिश और उसके साथ ही बाढ़ ने लोगों पर कहर बरपा दिया. डेढ़ सौ से भी ज्यादा लोग मारे गए और हजारों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बाढ़ का पानी भर गया है. हजारों लोग बेघर हो गए हैं और न जाने कितने मकान ढह गए हैं. संचार व्यवस्था ठप हो गई है और सड़कें बह गई हैं. अस्पतालों में पानी घुस गया है और कई तो बर्बाद भी हो गए. सेना की छावनी, सचिवालय, हाई कोर्ट की बिल्डिंग सभी में पानी घुस गया है. कश्मीर के इतिहास में ऐसी बाढ़ ने देखी गई और न ही उसके बारे में पहले कभी सुना गया.
पीएम मोदी ने तत्काल राहत कार्यों का आदेश देकर बड़ा काम किया है. इतना ही नहीं उन्होंने इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित करके यह बताया कि कश्मीर हमारे देश का अभिन्न अंग है. उनका यह बयान सही समय पर और सही इरादे से दिया गया बयान है. बड़े पैमाने पर राहत के काम हो रहे हैं.
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन टीमों ने सेना के साथ बड़े पैमाने पर काम करना शुरू कर दिया है. लेकिन इस बार यह काम बेहद दुरूह है. स्थानीय कर्मियों के अलावा दस हजार सैनिक भी इसमें जी-जान से जुटे हुए हैं. यह बेहद चुनौती भरा ऑपरेशन है लेकिन भारतीय सेना के गौरवशाली इतिहास को देखते हुए यह असंभव भी नहीं दिखता है.
बहरहाल एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि इतनी बड़ी आपदा आई कैसे? आखिर धरती के इस स्वर्ग में क्या गलत हुआ कि वहां इतना बड़ा प्रलय आ गया? क्यों श्रीनगर जैसा शहर भी डूब गया? इन सभी सवालों का एक ही जवाब है कि हमने प्रकृति के साथ बहुत ज्यादा छेड़छाड़ की है. पहाड़ों पर बड़े पैमाने पर जंगल काट दिए गए, जहां-तहां मकान बना दिए, हरे-भरे मैदानों को उजाड़ दिया गया है और नदियों पर बांध बना दिए गए हैं. इन सब का असर वहां के पर्यावरण पर पड़ा.
जब हिमालय में जोरदार वर्षा होती है तो उसका पानी तेजी से नीचे को जाने लगता है लेकिन जंगलों तथा हरियाली के न होने के कारण यह पानी वहां रुक नहीं पाता है और सीधे आबादी वाले इलाकों में आता है. यह घटना हर साल भारत के किसी न किसी हिस्से में दोहराई जाती रही है. हर साल प्राकृतिक विपदा आती है और सब कुछ नष्ट कर जाती है. जब उत्तराखंड में यह आपदा आई तो इस बात को सबने माना. इस पर चर्चा भी हुई और आगे ध्यान रखने के भी वादे किए गए लेकिन हुआ कुछ नहीं. प्रकृति के साथ हम छेड़छाड़ कर रहे हैं. इसका एक कारण आबादी में जबर्दस्त वृद्धि भी है. सवा अरब लोगों के रहने के लिए इस देश में अब जगह कम पड़ती जा रही है. लोग जहां-तहां बसने लगे हैं और इसका असर हमारी धरती पर पड़ा है. देश अतिबारिश या सूखे के दौर से गुजरने लगा है.
यह आपदा तो गुजर जाएगी. लेकिन बड़ा सवाल जस के तस खड़ा रह जाएगा कि आखिर हम कब सुधरेंगे? कब प्रकृति का दोहन बंद करेंगे और कब उसे संवारने के लिए कदम उठाएंगे?