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OPINION: हत्याओं पर इस तरह की राजनीति उचित नहीं

असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों और स्थानीय बोडो आदिवासियों के बीच टकराव में कई जानें चली गईं. यह एक दुखद घटना है लेकिन उससे भी दुखद है, उस पर राजनीति करना. कांग्रेस ने इन हत्याओं पर पहले राजनीति की, असम के मुख्य मंत्री तरुण गोगोई ने इसके लिए नरेन्द्र मोदी को जिम्मेदार ठहराया तो कपिल सिब्बल भी पीछे नहीं रहे. बीजेपी और शिवसेना वाले कहां पीछे रहते, उन दोनों ने कांग्रेस के खिलाफ जहर उगला. यानी वाद-प्रतिवाद का एक दौर शुरू हो गया है. लेकिन आगे ऐसा न हो इस बारे में कहीं से कोई भी बयान नहीं.

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असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों और स्थानीय बोडो आदिवासियों के बीच टकराव में कई जानें चली गईं. यह एक दुखद घटना है लेकिन उससे भी दुखद है, उस पर राजनीति करना. कांग्रेस ने इन हत्याओं पर पहले राजनीति की, असम के मुख्य मंत्री तरुण गोगोई ने इसके लिए नरेन्द्र मोदी को जिम्मेदार ठहराया तो कपिल सिब्बल भी पीछे नहीं रहे. बीजेपी और शिवसेना वाले कहां पीछे रहते, उन दोनों ने कांग्रेस के खिलाफ जहर उगला. यानी वाद-प्रतिवाद का एक दौर शुरू हो गया है. लेकिन आगे ऐसा न हो इस बारे में कहीं से कोई भी बयान नहीं.

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भारत में बांग्लादेशी घुसैठियों की समस्या चार दशकों से भी पुरानी है. वहां से बड़े पैमाने में लोग अवैध रूप से भारत में प्रवेश करते हैं. विपक्ष का आरोप है कि कम से कम एक करोड़ बांग्लादेशी भारत में अवैध रूप से रह रहे हैं. वे हर बड़े शहर में दिखते और रहते हैं. लेकिन असम में वे बड़े पैमाने पर घुसपैठ करते रहे हैं. आजादी के पहले से वहां की हरी-भरी धरती पर स्वार्थी तत्वों की नजरें रहीं और बड़े पैमाने पर पूर्वी बंगाल से अल्पसंख्यकों को वहां जाने को प्रेरित किया गया. आजादी के बाद भी पूर्वी पाकिस्तान से वहां घुसपैठ होती रही लेकिन सत्तर के दशक के बाद इसमें जबर्दस्त बढ़ोतरी हुई. गरीबी और बेरोजगारी से निजात पाने के लिए लाखों बांग्लादेशी भारत में घुस गए लेकिन असम में यह समस्या विकराल रूप धारण करती चली गई.

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वहां के पहाड़ी जगहों और वनों में ये चुपचाप बसते गए. वो जमीन जो आदिवासियों की थी, उस पर वे चुपचाप कब्जा जमाकर बैठ गए. उन्हें स्थानीय नेताओं का सहयोग मिला क्योंकि वे वोट बैंक बन गए. इससे असम में हितों का बड़ा टकराव हुआ जिसका परिणाम 1983 में नेल्ली दंगों के रूप में देखा गया. असम के उस दंगे में हजारों अल्पसंख्यकों की जानें चली गईं. अपनी जमीन पर आव्रजक बांग्लादेशियों को काबिज देखकर आदिवासियों ने बड़े पैमाने पर कत्लेआम किया. लेकिन ऐसा नहीं हुआ कि उसके बाद घुसपैठ रुकी या इस समस्या का कोई हल निकला. ऐसा हो भी नहीं सकता था क्योंकि कुछ धूर्त राजनीतिज्ञों को वोट बैंक के रूप में उनकी उपयोगिता समझ में आ गई और उनका राजनीतिक इस्तेमाल होने लगा.

अब सवाल है कि बांग्लादेश से कब तक लोग अवैध रूप से भारत आते रहेंगे? क्या कभी इस समस्या का ठोस हल निकल सकेगा? बीजेपी इस मुद्दे को चुनाव में उठा तो रही है लेकिन एनडीए के शासन काल के दौरान भी उस दिशा में कोई ठोस काम नहीं हुआ था. हजारों की तादाद में बांग्लादेशी घुसपैठिये भारत आते रहे लेकिन उन्हें रोकने के ठोस उपाय नहीं हुए. कांग्रेस के लिए यह कोई बड़ा मुद्दा था ही नहीं सो इस बारे में कोई कदम उठाया ही नहीं गया. अब उससे भी बड़ा सवाल है कि नई सरकार के सत्ता पर काबिज होने के बाद हालात में कुछ बदलाव होंगे क्या? अगर नहीं हुए तो आने वाले समय में इसी तरह खून की नदियां बहती रहेंगी.

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