कई हफ्तों से चली आ रही खींचतान का आज अंत हो गया. सरकार ने संसद में घोषणा कर दी कि अब इसमें अंग्रेजी के अंक नहीं जुड़ेंगे. इतना ही नहीं उसने यह भी कहा कि उम्मीदवारों को परीक्षा देने का एक अवसर और दिया जाएगा. लेकिन सरकार ने यह भी साफ कर दिया है कि सीसैट के फॉर्मेट में कोई बदलाव नहीं होगा, हालांकि बहुत से परीक्षार्थियों का कहना था कि वर्तमान परीक्षा व्यवस्था इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट के छात्रों के माकूल है और पुरानी व्यवस्था बेहतर थी.
दरअसल ज्यादातर छात्रों की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि सीसैट के पेपर-2 में अंग्रेजी कॉम्परिहेन्शन में खराब अनुवाद के कारण उनके साथ अन्याय हो रहा है. इससे उनके कुल अंकों में गिरावट आ रही है. उनकी इस बात में काफी दम था क्योंकि अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद का स्तर बहुत ही गिरा हुआ था. लेकिन आंदोलनकारियों का यह कहना कि फॉर्मेट को पुराने ढर्रे पर लाया जाए, उचित नहीं है. यह परीक्षा देश की सबसे बड़ी परीक्षा मानी जाती है और इसे हल्का कर देने से इसकी गुणवत्ता पर असर पड़ेगा. अब जबकि ज़माना बहुत बदल गया है और काम के तरीके में जबर्दस्त बदलाव आया है, परीक्षा का स्वरूप बदलना सही कदम था. यह सभी जानते हैं कि इस परीक्षा में पास करने वाले अंततः देश चलाने वालों में शुमार होते हैं और जबकि देश में सभी प्रोफेशन का स्तर बहुत ऊंचा हो गया है, इसमें भी सुधार लाजिमी था.
पहले इतिहास या ऐसे ही हल्के विषय लेकर छात्र आईएएस बन जाते थे लेकिन अब वक्त बदल गया है और जरूरी है कि वह सफल उम्मीदवार मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग, कानून जैसे विषयों का भी ज्ञान रखता हो. सिर्फ एक विषय रटकर इस तरह की परीक्षा में पास करने के दिन गए. सरकार को अब ऐसी किसी मांग के आगे झुकना नहीं चाहिए. इस परीक्षा का स्तर कठिन होना ही चाहिए क्योंकि यह उन लोगों का चयन करता है जो परोक्ष रूप से देश चलाते हैं.
प्रशासनिक अधिकारियों के स्तर में और सुधार करने की जरूरत है और सीसैट उस दिशा में एक बड़ा प्रयास है. हो सकता है इसमें कुछ खामियां हों लेकिन उस कारण एक सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध व्यवस्था को दरकिनार नहीं किया जा सकता है. आंदोलनकारियों का यह कहना भी सही नहीं है कि सीसैट से ग्रामीण क्षेत्रों के उम्मीदवारों को घाटा हुआ है और उनके चयन की संभावना कम हो जाएगी. दरअसल इस परीक्षा में सफल होने के लिए इसके शुरूआती दिनों से बहुत मेहनत की जरूरत होती रही है. अगर लाखों उम्मीदवारों में से हर साल लगभग दो सौ आईएएस बनेंगे तो ज़ाहिर है कम्पीटिशन जबर्दस्त होगा. ऐसे में कड़ी परीक्षा होना वाजिब है और उसका विरोध बेमानी है.