आम आदमी पार्टी के कलह से यह बात साफ हो गई है कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र नहीं है. जिस तरह से पार्टी के दो संस्थापकों को बाहर का रास्ता दिखाया गया उससे इतना तो लगता है कि केजरीवाल किसी तरह के समझौते के मूड में नहीं हैं. यह भी लगता है कि उन्हें किसी तरह का विरोध पसंद नहीं है और न ही किसी की सलाह. पार्टी जिन मुद्दों पर बनी थी वे भी अब कमज़ोर से दिख रहे हैं.
जब अन्ना हजारे ने देश में भ्रष्टाचार मिटाने के लिए लोकपाल की मांग की और आंदोलन किया तो केजरीवाल फौरन उनके साथ हो लिये. उन्होंने इस मुद्दे पर संघर्ष भी किया और जब अपनी पार्टी बनाई तो उसमें भी लोकपाल का पद रखा ताकि कोई गड़बड़ी न हो. लेकिन अब उन्होंने अपनी पार्टी के लोकपाल एडमिरल रामदास को भी चलता कर दिया. पहले तो उनसे कहा गया कि वह नेशनल काउंसिल की बैठक में न जाएं. उसके बाद उन्हें उनके पद से ही मुक्त कर दिया गया और आनन-फानन में नया लोकपाल बहाल कर दिया गया.
पार्टी ने इसके लिए कई तर्क भी दिए और कहा कि रामदास का कार्यकाल तो 2013 में ही खत्म हो गया था लेकिन उन्हें अब हटाया जा रहा है. ज़ाहिर है कि पार्टी ने लोकतांत्रिक तरीके की बजाय मनमाने तरीके से उन्हें हटाया. केजरीवाल ने योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण पर कई आरोप लगाए हैं और उन्हें पार्टी विरोधी करार दिया. जो लोग केजरीवाल की कार्यशैली जानते हैं वह यह भी जानते हैं कि केजरीवाल आरोपों के बादशाह हैं. वह किसी पर भी आरोप लगा सकते हैं, इसके लिए उन्हें दूसरी बार सोचने की जरूरत नहीं होती.
लोकसभा और उसके बाद विधान सभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी तथा अन्य पार्टियों पर सैकड़ों तरह के आरोप लगाए जिनमें कई तो सरासर निराधार थे. आरोप लगाना और उसे सिद्ध न करना केजरीवाल की फितरत है लेकिन उन्हें यह कतई पसंद नहीं कि कोई उन पर उंगली उठाए. इसलिए वह नहीं चाहते कि पार्टी में ऐसे तत्व रहें जो उन पर उंगली उठाएं और व्यवधान डालें. उन्हें आंतरिक लोकतंत्र के नाम पर किसी तरह का विरोध नहीं चाहिए. उनके काम करने की शैली ऐसी है जिसमें विरोध और असंतोष के लिए जगह नहीं है. वह तकरीबन दो दशकों से सार्वजनिक जीवन में हैं लेकिन उनके पुराने सहयोगियों की संख्या इतनी कम है कि उंगलियों पर गिनी जा सकती है. उनके ज्यादातर पुराने सहयोगी उन्हें छोड़ते चले गए या यूं कहें कि उन्होंने उनसे किनारा कर लिया.
यह तय है कि आने वाले समय में भी आम आदमी पार्टी ऐसे ही चलेगी. वहां वही होगा जो केजरीवाल चाहेंगे. किसी तरह के विरोध या असंतोष की वहां जगह नहीं है. वह लोकतंत्र की बातें चाहे कितनी कर लें लेकिन उनकी कार्यशैली ऐसी ही रहेगी. 70 में से 67 विधायक उनके साथ हैं यह आंकड़ा उन्हें शक्ति देता है कि वह जो चाहें करें, कम से कम पांच साल. केजरीवाल के स्वाभाव को जानते हुए यह नहीं लगता कि वह पार्टी में असंतोष को मुखर होने देंगे.