पाकिस्तान से सचिव स्तर की बातचीत रद्द करने का फैसला करके भारत ने पाकिस्तान को बता दिया है कि दोस्ती और दुश्मनी साथ-साथ नहीं चल सकते. एक तरफ तो पाकिस्तान भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है, दूसरी ओर कश्मीरी अलगाववादियों की पीठ थपथपा रहा है. यह खुला रहस्य है कि पाकिस्तान न केवल कश्मीरी अलगाववादियों को उकसाता है बल्कि वहां आतंकवाद को बढ़ावा भी देता है.
सीमा पार से हर रोज गोलाबारी के पीछे दरअसल आतंकवादियों को भारत की सीमा में घुसाने की कोशिश होती है. पाकिस्तान पूरी ताकत से यह प्रयास करता रहता है कि कश्मीर का मुद्दा सुलगता रहे और इसके लिए वह धन, हथियार वगैरह अलगाववादियों को मुहैया कराता रहता है. लेकिन इसके बावजूद भारत ने उसकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाए रखा. कारण साफ था कि आप अपने पड़ोसी देश के साथ लंबे अरसे तक शत्रुतापूर्ण व्यवहार नहीं रख सकते हैं. चाहे वह मुंबई हमलों का मामला हो या कश्मीर में घुसपैठ का. भारत ने हमेशा पाकिस्तान को माफ किया है और उससे दोस्ती बनाए रखने की कोशिश की है.
जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो सोचा जा रहा था कि वह पाकिस्तान के विरुद्ध सख्त रवैया अपनाएंगे, लेकिन उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ को आमंत्रित ही नहीं किया बल्कि उन्हें उचित सम्मान भी दिया. ऐसा लगा कि पाकिस्तान के रुख में बदलाव हो जाएगा. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. इसके पीछे कई कारण रहे.
पाकिस्तान की समस्या है कि वहां लोकतंत्र होने के बावजूद फौज पीछे से सरकार चलाने की कोशिश करती रहती है. पाकिस्तानी फौज का रुख हमेशा भारत विरोधी रहा है. इसके अलावा वहां आईएसआई का एक धड़ा भी भारत के खिलाफ है जो यहां विध्वंसक कार्रवाइयों को बढ़ावा देता रहता है. और इन सबसे बढ़कर इस्लामी चरमपंथी गुट हैं जो भारत को निशाना बनाने की फिराक में रहते हैं. पाकिस्तान के पीएम के लिए इन सभी की उपेक्षा करना बड़ा कठिन है. हालांकि नवाज शरीफ की मानसिकता भारत विरोधी नहीं है, लेकिन उनके सलाहकार और कई गुट भारत विरोधी रवैया रखते हैं.
नवाज शरीफ ने तो भारत दौरे पर अपने को कश्मीरी अलगाववादियों से अलग रखा था, लेकिन अचानक वहां के उच्चायुक्त ने कश्मीरी अलगाववादियों को बातचीत का न्यौता देकर भारत के सब्र का इम्तिहान लेने की कोशिश की. लेकिन इस बार उन्हें एक धक्का लगा है. भारत ने आगे पाकिस्तान से बातचीत के दरवाजे बंद कर दिए हैं.
यह एक सही कदम है और इससे पाकिस्तान को नई सरकार के नजरिये का पता चलेगा. पीएम मोदी ने पहले ही जता दिया था कि वह पाकिस्तान को जरूरत पड़ने पर कड़ा जवाब दे सकते हैं. अब इसकी शुरुआत हो चुकी है. भारत ने कड़े तेवर दिखा दिए हैं और दोस्ती तथा दुश्मनी में एक चुनने का विकल्प दे दिया है. पाकिस्तान इस समय अराजकता के दौर से गुजर रहा है. लोकतांत्रिक सरकार कमजोर है और विरोधी पार्टियां हावी हो रही हैं. फौज हमेशा की तरह ताक में खड़ी है कि कब तख्ता पलट दें.
कट्टरपंथी आबादी के बहुत बड़े हिस्से की उदार मानसिकता बदलने की कोशिश कर रहे हैं. पाकिस्तान के उत्तर में तालिबानियों से फौज जूझ रही है. अपराध चरम सीमा पर है. कुल मिलाकर वह देश इस समय जल रहा है. ऐसे में उससे बातचीत करके कुछ मिलने वाला भी तो नहीं है. इस दृष्टि से भी यह कदम सही है. जो लोग नरेंद्र मोदी के स्वभाव को जानते हैं, वे यह भी जानते हैं कि वह कुछ विषयों पर कितना सख्त रवैया अपनाते हैं. ज़ाहिर है निकट भविष्य में पाकिस्तान से बातचीत के दरवाजे नहीं खुलेंगे.