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Opinion: महाराष्ट्र में सियासी शतरंज

इस समय देश की निगाहें महाराष्ट्र पर हैं, जहां सियासी शतरंज अपने शबाब पर है. चार पार्टियां और एक लक्ष्य. सत्तारूढ़ कांग्रेस, उसकी सहयोगी पार्टी एनसीपी, लोकसभा चुनाव में जीत के उत्साह से लबरेज बीजेपी और राज ठाकरे की गिरती साख से हर्षित शिव सेना. सभी इस शतरंज में अपनी-अपनी बाजी खेल रहे हैं.

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उद्धव ठाकरे की फाइल फोटो
उद्धव ठाकरे की फाइल फोटो

इस समय देश की निगाहें महाराष्ट्र पर हैं, जहां सियासी शतरंज अपने शबाब पर है. चार पार्टियां और एक लक्ष्य. सत्तारूढ़ कांग्रेस, उसकी सहयोगी पार्टी एनसीपी, लोकसभा चुनाव में जीत के उत्साह से लबरेज बीजेपी और राज ठाकरे की गिरती साख से हर्षित शिव सेना. सभी इस शतरंज में अपनी-अपनी बाजी खेल रहे हैं.

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बीजेपी-शिवसेना का वर्षों पुराना सैद्धांतिक गठबंधन टूट के कगार पर है तो सत्ता के लिए साथ हुए कांग्रेस-एनसीपी की दोस्ती खत्म होने पर है. सबके रास्ते अलग हैं लेकिन इरादा एक ही है, येन-केन प्रकारेण महाराष्ट्र की सत्ता पाना. आखिर ऐसा क्या हो गया कि दोनों गठबंधनों में दरार आ गई? क्यों वर्षों पुराने संबंधों में अब पहले वाली ऊर्जा नहीं रह गई? क्यों नए समीकरण तलाशे जा रहे हैं और क्यों ऐसा हो रहा है कि सिद्धांत से ज्यादा व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं मायने रख रही हैं? बात साफ है कि सब के मन में सत्ता पाने की लालसा है.

बीजेपी को लोकसभा चुनाव में विजय का अहसास है तो शिवसेना को बाला साहेब ठाकरे के निधन से उपजी सहानुभूति का विश्वास. उधर, कांग्रेस को लगता है कि महाराष्ट्र की राजनीति में एनसीपी के दिन पूरे हो चुके हैं जबकि एनसीपी को लगता है कि वह हमेशा की तरह एक बार फिर जोड़-तोड़ की सरकार में शामिल हो जाएगी. बहरहाल सभी के अपने-अपने आकलन और अपने-अपने तर्क हैं. इसलिए शतरंज का यह सियासी खेल जारी है. हर पार्टी दूसरे को त्याग करने को कह रही है और चालें चल रही है.

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जहां तक बीजेपी-शिवसेना की बात है तो तमाम संकेतों से लगता है कि दोनों पार्टियां महाराष्ट्र में पूरी तरह से अपना वर्चस्व चाहती हैं. शिव सेना के लिए यह बड़ा मौका है, क्योंकि राज्य में कांग्रेस-एनसीपी की लोकप्रियता सबसे निचले स्तर पर है. उधर बीजेपी जो आज तक कभी भी राज्य में अपने पैर पूरी तरह नहीं जमा पाई है. लोकसभा चुनाव में अभूतपूर्व विजय से चकाचौंध है.

अब चालें चली जा रही हैं. दोनों ज्यादा से ज्यादा सीटों की तलाश में हैं. शिवसेना के अपने तर्क हैं तो बीजेपी के भी अपने. लेकिन ध्यान से देखने में यह बात साफ आ रही है कि शिवसेना की निगाहें मुख्य मंत्री की कुर्सी पर है. वह जानती है कि अगर वह ज्यादा सीटें अपने पास रखकर अधिक उम्मीदवारों को जिता देगी तो मुख्यमंत्री की कुर्सी उसके पास रहेगी. इसलिए वह बीजेपी को 119 से ज्यादा सीटें न देने पर अड़ी हुई है. वह जानती है कि अगर इस बार ऐसा नहीं हुआ तो आगे इसकी संभावना भी कम है.

उधर बीजेपी चाहती है कि मुख्यमंत्री उसकी पार्टी का सदस्य हो. दूससरी पार्टी के नेता के मुख्यमंत्री होने पर उसके हाथ बंधे रह जाएंगे. पीएम मोदी के सपनों को पूरा करने के लिए यह जरूरी है कि महाराष्ट्र में जो सरकार बने वह पूरी तरह से बीजेपी के साथ हो.

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सत्ता में बहुत ताकत होती है. यह तोड़ती है तो जोड़ती भी है. वह उम्मीदें जगाती है तो भय भी पैदा करती है. उसके ये गुण ही उसे पार्टियों को अलग होने या जुड़ने से दूर करती हैं. अब महाराष्ट्र के मामले में कौन सी बात महत्वपूर्ण होगी, यह जल्दी ही दिख जाएगा.

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