प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह न केवल एक बेहतरीन मौका चूक गए बल्कि मीडिया का उपहास भी कर गए जो करप्शन और महंगाई का मुद्दा लगातार उठा रहा था. अपने आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मनमोहन सिंह कुछ मुद्दों पर विस्तार से प्रकाश डाल सकते थे, कई मुद्दों पर अपना एक्सप्लानेशन दे सकते थे और कई नई बातें बता सकते थे.
लेकिन उन्होंने अपनी आदत के मुताबिक ऐसा कुछ भी नहीं किया. उन्होंने राहुल गांधी की खुले शब्दों में खूब तारीफ तो की लेकिन क्या वह अगले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे, इस पर कोई रोशनी नहीं डाली. एक तरफ तो उन्होंने माना कि सरकार महंगाई रोकने में नाकाम रही तो साथ में यह भी कह दिया कि यह खाने-पीने की वस्तुओं की महंगाई थी और सरकार ने कमज़ोर वर्ग के लोगों के हाथों में पहले से ज्यादा पैसा दिलवाया.
करप्शन के बारे में उनका कहना था कि उनकी सरकार करप्शन को खत्म करने को प्रतिबद्ध है. लेकिन यह उस प्रधानमंत्री का बयान नहीं होना चाहिए था जिसके कार्यकाल में सबसे ज्यादा करप्शन के मामले उठे और सरकार चारों ओर से घिरी रही. विपक्ष पर संसद न चलने का आरोप लगाकर वह करप्शन के खिलाफ कानून न बनने देने का आरोप लगा तो गए लेकिन उस मुद्दे पर कुछ खास नहीं बोले. यह ऐसा मुद्दा था जिस पर प्रधानमंत्री बोल सकते थे और जोरदार शब्दों में अपनी बात रख सकते थे.
संसद में शोरशराबे में वे अपनी बात नहीं रख पाए लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में कम से कम वे बोल ही सकते थे. वे बता सकते थे कि वे कौन सी परिस्थितियां थीं जिन्होंने उन्हें करप्शन के खिलाफ कदम उठाने से रोके रखा. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
आप कह सकते हैं कि मनमोहन सिंह एक कोर पॉलिटिशियन नहीं हैं वे इकोनॉमिस्ट हैं लेकिन एक अर्थशास्त्री होने के नाते वे इस बात की व्याख्या तो कर ही सकते थे कि आखिर वे कौन से कारण थे जिनके चलते वे अर्थव्यवस्था को इतना धक्का पहुंचा कि विकास की दर नौ प्रतिशत के औसत से गिरकर पांच पर जा पहुंची. सिर्फ यह कह देने से कि अर्थव्यवस्थाओं में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं, वे अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते.
बिज़नेस चैम्बर्स और कारोबारी यह मानते हैं कि सरकार की पॉलिसी पैरालिसिस के कारण ही अर्थव्यवस्था की यह दुर्दशा हुई. इस कारण ही आज लाखों करोड़ रुपये की परियोजनाएं लटकी पड़ी हैं.
दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री ने कृषि क्षेत्र में हुई प्रगति को भी अपनी उपलब्धियों में गिनवा दिया जबकि सभी जानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों से भारत पर मानसून मेहरबान रहा है और अनाजों का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ. इसके लिए सरकार अपनी पीठ कैसे थपथपा सकती है? अब मनमोहन सिंह इस देश के उस प्रधानमंत्री के रूप में याद रखे जाएंगे जो सही वक्त पर नहीं बोले और जब बोले तो लगा कि कुछ नहीं बोले.