प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की एक खासियत यह है कि वह कम बोलते हैं और कई बार तो जरूरत पड़ने पर भी नहीं बोलते. लेकिन इस बार वह बोले और बड़ी ईमानदारी से बोले. उन्होंने माना कि बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेन्द्र मोदी को वह कम करके नहीं आंकते. वह उन्हें गंभीरता से लेते हैं और इसमें लापरवाही की गुंजाइश नहीं है.
उन्होंने एक सुलझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह यह भी कहा कि वह विपक्षियों को हल्के में नहीं लेते. यह बात कहकर प्रधानमंत्री ने एक बिना मतलब की हो रही बहस पर पूर्ण विराम लगा दिया. अपने प्रतिद्वंद्वियों को छोटा करके दिखाने का राजनीतिज्ञों का यह तरीका बहुत पुराना है और अब पूरी तरह से घिस गया है. अब कांग्रेस के नेता हल्की बातें करना छोड़कर लोकसभा चुनाव की सुध लेंगे जिसमें पार्टी के सामने जबरदस्त चुनौती खड़ी है और यह खड़ी की है उसी नेता ने जिसे उनकी पार्टी के कुछ बड़े नेता ही नहीं कैबिनेट मिनिस्टर भी गंभीरता से नहीं लेने का दंभ भर रहे हैं.
अहंकार और उपेक्षा में बहुत फर्क है और जो अहंकारी होते हैं वे समय की आहट को नहीं सुन पाते. उपेक्षा करना और खासकर अपने प्रतिद्वंद्वियों की, कई बार महंगा पड़ता है. पांच राज्यों के चुनाव में हमने देख लिया कि कांग्रेस का दंभ चकनाचूर हो गया है.
कांग्रेस के लिए यह वक्त है आत्मचिंतन का और अपने प्रतिद्वंद्वियों की ताकत आंकने का. सत्ता कई बार सोचने की ताकत को कम कर देती है और यह बात कांग्रेसियों के तौर-तरीकों से साफ झलक रही है. उनके सोचने की ताकत कम हो गई है. उन्हें लगता है कि कोई चमत्कार हो जाएगा और वे लोकसभा चुनाव जीत लेंगे. हल्की बातें करके वे अपना वक्त बिता रहे हैं. दरअसल इसमें कांग्रेस के कल्चर का दोष है. यहां सत्ता हमेशा ऊपर से आती रही है, यानी कार्यकर्ता हमेशा यह उम्मीद करते हैं कि आलाकमान की तरफ से कुछ करिश्मा होगा और सत्ता मिल जाएगी.
बहरहाल मुद्दा है प्रधानमंत्री की स्वीकरोक्ति की. उन्होंने विपक्षी दल को हल्के में न लेने का जो बयान दिया वह समय की चाल को देखकर दिया और अब शायद पार्टी के नेता यह समझने को बाध्य होंगे कि मोदी वाकई एक ताकत हैं और उनसे टक्कर लेने की बात सोचनी होगी. हल्की, सस्ती और घटिया टिप्पणियों से अब काम नहीं चलने वाला है. समय की नजाकत को नहीं समझ पाने वाले या जानबूझकर अनजान बने रहने वालों को सबक मिल जाता है.