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OPINION: मोदी की सुनामी का अमेरिका तक असर

लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की जबरदस्‍त जीत ने कई मान्यताओं को ध्वस्त कर दिया है, इसके साथ ही इसने कई राष्ट्रों को सोचने और अपनी नीतियां बदलने के लिए भी मजबूर कर दिया. इनमें महाशक्ति अमेरिका भी है जिसने मोदी की जीत के साथ ही अपनी नीति बदल दी और मोदी के लिए अपने दरवाजे खोल दिए.

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भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)

लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की जबरदस्‍त जीत ने कई मान्यताओं को ध्वस्त कर दिया है, इसके साथ ही इसने कई राष्ट्रों को सोचने और अपनी नीतियां बदलने के लिए भी मजबूर कर दिया. इनमें महाशक्ति अमेरिका भी है जिसने मोदी की जीत के साथ ही अपनी नीति बदल दी और मोदी के लिए अपने दरवाजे खोल दिए.

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महाशक्ति अमेरिका भी अब नरेंद्र मोदी की ताकत को पहचान गया है और उसने दो टूक शब्दों में घोषणा कर दी है कि वह नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर काम करने को तैयार है. इसके साथ ही उसने भारत को एक महत्वपूर्ण राजनीतिक खिलाड़ी के रूप में मान लिया है. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अब मोदी के स्वागत में खड़े हैं. लोकसभा चुनाव परिणाम से अमेरिका चकाचौंध है क्योंकि वहां ऐसी स्थिति की कभी कल्पना नहीं की गई थी. उसके पास मोदी के बारे में पहुंच रही जानकारी या तो आधी-अधूरी थी या पूर्वाग्रह से भरी हुई.

सच तो यह है कि अमेरिका में नरेंद्र मोदी के बारे में पूर्वाग्रह बहुत ज्यादा रहे हैं और इसके दो कारण थे. पहला तो यह कि भारत की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोग लॉबियों ने मोदी के बारे में कई तरह के भ्रम विदेशों में फैला रखे हैं. दूसरा यह कि भारत में उसे दूतावास में निहित स्वार्थी तत्व भरे पड़े हैं जो वाशिंगटन को अपनी पसंद की ही सूचनाएं देते हैं. बहरहाल अमेरिका तैयार है नरेंद्र मोदी के स्वागत के लिए. उसे पता है कि भारत का एक मजबूत देश के रूप में उभरना उसके हित में है. भारत से दोस्ती बनाए रखना और उसे प्रगाढ़ बनाए रखने में उसका ही फायदा है क्योंकि भारत न केवल उसका सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन सकता है बल्कि सैन्य साझेदार भी.

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अमेरिका को है भारत की जरूरत
नाटो के बाहर के देशों में भारत ही ऐसा देश है जो अमेरिका के लिए बेहद महत्व रखता है. अगर उसे चीन की बढ़ती ताकत से संतुलन बनाए रखना है तो भारत के सिवा और कोई देश उसकी मदद नहीं कर सकता. भारत के अलावा कोई ऐसा देश इस क्षेत्र में नहीं है जो चीन की महत्वाकांक्षाओं पर रोक लगाने के बारे में सोचे. सोवियत संघ के विघटन के बाद इस क्षेत्र में शक्ति का संतुलन गड़बड़ा गया है. यहां चीन तेजी से अपने पंख फैलाता जा रहा है और अमेरिका के लिए एक नई चुनौती बनता जा रहा है. ज़ाहिर है कि ऐसे में अमेरिका को भारत की जरूरत है.

दूसरी ओर, अमेरिका मूल रूप से एक व्यापारिक देश है और उसके लिए व्यापार पहली वरीयता है. इसके लिए उसे भारत की सख्त जरूरत है क्योंकि 125 करोड़ लोगों का यह देश दुनिया के सबसे बड़े बाज़ारों में से एक है और यहां वह निवेश करने से लेकर अपना माल बेचने तक का हर काम आसानी से कर सकता है. मोदी के धुर विरोधी जो यह सोच रहे थे कि अमेरिका अपनी पुरानी नीतियों पर बना रहेगा, इस घटना से हताश हो चुके होंगे. उनमें वे कुथ दर्जन सांसद भी थे जो बराक ओबामा को पत्र भेजकर मोदी को वीजा न देने की सलाह दे रहे थे. सचमुच में भारत बदल गया है और अमेरिका भी.

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