इसमें दो राय नहीं है कि नरेन्द्र मोदी देश के सबसे चर्चित नेता हैं और युवा वर्ग में बेहद लोकप्रिय भी. रुढ़िवादी संगठन आरएसएस से जुड़ाव के बावजूद उन्होंने कभी ऐसी कोई बात नहीं की कि उन्हें भी उसी वर्ग का समझा जाए. इसके विपरीत उन्हें हमेशा आधुनिक सोच का नेता माना जाता है.
जब उन्होंने उत्तर प्रदेश के डौंडिया खेड़ा में सोने के खजाने की खोज का मजाक उड़ाया तो सभी ने उनके आधुनिक ख्यालों की तारीफ की. उनका यह कहना कि वहां खुदाई कराके सरकार ने देश की जगहंसाई की है, तार्किक था. उनके बयान से ऐसा प्रतीत हुआ कि वे रुढ़िवाद और साधुओं-पंडितों की बातचीत पर यकीन नहीं करते, लेकिन अब अचानक ही उन्होंने सुर बदल दिया. अब मोदी ने यह कहा, 'शोभन सरकार ऐसे संत हैं जिनके प्रति लाखों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है और मैं उनकी तपस्या और त्याग को प्रणाम करता हूं.'
उनके बयानों में यह बदलाव आश्चर्यजनक है और ऐसा लगता है कि वह रुढ़िवादी तत्वों के दबाव में आ गए हैं. या फिर यह हो सकता है कि उनका पहले वाला बयान किसी और कारण से दिया गया हो. बहरहाल जो भी हो, प्रधान मंत्री पद की दावेदारी करने वाले शख्स का इस तरह से अपना स्टैंड बदलना बेहद अटपटा है. यह उनके व्यक्तित्व से मेल नहीं खाता है. अगर वह देश के युवाओं के नेता बनना चाहते हैं और उनके आदर्श के रूप में अपने को स्थापित करना चाहते हैं तो उन्हें दकियानूसी विचारों से दूर रहना होगा जो उन्होंने पहले किया था.
विचारों में तुरंत-तुरंत बदलाव राजनीतिक कारणों से तो हो सकता है लेकिन यह गलत सिग्नल देता है और यह उनके मजबूत व्यक्तित्व के बारे में गलत धारणाएं भी पैदा करता है. संत शोभन सरकार, हो सकता है एक त्यागी पुरुष हों जो अपने लिए कुछ नहीं करते लेकिन मोदी का एक दिन उनके कारण सरकार की आलोचना करना और दूसरे दिन फिर पलट जाना, मोदी के वैचारिक दृष्टिकोण के बारे में सवाल खड़े कर सकता है.