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Opinion: पब्लिसिटी के लिए आग से खेल रहे हैं केजरीवाल

दिल्ली में फिर से सरकार बनाने के मुद्दे पर थुक्का-फजीहत के बाद आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने नया पैंतरा अपनाया है. नितिन गडकरी द्वारा दायर अवमानना मामले में वह जमानत का मुचलका भरने को तैयार नहीं हुए और तिहाड़ जेल जा पहुंचे.

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अरविंद केजरीवाल
अरविंद केजरीवाल

दिल्ली में फिर से सरकार बनाने के मुद्दे पर थुक्का-फजीहत के बाद आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने नया पैंतरा अपनाया है. नितिन गडकरी द्वारा दायर अवमानना मामले में वह जमानत का मुचलका भरने को तैयार नहीं हुए और तिहाड़ जेल जा पहुंचे. उसके बाद उनके समर्थकों से जमकर हंगामा मचाया और इसे एक बड़ा इवेंट बना दिया. अब उनकी तरफ से तरह-तरह के बयान आ रहे हैं और उनके समर्थक इसे पब्लिसिटी का एक बड़ा मौका बना देना चाहते हैं. वे इस बहाने अरविंद केजरीवाल के लिए सहानुभूति जुटाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वह जन समर्थन जो उनसे दूर हो गया है, वापस मिल जाए. उनकी पूरी कोशिश है कि केजरीवाल खबरों में बने रहें ताकि दिल्ली विधानसभा के चुनाव तक हालात ऐसे ही रहें.

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लोकसभा चुनाव के परिणाम से यह स्पष्ट हो गया था कि आम आदमी पार्टी बीजेपी से पिछड़ गई है. हालांकि उनके वोट शेयर में बढ़ोतरी हुई लेकिन मिडि‍ल क्लास जो उनका सबसे बड़ा समर्थक था, उनसे दूर हो गया है. अब उन्हें वापस लाने के लिए बड़े प्रयास की जरूरत है. ऐसे में उन्हें लगा कि यह मौका बढ़िया है और इसका फायदा उठाया जाना चाहिए और उन्होंने जमानत लेने से इनकार कर दिया. जज महोदया के कहने के बावजूद वह अड़े रहे और दूसरे कई मामलों का हवाला देने लगे जिनमें जमानत की जरूरत नहीं हुई थी. लेकिन अदालतें अपने ढंग से चलती हैं और हर जज अपने तरीके से आदेश दे सकता है.

इस मामले में भी ऐसा हुआ. केजरीवाल को जेल भेज दिया गया जैसा वह चाहते थे. अब बाकी काम उनके समर्थक इसे बड़ा मुद्दा बनाकर कर रहे हैं. वे हर तरह के निराधार आरोप लगा रहे हैं और अजीबोगरीब बातें कर रहे हैं. लेकिन वे सभी एक बात भूल गए हैं कि अदालती आदेश को पब्लिसिटी का सस्ता हथियार बनाना बहुत ही खतरनाक खेल है. अदालतें नियम-कानून से चलती हैं और उनमें बाहरी हस्तक्षेप खासकर आरोपी का, कतई बर्दाश्त नहीं किया जाता है.

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अगर केजरीवाल एंड कंपनी को अदालत का यह आदेश पसंद नहीं आया तो उन्हें हाई कोर्ट जाना चाहिए था लेकिन वे वहां जाने से भी इनकार कर रहे हैं. अगर उनके पास गडकरी के खिलाफ पर्याप्त सबूत है तो वे उसे तत्काल अदालत के सामने रखें. सिर्फ जुबानी जमाखर्च से कुछ नहीं होगा. जाहिर है, बात पब्लिसिटी की है. इस बहाने भरपूर पब्लिसिटी पाने की तैयारी है.

केजरीवाल के पास अब खोने के लिए कुछ नहीं है तो वह एक जोखिम उठाकर पब्लिसिटी का यह जरिया अपना रहे हैं और इसके साथ ही अपनी पार्टी में अंदरूनी झगड़े को फिलहाल विराम देने का प्रयास दे रहे हैं. चुनाव में बुरी तरह पराजित पार्टी में घमासान मचा हुआ है, जेल जाकर वह इस पर ठंडा पानी डालने और एकता बनाए रखने का प्रयास कर रहे हैं. सस्ती लोकप्रियता पाकर खबरों में तो बना रहा जा सकता है लेकिन उन्हें वोट में तब्दील करना आसान नहीं होता. यह बात अगले चुनाव में केजरीवाल जान जाएंगे. ब्रेकिंग न्यूज की बदौलत राजसत्ता के दरवाजे तक की दूरी तय नहीं की जा सकती, केजरीवाल यह भी जान जाएंगे.

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