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OPINION: छत्तीसगढ़ में चुनाव, लोकतंत्र का ज़ज्बा

भारत में चुनाव होना एक उत्सव जैसा है, लोकतंत्र के उत्सव जैसा. लेकिन छत्तीसगढ़ की बात ही अलग है. वहां नक्सवाद अपने चरम पर है और नक्सलियों ने खुले आम चुनाव के बहिष्कार की घोषणा कर रखी है. ज़ाहिर है ऐसे में धमाके, गोलीबारी और हिंसा स्वाभाविक है.

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छत्तीसगढ़ में वोटिंग
छत्तीसगढ़ में वोटिंग

भारत में चुनाव होना एक उत्सव जैसा है, लोकतंत्र के उत्सव जैसा. लेकिन छत्तीसगढ़ की बात ही अलग है. वहां नक्सवाद अपने चरम पर है और नक्सलियों ने खुले आम चुनाव के बहिष्कार की घोषणा कर रखी है. ज़ाहिर है ऐसे में धमाके, गोलीबारी और हिंसा स्वाभाविक है.

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लोगों में इनका खौफ तो है लेकिन लोकतंत्र का ज़ज्बा भी है और वे धीरे-धीरे ही सही मतदान केन्द्रों की ओर जा रहे हैं. उनका वहां जाना और वोटिंग करना लोकतंत्र की बड़ी जीत है. लोकतंत्र जनता की ही ताकत से चलता है और यह वोटिंग उसे और सशक्त बनाती है. यह बात जम्मू-कश्मीर के अनुभव से जानी जा सकती है जहां वोटिंग के माध्यम से ही जनता ने फिर से भारतीय लोकतंत्र में अपना विश्वास जताया.

छत्तीसगढ़ में सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त से बड़े पैमाने पर हिंसा होती तो दिखती नहीं है. पहले चरण में 18 सीटों में मतदान मायने रखता है. इनमें बस्तर भी है जो नक्सली हिंसा का बड़ा केन्द्र रहा है. दंतेवाड़ा में जैसी कि आशंका थी, नक्सलियों ने गोलीबारी भी की और राजनांदगांव में बामनी पुल उड़ाने की कोशिश भी की. यह सब करके वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहते हैं.

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हो सकता है उनका भय कुछ इलाकों की जनता के मन में हो लेकिन जिस तरह से लोग बाहर आए और उन्हौंने वोटिंग की, उससे आगे के लिए उम्मीदें बंधती हैं. इससे उनकी लोकतंत्र के प्रति आस्था का पता चलता है और यह एक शुभ संकेत है. इतने वर्षों से नक्सली आतंक के बावजूद लोगों में देश और लोकतंत्र के प्रति जो सम्मान दिखता है, वह उत्साह बढ़ाता है. लेकिन सिर्फ इससे ही काम चलने वाला नहीं है. इस चुनाव में जो भाग ले रहे हैं, चाहे वे जीतें या हारें, उन्हें इस नक्सली समस्या को जड़ से खत्म करने के अभियान में जुटना ही होगा क्योंकि इसका हल बंदूकों से नहीं बातचीत और सुशासन से है.

नक्सवाद क्यों फैला है, इस पर बहस करना बेमानी और समय की बर्बादी है. इसे सभी जानते हैं. अब तो जरूरत है जनता को अपने साथ लेकर चलने तथा समाज में फैली असामनता, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से लड़ने की ताकि देश में फैलता यह कैंसर दूर हो सके. जनता तो यह जता ही रही है कि वह इससे निजात पाना चाहती है. जरूरत है कि नेता और राजनीतिक दल इस मुद्दे पर एकजुट हो जाएं. एक दूसरे पर उंगली उठाकर वे कुछ पाएंगे नहीं. यह एक राष्ट्रीय समस्या है जिसका इलाज जितनी जल्दी हो जाए, बेहतर है.

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