कहते हैं व्यवस्था एक दिन में नहीं बदल जाती है और न ही लोग. अरविंद केजरीवाल सत्ता में क्या आ गए, लोगों को लगने लगा कि रामराज आ गया. अब हर काम अच्छे ढंग और ईमानदारी से होगा. दफ्तरों में किसी भी काम को करवाने के लिए रिश्वत नहीं देनी होगी और न ही कोई गलत काम होगा.
लेकिन आजतक के एक स्टिंग ऑपरेशन ने एक ही झटके में इन मान्यताओं को ध्वस्त कर दिया. हमने देखा कि कैसे दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारी और कर्मचारी खुले आम पैसे ले रहे हैं. स्थितियां ठीक पहले जैसी ही हैं, जब पानी का कनेक्शन लेने या टेस्ट रिपोर्ट लेने के लिए पैसे देने पड़ते थे. ज़ाहिर है वर्षों से पल रही इस बीमारी को जड़ से मिटाना उतना आसान नहीं, जितना अरविंद केजरीवाल को लगता था. वह जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़कर सत्ता में आए, वह उन्हें मुंह चिढ़ा रहा है. उन्हें लगा होगा कि उनके सत्ता में आते ही व्यवस्था सुधर जाएगी, लेकिन व्यवस्थाएं आनन-फानन में नहीं, वर्षों में बनती हैं, इसलिए उनमें कोई बदलाव आसानी से नहीं होता है.
अब इस स्टिंग के बाद केजरीवाल ने एक झटके में 800 कर्मचारियों के तबादले के आदेश जारी कर दिए हैं. लेकिन उनकी जगह कौन लोग आएंगे और किन विभागों से लाए जाएंगे, ये प्रश्न अभी अनुत्तरित हैं. सभी जानते हैं कि तबादला कोई सजा नहीं है और यह सरकारी नौकरी का एक हिस्सा भर है. अरविंद केजरीवाल अफसर रहे हैं और जानते हैं कि कर्मचारी कैसे काम करते हैं. तो उन्हें यह भी पता होगा कि कैसे व्यवस्था चलती है यानी कैसे घूसखोरी का जाल पूरे देश में फैला हुआ है. तो फिर सवाल है कि एंटी करप्शन का एक नंबर जारी करके वह व्यवस्था कैसे बदल सकते हैं? भ्रष्ट व्यवस्था में तो कोई पीड़ित नहीं होता, वहां तो मिल-जुलकर काम कराए जाते हैं और फायदा उठाया जाता है. इसका कोई निदान है उनके पास? कैसे वह दिल्ली जल बोर्ड के टैंकर माफिया पर अंकुश लगाएंगे, कैसे वह सुनिश्चित करेंगे कि सब को जरूरत के हिसाब से पानी मिले और कैसे व्यवस्था करेंगे कि पानी के मीटरों की सही रीडिंग हो?
यह काम दुरूह है और इसे करने में शायद वर्षों लग जाएंगे. लेकिन इतना वक्त शायद केजरीवाल सरकार के पास नहीं है. उन्हें जो भी करना होगा, बहुत थोड़े समय में करना होगा. इससे भी बड़ी बात यह है कि दिल्ली सरकार के पास सिर्फ जल बोर्ड ही नहीं है, कई और भी महत्वपूर्ण विभाग हैं.